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________________ जश विलास ३३ सरल अरविंद ॥ नयन चकोर विलास करतुहे, देखत तुम मुख पूरनचंद ॥ जय० ॥५॥ दूर जावे प्रजु तुम दासनतें, कुःखदोहग दालिज अघदंद ॥ वाचक जस कहे.सहस फलतें तुमहों, जे बोले तु. म गुनके वृंद ॥ ज० ॥६॥ ॥पद बेतालीशमुं॥ ॥राग धन्याश्री॥ वामानंदन जगदानंदन, सेवकजन श्रासा विसराम ॥ नेक निजर करी मोहि पर निरखो, तुम हो करुनारसके धाम ॥ वामा० ॥ ॥१॥टेक ॥ इतनी नूमि प्रनु तुमही धान्यो, परिपरि बहुत बढाइ माम ॥ अब उ चार गुनान बढावत, लागत हे क्या तुमकुं दाम ॥ वामा०॥ ॥२॥श्रह निसि ध्यान धरुं हुं तेरो, मुखथी न विसारूं तुम नाम ॥ श्रीनयविजय विबुध सेवक कहे, तुम हो मेरे आतमराम ॥ वामा ॥३॥ पद तेतालीशमुं॥ ॥ राग काफी ॥ अजीत देव मुफ वालहा, ज्यु मोरा मेहा ॥ टेक ॥ ज्यु मधुकर मन मालती, पंथी मन गेहा ॥ अजीत ॥१॥ मेरे मन तुंहि रुच्यो, प्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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