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ज्ञानविलास
१०१ राज लसकर तमसाथें, मोटो मंतरी संग लरोरी ॥ प्या ॥१॥ मोहराज मकरध्वज गजपर, आयो तनखिन कोप करेरी ॥ चल सुत मंतरियुत बहु लसकर, रणकारण सावधान खरेरी ॥प्या॥२॥ वालो संयम बक्तरधारी, धरम टोप धर खमगगहेरी॥आगमसाथें रणमें जजे, पुर्धर रिपदलहनन गहेरी ॥ प्या० ॥३॥ सातनो खयकर तीन पगड्या, थाठ शोलनो घात करेरी ॥ एक एक षट
गने मारूं, चोथो क्रोधनो घात चरेरी ॥ प्या० ॥ ॥४॥ दशमे सुखम लोन पिडामी, कूद्यो बारम गन लहेरी॥मोहराजने गजसे पाड्यो, एकहिं हाथें घात वहेरी॥प्या ॥५॥जीत नगारो तेह वजायो, तेरमी में सुख विचरोरी ॥ काची दोय घमी रण जीती, चारित ज्ञानानंद वरोरी ॥प्या०॥६॥इति॥
॥ पदपच्चीशमुं॥ ॥ राग टोमी ॥ मेरो पिया हे परम सन्यासी, कवन करे हे पियाकी हांसी ॥ मे ॥ टेक ॥ वरजित ईमा पिंगला मारग, सुखमना घर अनिलाषी॥ मे ॥१॥ यम नियम थासन अनुरंगी, प्रत्याहार
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