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संयम तरंग नवि नीजै, निंबडे मधूता न पावै ॥ सं०॥३॥ एह विचार करी ना संतो, निधि चारित्र रमावो तव ज्ञानानंद पद अनुजवतां, कमला सहज निपावो ॥ सं० ॥४॥ इति ॥
पद रवीशमुं॥ ॥राग गोमी ॥ तनमय सदागम सेवो ॥ श्रबधू ॥ तम् ॥ टेक ॥ जबलग सदागम सेवन नांहि, पखपातें लपटेवो ॥ रतन पुंज पाहन सुत जाने, चंदन इंधन सम देवो ॥०॥१॥ मोटे मोटेपाहन तरुवर, रतन चंदन दिखलावे ॥ रासन कूतर त्य गज मोलें, लेवे ते मूढ कहावै ॥ १० ॥२॥ रतन कंबल वलकल चीवरसम, चर्वण घृत पूरमाने । सकल वसतु ग मोल चलावै,खोट साच नवी जाने ॥ १०॥३॥ अन्याय पूर जन पदमें रहकर, क्युंकर लाज गमावो ॥ तेहथी निजघर संयम आदर, ज्ञानानंद रमावो ॥१०॥ ॥ इति ।
॥पद सत्तावीशमुं॥ - ॥राग बिहाग ॥हमक सान संग वारो ॥ संतो॥ हं० ॥ टेक ॥ पवनवेग निज हय पर चढकर, कुंत
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