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________________ विनयविलास बिनती इतनी मानी बालिम, बेपरवाही मत करे ॥४॥ तुं परदेशका बेलाल, पंथी पाहुणा, प्रीत में बांधी बेलाल, क्युं रहुं तो विना ॥ तुं बिना क्युं करी, रहुं फुःख नरी, सती युं संमें चर्बु ॥ सांश्का करी बिनय सङान, युं अनेदें तुज मिद् ॥ ५॥इति ॥ पद अढारमुं॥ ॥ राग श्राशावरी ॥ कहा करुं मंदिर कहा करूं दमरा, न जानें कहां तुं उड बेठेगा नमरा ॥जोरी जोरी गए गेरी दुमाला, उड गए पंखी पड रह्या माला ॥ कहा ॥१॥ टेक ॥ पवनकी गठरी केसें पराज, घर न बसत थाय बेठे बटाउ। अगनी बुजानी काहेकी कारा, दीप बीपे तब केसे उजारा ॥ कहा ॥२॥ चित्रके तरुवर कबहुं न मोरे, माटिका घोरा केतेक दोरे ॥ धुंएकी हेरी तूरका थंना, उहां खेले हंसा देखो अचंना ॥ कहा॥३॥फिरि फिरि आवत जात ऊसासा, लापरे तारेका कैसा विश्वासा ॥ या पुनियांकी जूठी हे यारी, जैसी बनाश् बाजीगर बारी॥ कहा ॥४॥परमातम अविचल अबिनासी, सोहे शुरु परम पद वासी ॥ वि. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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