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जशविलास सिथलकी, बिनु उपयोग न माने ॥ श्राचारी उपयोगी थातम, सो सामायक जाने ॥ चतुरनर॥४॥ शब्द कहे संजत जो ऐसो,सो सामायक कहियें॥चो. थे गुनगने श्राचरना,उपयोगे जिन्न लहियें ॥ चतुरनर ॥ ५॥ अप्रमत्त गणे र्याको, समनिरूढ नय साखी ॥ केवल ज्ञान दशा थिति उनकी, एवंजूते नाखी ॥ चतुरनर ॥६॥ सामायक नय जो हु न जाने, लोक कहे सो माने ॥ ज्ञानवंतकी संगति नाहीं, रदियो प्रथम गुनगाने ॥ चतुर ॥७॥ सामायक नर अंतर दृष्टे, जो दिनदिन अच्यासें ॥ जग जसवाद लहे सो बैठगे, ज्ञानवंतके पासें ॥ चतुरनर ॥ ७॥
॥पद बत्रीशमुं॥ ॥राग बिहागडो ॥ सबल या बाक मोह मदि राकी ॥ टेक ॥ मिथ्यामतिके जोरे गुरुकी, वचन शक्ति जिहां थाकी ॥ सबल ॥ १॥ निकट दशा बम जम उंची, दृष्टि देतहे ताकी॥न करे किरिया जनकुं नाखे, नहि नवथिति पाकी ॥ सबल ॥२॥ जाजन गत जोजन कोउ बांडी, दसत्तर जिऊं दोरे॥
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