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संयम तरंग ल"तरु सोजानी, फल फूल साख न जानी हो। ह० ॥ ग ॥१॥ हेवें योगी बैस्यो ध्यानी, गतागति कोश्न जानी ॥ गरजारव चपला पुति मानी, किरमिर वरसे पानी हो ॥ ह० ॥ग ॥२॥ सुगुरें खाया मोतीपानी, अजरामर दरसानी ॥ निगुरें नूख तिरिषा परिमलानी, नहिं पामे गुण खानी हो ॥ ह० ॥ ग॥३॥ आपहिं निरखे श्रापहिं जानी, श्रागल कहा बखानी॥निधि संयम ज्ञानानंद योगी, श्रमिवस रहे सहलानी हो ॥ह ॥ग॥४॥इति ॥
॥ पद त्रेवीशमुं॥ ॥ राग महार ॥ पिन मेरा निजघर आवै रे॥ पि० ॥ टेक ॥ वालम तुमजणी कुटिला निसिदिन, पर घर घर नटकावै ॥ सानपरें निर्लज गुण श्रादर, रंकजाव दिखलावै रे ॥ पि॥१॥ कवन खोट निजघरमें वालम, धन कोगर धरावै ॥ सेजें सुख मुझ साथे लोगो, जिम मन वंडित पावै रे॥पि ॥२॥ राजा सांजल मोह नृपहनसें, थाशे बहुत खराबी ॥ पिउ तातें कुटिला संग वरजो, घरमें बैसो सिताबि रे॥ पि० ॥३॥ इतनी सांजल या मुज
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