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जशविलास तेह पुरुष धन धन ॥ सु०॥ १६ ॥ परम पुरुष प्रजु सामलाजी,मानो ए मुज सेव ॥ दूर करो नव श्रमलोजी, वाचक जस कहे देव ॥ सु०॥ १७॥ इति ॥
॥ पद पंचोतेरमुं॥ ॥राग गोडी ॥ संजव जिन नयन मिल्योहे, प्रगटे पुण्यके अंकूर ॥ ए श्रांकणी॥ तबथें दिन मोही सफस वस्यो ॥ अंगणे अमीये मेह बुग, जनम तापको व्याप गयो हे॥ संज॥१॥ जैसी नक्ति तैसी प्रनु करुना, स्वेत संखमें दूध मिल्यो हे॥ दर्शनथें नवनिधि रिधि पाश्, फुःख दोहग सब दूर टल्यो हे ॥ संज० ॥२ ॥ मरत फिरत हे दूरहिं दिलथे, मोहमदल जिणे जगत्र जल्यो हे॥ समकित रत्न लहुं दरिसनसें,अब नवि जालं कुगति रख्यो हे॥ संज ॥३॥ नेह नजर नर निरखनही मुज, प्रजुसुं हैयडो देज हव्यो हे॥ श्री नयविजय विबुध सेवककुं, साहेब सुरतरु होय फल्यो हे॥ ॥ संज० ॥४॥ इति ॥
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