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विनयविलास चोरासी सहस सत्ता, णव अधिक वीश ॥ उडून लोक प्रासाद जिन ए, नमियें नामी शीश ॥मे॥५॥ पंचवर्ण उदार मणिमय, सप्त दस्त प्रमाण ॥ केश धनु सय पंच परिमित, एजिन मुरति जाण ॥ मे०॥ ॥६॥ इंसादिक सुर सयल पूजे, करे समकित सुछ॥केसर चंदन अगर पूजा, रचे नाव विशुद्ध ॥ मे० ॥ ७॥ घणा सुरवर लहिये जिनपद, पूजतां ए जिन चार ॥ ध्यान धरतां एह प्रजुनूं, लहियें जवनो पार ॥ मे ॥ ॥ श्री कीर्ति विजय उवकाय केरो, लहे ए पुण्य पसाय ॥ सासता जिन थुणिये एणीपर, विनय विजय उवजाय ॥मे ॥ए। इति॥
॥ पद ओगणत्रीशमुं॥ ॥ राग भूपाल ॥ श्री विमलाचल मंगन आदिजिना, प्रह उठी वंदो एक मनां ॥ माता मरुदेवानंदुना, नावें दीगे नयन श्रानंदना ॥ वि० ॥१॥ रवि उदयो जग पंकजवना, विकसत बूटा अलि बंध. नां॥होवे निंदित जो निज लोचनां, श्रातमहितमन थालोचना॥वि॥॥चंचल ए तन धन जोबनां, बीजो सरण नको जिन जीवनांनाइसफल करोरे जी
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