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२४० . . संयम तरंग घरनी, निदचै तेहने जानी ॥ निधि संयम ते वानी धारी, ज्ञानानंद बिलसानी रे ॥ पि० ॥ ४ ॥इति ॥
॥पद चोवीशमुं॥ ॥ राग महार ॥ मेरी तुं मेरी काहाडरे ॥ मेण ॥ टेक ॥ मेरी प्यारी गुण गण नूषित, हिरदय हारपरे ॥ तुजविन नांहिं रखें किण गमें, जिम शिव सगति चरे रे ॥ मे ॥१॥ श्म पियुवाणी सांजल महिषी, परम परमोद वहै ॥ दंपति मिलकर सेजें बैसें, अंतर तत्व गहै रे ॥ मे ॥२॥ अंगो अंग फरसन कर प्रेमें, घन मुगतिक वरसावै ॥ तव निधि संयम ज्ञानानंदें, शीतल नाव निपावै रे ॥मे०१३
॥पद पच्चीशमुं॥ . ॥रागी गोमी॥निजधन काह गमावै॥ संतो निज०॥ टेक ॥ बोए काम बंबूलके तैनें, थांब कहांसें खावे ॥ वेलू पीलत तेल न नीकलें, मूरख जग कहलावै ॥सं॥॥ कोपी फणिधर रिजुता न पामे, तीम जमवंस निहालो ॥ सेलडी गांठे रस नवि पामे, खंजन सेत न जालो ॥सं॥२॥ श्रनुपम दूधे साप खिलावै, हालाहल होय जावै ॥ घनश्री पिन मगसिल
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