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________________ ४ विनयविलास ए अंत होयगा न्यारा ॥ घोरा ॥१॥ चरे चीज अरुमरे केदसुं, उवट चले अटारा ॥ जीन करे तब सोया चाहे, खानेकुं हुशिधारा ॥ घोरा ॥२॥ खूब खजीना खरच खिलावों, यो.सब न्यामत चारा॥ सवारीका अवसर होवे, तब गलिया होवे गमारा ॥ घोराण॥३॥ बिनु ताता बिनु प्यासा हो वे, खिजमत (बहुत) करावनहारा ॥ दूर दोर जंगल में मारे, रे धनी बिचारा ॥ घोरा ॥४॥कर हो चोकमा चातुर चोकस, यो चाबक दोयचारा ॥श्न घोरेकुं विनय सिखाउँ, युं पावो नवपारा॥घोरा॥५॥ ॥पद एकवीशमुं॥ ॥राग आशावरी ॥ पांचो घोरे एक रथ जूता, साहिब ऊसका जितर सूता ॥ खेडु उसका मद मतवारा, घोरेकुं दोरावनहारा ॥ पांचो ॥१॥ टेक ॥ घोरे जूठे ओर ओर चाहे, रथकुंफिरि फिरि उवट वाहे ॥ विषम पंथ चिहुं उर अंधियारा, तोनि न जागे साहिब प्यारा ॥ पांचो॥२॥ खेर रथकुं दूर दोरावे, बेखबर साहिब फुःख पावे ॥ रथ जंगलमां जाय असुळे, साहिब सोया कबुथ न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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