________________
ज्ञान विलास
uu
निंदचे साहेब जाणे सारी ॥ सा० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद एकवीशभुं ॥
॥ राग टोडी ॥ सुनो पिया तम सुखसें विचरो री, नंदन वनकी सयल करोरी ॥ सु० ॥ टेक ॥ मेरे बापको बाप मनोहर, बहुविध तरुतल चिरधरोरी ॥ सु० ॥ १ ॥ नारी समीयुत तरुतल बेस्यो, दुः ख सुख की सहु वात करेरी ॥ डुग मंतरी परिकर युत शालो, छायो अंगोछांग मिरैरी ॥ सु० ॥ २ ॥ सासु श्राव सखीयुत श्रा, मनकी मोजां मिल निकस्यो री ॥ धरमराजको परिकर सघलो, आय मि
यो मन शुद्ध विकस्योरी ॥ सु० ॥ ३ ॥ दव चेतन सहु निज परिवारें, वसतां श्रनुजव वात करेरी ॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद साथै, ज्ञान लहर पामे जलीय परेरी ॥ सु० ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ पद बावीशसुं ॥
॥ राग टोडी ॥ दूर रहो तम दूर रहो तम दूर र होरी, मोसुं तो तम दूर रहोरी ॥ दू० ॥ टेक ॥ 5तने दिन श्रमने दुःख दीधुं, थारे संग कर सुख न लहोरी ॥ दू० ॥ १ ॥ तीन लोककी ठगनी तूंदी,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org