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संयम तरंग ॥१॥विविध विषमय देखि नवि ने निर्लेपी वीतरागो.॥ शत्रु मित्र समजाव रहे नित्य, दरद्धासन ध्यान जागो ॥ ज०॥२॥ योग निंद लय जावें जिनने, कोइ न करे अपगारो ॥ मीत समान सेवे ज. सुरिपुगण, वचन फले जगसारो ॥ जप ॥३॥ तसकर श्वापदनो जसु नवि जय, पंचविजय लहे सारो ॥ निधिचारित ज्ञानानंद श्रादर, परमानंद निहारो॥ ज०॥४॥ इति ॥
॥पद त्रीजुं॥ ॥राग नैरवी ॥ प्राण पिया तम ऐसी सबजी पीवोरे ॥ प्राण ॥ टेक ॥ निज सुन परिणति अनुपम सबजी, तिखीमरी विवेक लेवो रे॥ प्रा० ॥ तत्त्व विचार विविध सुमसाला, उपसम कंकर कूकी मेवो रे॥ प्रा० ॥१॥ कुटिल निवृत्ति समता प्रेमें, संयम रगडा ताणो रे ॥ प्रा०॥ धरम शुकल पय सुरजीसर केरा, संवर साफ गुडगनो रे ॥ प्रा॥ ॥ श्रनुन्जव ज्ञानका रतन पियाला, नर नर समता पिलावे रे ॥ प्रा० ॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद योगी, पीवत ध्यान लगावे रे ।। प्रा० ॥३॥ इति ॥
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