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१५६ ज्ञानविलास तुंग ॥ टेक ॥ बालो नोलो हम बालूडो, नहिँ क्यु३ जाने गूढ ॥ बागामांहे खेले अह निश, वात विचारो मूढ ॥ तुं० ॥१॥ खेलन मिस डोरो थारा पासे, रमण करे चित्त खोल ॥ तुं फुसलाइ नित्य जटकावे, श्तयुत करे मममोल ॥ तुं॥२॥ निर्दय निर्धन नहिं तुझ सरिखो, नहिं क्युं माने निगेर ॥ इतने चारित ज्ञानानंदे, बोरो लियो चित्त गोर ॥ तुंम् ॥३॥ इति ॥
॥पद चोशउमुं॥ ॥ राग बिहाग ॥ जगगुरु निरपख कोन दिखाया ॥ नि० ॥ टेक ॥ अपनो अपनो हठ सह ताने, कैसे मेल मिलाय ॥ वेद पुराना सबहीं थाके, तेरी कवन चलाय ॥ ज० ॥१॥सब जग निज गुरुताके कारन, मदगज उपर गय ॥ ग्यान ध्यान कबु जाने नांहिं, पोतें धर्म बताय ॥ ज ॥२॥चोर चोर मिल मुलकनें खूट्यो, नहिं को नृप दिखलाय ॥ किनके पागल जा पूकारे, अंधो अंध पलाय ॥ ज० ॥३॥ श्रागम देखत जग नवि निरखं, मन गमता पख नाय ॥ तिनतें मूरख धर्म धर्म कर, मत
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