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जशविलास मिथ्यामति हे हांसी ॥ चेतन ॥ ७ ॥ श्रासा बोरें रहे जो जोगी, सो होवे सिव वासी॥ उनको सुजस बखाने ज्ञाता, अंतरदृष्टिप्रकासी ॥चेतनाति॥
॥पद बहं॥ - ॥राग कनडो॥ अजब गति चिदानंद घनकी ॥ टेक ॥ जव जंजाल शक्तिसुं होवे, उलट पुलट जिनकी ॥ अजब॥॥नेदी परनति समकित पायो, कर्मवज्र घनकी ॥ जैसी सबल कठिनता दीसे, कोमलता मनकी ॥ अजब ॥२॥ जारी नूमि नयंकर चूरी, मोहराय रनकी ॥ सहज अखंड चंगता याकी, बमा विमल गुनकी ॥ अजब० ॥३॥ पापवेली सब ज्ञान दहनसे, जाली नववनकी ॥ शीतलता प्रगटी घट अंतर, उत्तम लबनकी ॥ अजब ॥४॥ उकुरा जगजनते श्रधिकी, चरन करन घनकी ॥ शक्कि वृद्धि प्रगटे नीज नामे, ख्याति अकिचनकी॥ श्रजब० ॥ ५॥ अनुजवबिनु गति कोउ न जाने, अलख निरंजनकी ॥ जस गुन गावत प्रीती निवाहो, उनके समरनकी ॥ १०॥६॥
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