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________________ विनयविलास ॥ पद तेत्रीशमुं॥ ॥ सरसति • पाये लागुं, मारे वचन विलास ॥ विजयाणंद सूरिंदनी, जावें जणशुं नास ॥ सहगुरुना गुण गातां, माता हो सुखपास ॥ नरहरि नारी सारी, होय घर अंगण दास ॥१॥ सकल कला अन्यासी, वासी रहे सुगम ॥ श्रीमंत साइनो नंदन, वंदन श्रति श्रनिराम ॥ महिमाहे महिमा निधि, जासतणुं वरनाम ॥ जापथी पाप टले सब, लहिये दोलत दाम ॥२॥ जास तणा गुन गाजे, बाजे देश विदेश ॥ चरण कमल थाणंदे, वंदे सयल नरेस ॥ तास तणा गुण बोर्बु,खोलु मुगति निवेश ॥मानव नव मुख जीहां, दीहा सफल करेस ॥ सिणगार देयनो जा यो, गायो नक्तियें भाज॥ पुण्य अनंता लीधां, सीधां वंडित काज ॥ सोनागी वेरागी, सुंदर मुनि सिरताज ॥ नव सायर उतारे, तारे जिम वमजहाज ॥ ॥४॥ कीर्तिविजय उवकाय पसाय लश्नलेनाव ।। गपति गायो पायो, ऊलट सरले नाव ॥ जिहांलगें चंब दिवाकर, मानस नाम तलाव ॥ तिहांलगें जयवंता गुरु, होजो पुण्यप्रजाव ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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