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________________ जशविलास ५३ बूटी खज, लोनवश मूढ मति ॥ जब० ॥४॥बडे बडे बहु पूर्वधारी, जिनमें सक्ति इति ॥ सोनी उपसम डोमी बीचारे, पाये नरक गति ॥ जब० ॥५॥ कोउ गृहस्थ कोन होवे वैरागी, जोगी जगत जति॥ अध्यात्म जावें उदासी रहेगो, पावेगो तबही मुगति । जब० ॥ ६॥ श्री नय विजय विबुध वर राजे, जाने जग कीरति॥श्री जस विजय उवद्याय पसायें, हेम प्रजु सुख संतति ॥ जब० ॥ ७॥ इति ॥ ॥पद अगणोतेरमुं॥ ॥राग रामग्री ॥ चंडप्रजु जिनराज राजे, वदन पूनम चंदरे॥नविक लोक चकोर निरखत, खदे परमानंदरे ॥ चं ॥ १॥ महमहे महिमायें जमर, रस जस अरविंदरे ॥ रणफणे नविजन चमर रसिया, लहि सुख मकरंद रे ॥ चं॥२॥जस नामें दोलत अधिक दीपे, टले दोहग दंदरे ॥ जसगुण कथा जवव्यथा नांजें, ध्यान शिवतरु कंद रे ॥ चं०॥ ॥३॥विपुल हृदय विशाल जुजयुग, चलत चाल गयंदरे ॥ अतुल अतिसय महिमा मंदिर, प्रणत सुर नर वृंदरे ॥ चं०॥ ४ ॥ हुँ दास चाकर देव तोरो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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