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जशविलास बिनु सब या फूठी,अंतर चित्त न जीजे ॥ चेतना ॥२॥ क्रिया मूढमति कहे जन केश, ज्ञान थोरकुं प्यारो ॥ मिलत नावरस दोजन नाखे, तुं दो-तें न्यारो ॥चेतन॥३॥ सबमें हे ओर सबमें नाही, पूरन रूप एकेलो ॥ आप खनावे वे किम रमतो, तुं गुरु थरु तुं चेलो ॥ चेतन ॥४॥ अकल अलख प्रनु तुंसब रूपी,तुं अपनी गति जाने॥श्रगम रूप श्रागम अनुसारें, सेवक सुजस बखाने॥चेतन ॥५॥इति ॥
॥पद अडत्रीशमुं॥ ॥राग नीम पलासी ॥ राम चिरीया चेहरीहो ॥ एदेशी ॥ मन कितहुं न लागे हेजेंरे ॥ मन॥ टेक ॥ पूरन श्रास नश्थली मेरी, अविनासीकी सेजेंरे ॥ मन ॥१॥अंग अंग सुनि पिउ गुन हरखे, लागो रंग करेजेंरे ॥ एतो फिटायबो नवि फिटे, करहु जोर जोरेजेरे ॥ मन० ॥२॥ योग अनालंबन नहिं निष्फल, तीर लगो ज्युं वेजेंरे ॥ अबतो नेद तिमिर मोहि नागो, पूरन ब्रह्मकी से. जेरे ॥ सुजस ब्रह्मके तेजेरे ॥ मन० ॥३॥इति ॥
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