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विनय विलास
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वनां, करि विनय जजो जगजीवनां ॥ वि० ॥५॥ इति ॥ ॥ पद त्रीशमुं ॥
॥ सुख पूरण सोना घणी, प्रभुपास जिणंदा ॥ राज रोग र जयहरे, जिम घन अरविंदा ॥ सु० ॥ ॥ १ ॥ अश्वसेन वामा तणो, सुत नमे सुरिंदा ॥ नाम जपतां तेनुं, बूटे जब फंदा ॥ सु० ॥ २ ॥ पन मावइ सानिध करे, धनद धर शिंदा ॥ जजो स्वामी एक चित्तयुं, मधुकर अरविंदा ॥ सु० ॥ ३ ॥ प्रभु देखी मन उल्लसे, जेम कुमुदिनी चंदा ॥ सार वखत तदीयो, एम विनय जलिंदा ॥ सु० ॥ ४ ॥ ॥ पद एकत्रीशमुं ॥
॥ राग ॥ रामकाली ॥ अजब जोत हे तेरी, हो श्रम, जब जोत दे तेरी ॥ तुं परमातम तुं परमागम, लबद्धि रिद्धि सब तेरी ॥ हो० ॥ १ ॥ सिद्ध बुद्ध हे तुं सिद्धि साधक, तुं गुनकुं सम चंगेरी ॥ तेरो गुन गोरस गुनवेकुं, मुदित जइ मतिं मेरी ॥ हो० ॥ २ ॥ चिदानंद चेतन तुं चातुर, सुरति सुद्ध तुं दे चेरी ॥ जूलो कहा जमे या जवमें, जइ अनंती फेरी ॥ हो० ॥ ३ ॥ दूर नहिं या घटमें
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