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संयम तरंग
अरुण
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नज परमित जसु बाया रे || ग० ॥ टेक ॥ तिनंपर stor प्रन गज मैथुन करत कलोल सुनाया रे ॥ ग०॥१॥ ताद कामको पान चुगत दें, अनादि अनंत तसु संगें रे ॥ ता नीचें एक रहत, मरगवा, खाधो गज निज रंगें रे ॥ ग० ॥ २ ॥ गरदन मित जसु बाहर दीसे, कैसें जीवन वंबे रे ॥ कालांतर तेहथी गज जायो, मृगहन नरपति लंबे रे ॥ ग० ॥ ३॥ जिन दिन जे गज नरपति जाने अपनो खोज ग मावेरे ॥ तव निधि चारित्र ज्ञानानंदें, मातंग श्रा - सन पावे रे || ग० ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ पद पंदरमुं ॥
॥ राग सोयनी ॥ दीपक होत उजियारो ॥ दी० ॥ टेक || बिन दीपक मंदिर अंधियारो, केसें करे रुचियारो ॥ दी० ॥ १ ॥ घोर घटायें रयण अंधारी, जान न पदारथ सारो || दी ० ॥२॥ जमजम योगें ए'कत परिणति, निजगुण दीप वीसारो || दी० ॥ ३ ॥ बिन दीपक चेतन जयो पशुपर, स्वजाव विजाव सधारो ॥ दी० ॥ ४ ॥ सबजग तप जप किरिया विरथा, आतम अनुजव धारो ॥ दी० ॥ ५ ॥ बिन
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