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ए६..
ज्ञान विलास नि॥१॥पर श्रासा खिन खिन रमवमियो, रहकर देख्यो खूब तमासा ॥ नि ॥ श्रासा दासिके वस कूकर, जटके गलिगलि घरघर वासा ॥ नि॥ ॥२॥ निज श्रासीकी त्रास करंता, जटपट पूरण होवे श्रासा ॥ नि० ॥ एह विचार करी जाइ साधो, पामो नवनिधि चारित खासा ॥ नि० ॥३॥
॥पद अढारमुं॥ ॥ राग रामकली ॥कुण जाणे साहेबका वासा, जिहां रहतादे साहिब साचा ॥ कु० ॥ टेक ॥ साधु होय के जलमें बूडे, जिम मबलीकाहे जल वासा ॥ कु० ॥१॥ बामण होयकर गाल बजावे, फेरे काठकी माल तमासा ॥ गौमुखि हाथें होठ हलावें, तिणका साहिब जोवे तमासा ॥ कु०॥२॥ मुहां होयकर बांग पुकारे, क्या कोई जाणे साहिब बहेरा ॥ कीडीके पग नेउर वाजे, सोबी साहि'ब सुनता गहेरा ॥ कु० ॥ ३ ॥ कंठ काठ केश मुहमो बांधे, काला चीवर पहरे तमासा ॥ बोत अडोतका पानी पीवे, नद अन नोजनकी श्रासा ॥ कु० ॥४॥ साधु नए असवारी बेसे, नृपपरनीति
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