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जश विलास गहत ज्ञानकुं किरिया त्यागी, होत श्रोरकी श्रोरें॥ सबल० ॥३॥ ज्ञानबात निसुनि सीर धूने, लागे निज मतिमी॥जो कोउ खोल कहे किरियाको, तो माने नृप चीठी ॥सबलाज्यु कोज तारु जलमें पेसी, हाथ पाउ न हलावे ॥ झानसेती किरिया सब लागी, युं अपनो मत गावे ॥ सबल ॥५॥ जैसे पाग कोज सिर बांध, पहिरन नाह लंगोटी। सगुरु पास किना बिनु सीखे,श्रागम बात त्युं खोटी॥ सबल०॥६॥ जैसे गज अपने सिर ऊपर, बगर श्रापही मारे ॥ ज्ञान ग्रहत क्रिया तुन्छारत, अल्पबुधि फल हारे ॥ सबल० ॥७॥ ज्ञान क्रिया दोउ शुद्ध धरेगे, शुद्ध कहे निरधारी ॥ जस प्रताप गुननिधिकी जाजं, उनकी में बबिहारी ॥ स. बल ॥ ॥ इति ॥
॥पद सडनीशमुं॥ - ॥राग काफी जंगलो ॥ चेतन अब मोहि दर्शन दीजे ॥ टेक ॥ तुम दर्शन शिवसुख पामीजे, तुम दर्शन जव बीजे ॥ चेतन ॥ १॥ तुम कारन तप संयम किरिया, कहो कहांलों कीजे ॥ तुम दर्शन
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