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________________ जशविलास दीशे, वेतो अपने पासें ॥ श्रब० ॥ ३॥ श्रोर कब हुँ कोउ कारन कोप्यो, बहुत उपाय न तूसे । चिदानंदमें मगन रहतुहे,वेतो कबहुं न रुसे॥श्रबण॥४॥ थोरनकी चिंता चिंतीन मिटे,सब दिन धंधे जावे ॥ थिरता गुन पूरन सुख खेले, वेतो अपने जावें ॥ श्रवण ॥ ५॥ पराधीन हे जोग शोरको, जातें होत वियोगी॥सदा सिक समता विलासी, वेतो निजगुन जोगी॥अब० ॥६॥ ज्यौं जानो त्यों युगति न जानो, में तो सेवक उनको॥पक्षपात तो परसुं होवे, राग धरतहुँ गुनको ॥ श्रब० ॥ ७॥ नाव एक हे सब ज्ञानीको, मूरख नेद न नावे ॥ अपनो साहिब जो पहिचाने, सो जस लीला पावे ॥१०॥७॥ ॥ पद बवीशमुं॥ ॥ राग नूप कल्याण ॥सयनकी नयनकी बयनकी बबी नीकी ॥ मयनकी गोरीतकी लगी मोहि श्रवियां ॥ मनकी लगन जर अंगनीय लागे थली, कल न परत कबु कहा कहुं बतीयां॥सयनकी॥१॥ मोहन मनाउ मानी, कहा बनी रति गनी, शिवा देवीके नंदन मानो बिनतियां ॥ गुन गहो जस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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