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विनय विलास
दिशाकी खमकी खोलो, (तो) बाजे अनहद तूरा ॥ साधु० ॥ ३ ॥ पंचभूतका नरम मिटाया, बड़े मांहिं समाया ॥ विनय प्रभुसुं ज्योत मिलि जब, फिर संसार न श्राया ॥ साधु० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद ब्वीशसुं ॥
॥ राग गोमी ॥ शांति तेरे लोचन हे अनियारे ॥ शां० ॥ टेक ॥ कमल ज्यों सुंदर मीन ज्यौं चंचल, मधुकरथी प्रति कारे ॥ शां० ॥ १ ॥ जाकी मनोहरता जीत बनमें, फिरते हरिन बिचारे ॥ चतुर चकोर पराजव निरखत, बपरे चुनत अंगारे ॥ शां० ॥ ॥ २ ॥ उपशम इसके अजब चकोरे, मानो बिरंची संजारे || कीर्त्तिं विजय वाचक को विनयी, मोकों हे अति प्यारे || शां० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद सत्तावीशमं ॥
॥ राग गोडी ॥ तोलों बेर बेर फिर आवेंगें, जीऊ जीवन मेरे प्यारे पीयुकी, जो जो सोजन पावेंगे ॥ तोलों ||१|| बिहर दिवानी फिरुं हुं ढूंढती, सेज न साज सुहावेंगे ॥ रूपरंग जोबन मेरी सहियो, पीयु बिन केसें देह देखावेंगे ॥ तोलों० ॥२॥ नाथ
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