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________________ विनय विलास gu निरंजन के रंजनकुं, बोत सिणगार बनावेंगे ॥ करले बीना नाद नगीना, मोहनके गुन गावेंगे ॥ तोलों० ॥ ३ ॥ देखत पीयुकुं मनि मुगताफल, जरी जरी थाल बधावेंगे ॥ प्रेमके प्याले, ग्याननी चाले, विरहकी प्यास बुजावेंगे ॥ तोलों० ॥४॥ सदा रही मेरें जी में पीऊजी, पीयुमें जीत मिलावेंगे ॥ विनय ज्योतिसें ज्योत मिलेगी, तब इहां वेह न श्रावेंगे ॥ तोलों० ॥ ५॥ इति ॥ ॥ पद अठ्ठावीशमुं ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ मेरी सजनी कृषन चंद्रानन नमुं वारिषेण जगवंत ॥ वर्द्धमान जिन प्रणमियें, लहीयें सुख अनंत ॥ मेरे श्रतम सासय जिन मुख जोय, जिम सासय सुख होय ॥ मेरे श्रातम० ॥ ॥ १ ॥ ए श्रकणी ॥ जवन पतिनां जवन बहोत्तेर, लाखने सातज कोमी ॥ एटले प्रासादे कहा, जिन चार नमुं करजोकी ॥ मे० ॥२॥ ज्योतिषी व्यंतर तणा: जे, नगर विमान संख, तिहां असंख्य प्रासादें कह्या जिन, चार नमुं सह संख ॥ मे० ॥३॥ तिर्बे लोकें गुण सजी, अधिक शत बत्रीश || जिन जवन तिहां चार जिन ए, नमतां पूगे जगीस ॥ मे० ॥ ४ ॥ लाख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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