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ज्ञानविलास
॥पद शोलमुं॥ ॥राग रामकली ॥ नानारंग गहन कानन विच, चार दिनारा देख तमासा ॥ ना० ॥ टेक ॥ रंग सुरंग फूली वनराश, नित नित देखत रहत उहा. सा॥ ना ॥१॥ बोटे मोटे बहु विध तरुवर, करम हेतु मदमाता ॥ पंच सखी सुख पवने हिलमिल, अंगोअंग जूले रंगराता ॥ ना० ॥२॥ केतेश् पात फूल फल जडगए, केतेश् पाके पाता ॥रह गश् सांख पुण वसंत समय गत, केतेश नयगए फूल फल पाता ॥ ना० ॥३॥ फिर निर धूत पवन योगें कर, जलबुद बुदका वासा ॥ग दिन चटपट सबही चलगए, जिम जल बिच बतासा ॥ ना० ॥४॥ उलट पलट तरु देख्यो वनमें, तुरतही जयो उदासा ॥ यातें नवनिधि चारित्र नंदें, झानानंद सुख खासा ॥ ना० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥पद सत्तरमुं॥ ॥ राग रामकली ॥ निज श्रासाका बड़ा बरोसा, पर आसा हे गलकी पासा ॥ नि॥ टेक ॥थापहि परकी आस करतहे, कैसे पूर करे ते साँ।
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