SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विनयविलास बू ॥ पांचो ॥३॥ चोर गोरे जहां मिलि श्राये, दोनुकुं मदप्याला पाए ॥ रथ जंगल में जीरण कीना, मालधनीका उदारी लीना ॥पांचो॥॥धनी जग्या तब खेड्डु बांध्या, रासी परांना से सिर सांध्या ॥चोर जगे रथ मारग लाया, अपना राज बिनय जिऊ पाया ॥ पांचो० ॥ ५॥ इति ॥ ॥पद बावीशमुं॥ ॥राग सोरठ ॥ चतुर विचारो चतुर विचारो, ते कुण कहियें नारीजी ॥ पीउथी क्षण एक न रहे श्रलगी, कुलवंती अति सारीजी ॥ च ॥१॥ ना. चे माचे प्रियसुंराचे, रमे जमे प्रीय सार्थेजी ॥ एक दिने सा बाली तरुणी, नवि ग्रहवाये हाथजी॥०॥ ॥२॥ चीर चीवर पहेरी सा सुंदरी, उंडे पाणी पेसेजी ॥ पण जीजाये नहीं तस कांक्ष, अचरज ए जग दीसेजी ॥ च ॥३॥ वादल काले मरे ततंकालें, पातप योगें जीवेजी ॥ अंधारामां जो निसि जाय, तो देखाउँ दीवेजी ॥ च ॥४॥ अवधि क हुं बु मास एकनी, थापो थरथ विचारीजी कीर्ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy