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जशविलास
॥पद सातमुं॥ ॥ राग सारंग ॥ जिउ लाग रह्यो परजावमें, टेक ॥ सहज खंजाव लखे नहिं अपनो, परियो मोह जंजालमें ॥ जिनम् ॥१॥ वं मोद करे नहि करनी, डोलत ममता वाउमें ॥ चहे अंध ज्यु जलनिधि तरवो, बेठो काणे नाउमें ॥ जिज ॥२॥ अरति पिशाची परवश रहेतो, खिनहु न समस्यो श्राउमे॥ श्राप बचाय सकत नहिं मूरख, घोर वि. षयके घाउमें॥ जिज०॥३॥पूर्वपुण्य घन सबहि ग्रसतहे, रहत न मूल बढाउमें ॥ तामें तुज केसे बनी श्रावे, नय व्यवहारके दाउमें ॥ जिज ॥४॥ जस कहे अब मेरो मन लीनो, श्रीजिनवरके पाउमें ॥ याहि कल्यान सिधिको कारन, ज्युं वेधकरस खाउमें ॥ जिउ० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥पद आठमुं॥ ॥राग बिलाउल ॥ मेरे साहिब तुम हि हो,श्री पास जिणंदा ॥ खिजमतगार गरीब हुँ, मे तेरा बंदा ॥ मेरे ॥१॥ टेक ॥ में चकोर करूं चाकरी, जब तुमहिं चंदा ॥ चक्रवाक में दुश् रहौं, जब
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