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________________ go विनय विलास नमें मूंकी रह्यो मेरे लाल, इन विधि गया अनंता काल || अब सुनेका बोडो ख्याल, या सब जूहा मिथ्या जाल | जागो० ॥ ३ ॥ या अपावन माया सेज, उसपर पिऊका इतना हेज ॥ सुकलध्यान पखारो अंग, युं प्रगटे तुम निर्मल रंग ॥ जागो० ॥ ४ ॥ पिन निरखो जिनराज दिनंद, कड़े मति नारी मिटे युं निंद || आप संजालो खोली नेत, विनयकरी विनको पि चेत ॥ जागो० ॥ ५ ॥ ॥ पद शोलमुं ॥ ॥ राग ॥ हुसेनी ॥ खुदा के बंदे वे सीर मत व्यो बज गारी ॥ एदेशी ॥ सुन सुहागिन बे दिलकी बात - मारी ॥ टेक ॥ में सोदागर दूर बिदेशी, सोदाकरने खाया ॥ देखत तोकुं नूलिगया सब तो दिसुं चित्त लाया || सुन० ॥ १ ॥ निसी वासर तेरे रस राता, अपने काम न बूके || तेरे विरह दरदतें - रपूं, क्युं दुस्मनसें ॥ सुन० ॥ २ ॥ सुंदरी तें कबु कामन कीया, तुज बिनु पलक न जावे ॥' लोचन लागी रहे तेरी लालच, र कटु न सोहावे ॥ सुन० ॥ ॥ ३ ॥ अरथ गरथ सब तुजे खिलाया, दमरा ए For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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