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________________ ज्ञान विलास २२७ 3 नांरी योगें साधो, तुम गति च दिसी फेरो ॥ सा० ॥ ते तुम मोह मदपान कराइ, इतउत कलह विखेरो ॥ सा० ॥ १ ॥ निर्जर पण एहनी थाह न पामे, नूपर पंकिता जाणो ॥ इंद्राणी के पगतल लोटे, इंद्रादिक परमाणो ॥ सा० ॥ २ ॥ नारी प्रेम विलूधें ढोलो, नहिं क्युं समजे घेलो ॥ सा० ॥ तिनतें नव निधि चारित संगें, ज्ञानानंदमें खेलो ॥ सा० ॥ ३ ॥ ॥ पद गनोतेरमुं ॥ ॥ राग रामग्री ॥ नारी प्रेम लगावो, साधो जाएँ, नानी नारी रमावो ॥ सा० ॥ टेक ॥ इस संयोगें योय जगावो, सहज शक्ति शुभ जावो ॥ सा० ॥ निज परजावने देखे योगी, क्षणभर अंग लपटावो ॥ सा० ॥ १ ॥ अविनाशी अकलंकता तुम गुन, ते हिज शुभ श्राचारो ॥ सा० ॥ जम पुल इन जावसें न्यारा, एहनी ममता वारो ॥ सा० ॥ २ ॥ महोटा सहयोगी पण वंडे, एहनो संग सुखकारो ॥ सा० ॥ निधि चा रितं ज्ञानानंद प्रेमें, खेले नारी प्यारो ॥ सा० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद सीतेरमुं ॥ ॥ राग रामग्री ॥ अनुभव योग रमावो, साधो For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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