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जशविलास गुनरस श्रागें, रुचत न हें हम अमियें॥हा॥इति॥
___॥पद चोवीशमुं॥ ॥राग नह ॥ मुखदारे सुखदाइ, दादो पासजी सुखदा ॥ ऐसो साहिब नहिं कोउ जगमें, सेवा कीजें दील ला ॥ सुख ॥ १ ॥ सब सुखदाइ एह निनायक, एहि सायक सुसहाश् ॥ किंकरकुं करे शंकर सरिसों, श्रापे अपनी उकुरा ॥ सुख०॥ ॥२॥ मंगल रंग वधे प्रनु ध्याने, पापबेली जाए करमाश् ॥ सीतलता प्रगटे घट अंतर,मिटे मोदकी गरमा ॥ सुख ॥३॥ कहा करुं सुरतरु चिंतामनिकुं, जो में प्रनु सेवा पाइ॥श्री जसविजय कहे द. र्शन देख्यो॥घर अंगन नवनिधियाशासुख ॥॥इति
॥पद पचीशमुं॥ ॥ राग देशाख ॥ अबमें साचो साहिब पायो, टेक ॥ याकी सेव करतहुँ याकुं, मुज मन प्रेम सुहायो॥ अब० ॥१॥ गकुर श्रोरन होवे अपनो, जो दीजे घर मायो ॥ संपति अपनी खिनमें देवे, वेतो दिलमें ध्यायो॥अब० ॥२॥रनकी जन करत चाकरी, दूरदेश पाय घासे ॥अंतरयामी ध्याने
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