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जशविलास तुमहिं दिणंदा ॥ मेरे ॥२॥ मधुकरपरे में रन. जनुं, जब तुम अरविंदा ॥ नक्ति करौं खगपति परे, जब तुमहिं गोविंदा ॥ मेरे ॥ ३॥ तुम जब गर्जित घन नये, तब में शिख बंदा ॥ तुम सायर जब में तदा, सुरसरिता अमंदा ॥ मेरे ॥ ४ ॥ दूर करो दादा पासजी, नवकुःखका फंदा॥ वाचक जश कहे दासकुं, दियो परमानंदा ॥मेरे॥५॥इति॥
॥पद नवमुं ॥ ॥ राग सामेरी ॥ मेरे प्रजुसुं प्रगट्यो पूरन राग ॥ टेक ॥ जिन गुन चंद किरनसुं उमग्यो, सहज समुख अथाग ॥ मेरे ॥ १ ॥ ध्याता ध्येय जये दोउ एकहु, मिट्यो नेदको नाग ॥ कुल बिदारी बवे जब सरिता, तब नहिं रहत तडाग ॥ मेरे ॥ ॥२॥ पूरन मन सब पूरन दीसे, नहिं कुबिधाको लाग ॥ पाल चलतपनही जे पहिरे, नहि तस कंटक लाग॥ मेरे॥३॥जयो प्रेम लोकोत्तर जूगे, लोक बंधको ताग ॥ कहो कोउ कबु हमतो नरूचे, बुटि एक वीतराग ॥ मेरे ॥४॥ वासत हे जिन गुन मुऊ दिलकुं, जेसो सुरतरु बाग ॥ ओर वास
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