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'प्रस्तावना.
सर्व सुझ जैनबांधवोने मालुम थाय जे था श्री राग्योपदेशक विविधपद संग्रह." नांमनो श्र५ रमणीक, वैराग्यथी नरेलो, संसार स्वरूपने तावनारो, तथा पदोनां चमत्कारोथी नरेलो ग्रंथ थापणा महामाननीक उपाध्याय श्री यशोविजयजी: विनयविजयजी तथा ज्ञानशारजी महाराजें रचेल , तेमां प्रथम "जस विलास" पंडित यशोविजयजी कृत, तथा “विनय विलास" पंडित विनय विजयजी कृत, अने "ज्ञान विलास” पंडित ज्ञान सारजी कृत . आग्रंथ एटलो तो रसिक तथा जैनवर्गना श्रावक, श्राविकाउँने माटे उपयोगी जे केतेनुं अत्रे प्रस्तावनामां कंश पण वर्णन नहि करतां, अमो ते ग्रंथ, श्राधथी ते अंतसुधि वांचीने तेनो रहस्य हृदयमा धारण करवानी अमारा सुज्ञ जैन बांधवोने जलामण करीएं बयें तथा केटलाएक दृष्टी दोष अनें बुधि दोष रही गया हशे तेनुं अ.
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