________________
जशविलास ५५ कार न सांजले, पडे अधिक जंजाले ॥ १० ॥३॥ वीर जिन जब हुता विचरता, तव मंखली पूत्तो ॥ जिन करी जड जने श्रादस्यो, श्हां मोह अति धू. तो ॥ १०॥४॥धि नंडार रमणी तजी, नजी श्राप मति रागो ॥ दृष्टि रागें जमाली लह्यो, नवि नवजल तागो ॥ ६ ॥ ५॥ वली श्राचार्य सावय जे, हुओ अनंत संसारो ॥ दृष्टि राग खमति पणे थयो, महानिशीथ विचारो ॥ १० ॥६॥ हुवे जि. न धर्म थाशातना, अजाण्युं कहे रंगें ॥ मंमुथा. गदें जिनवरें, वंदियो जगवर अंगें ॥ ६ ॥७॥ ग्रामना नटने मूर्खनो, मिख्यो जेहवो जोगो ॥हष्टिराग मिल्यो तेहवो, कथक सेवक लोगो ॥ १० ॥ ॥ ॥ श्रापण गोउडी मीठमी, हठीने मन लागे ॥ ज्ञानी गुरु वचन रसियामणां, कटुक तीरस्यां वागे॥ दृ०॥ ए ॥ दृष्टिरागें भ्रम उपजे, वधे ज्ञान गुण रागें ॥ एहुमां एक तुमें श्रादरो, जलो होय जे श्रागें। ६० ॥ १० ॥ दृष्टि रागी कदा मत हुवो, सदा सुगुरु श्रनुसरजो ॥ वाचक जसविजय कहे, हित शिख मन धरजो ॥ १० ॥ ११॥ इति ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org