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________________ .१४ संयम तरंग नवि नीजै, निंबडे मधूता न पावै ॥ सं०॥३॥ एह विचार करी ना संतो, निधि चारित्र रमावो तव ज्ञानानंद पद अनुजवतां, कमला सहज निपावो ॥ सं० ॥४॥ इति ॥ पद रवीशमुं॥ ॥राग गोमी ॥ तनमय सदागम सेवो ॥ श्रबधू ॥ तम् ॥ टेक ॥ जबलग सदागम सेवन नांहि, पखपातें लपटेवो ॥ रतन पुंज पाहन सुत जाने, चंदन इंधन सम देवो ॥०॥१॥ मोटे मोटेपाहन तरुवर, रतन चंदन दिखलावे ॥ रासन कूतर त्य गज मोलें, लेवे ते मूढ कहावै ॥ १० ॥२॥ रतन कंबल वलकल चीवरसम, चर्वण घृत पूरमाने । सकल वसतु ग मोल चलावै,खोट साच नवी जाने ॥ १०॥३॥ अन्याय पूर जन पदमें रहकर, क्युंकर लाज गमावो ॥ तेहथी निजघर संयम आदर, ज्ञानानंद रमावो ॥१०॥ ॥ इति । ॥पद सत्तावीशमुं॥ - ॥राग बिहाग ॥हमक सान संग वारो ॥ संतो॥ हं० ॥ टेक ॥ पवनवेग निज हय पर चढकर, कुंत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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