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जिनपूजासंग्रहं
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श्रीमदुपाध्याय रामचंद्रजीगणी
श्राज्ञानुसार
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मुद्रित किया
ऋषि नानकचंदमे सोधितकरके
बनारस
जैनप्रभाकर प्रेस
सर्व्वत् ११३३ मि० श्रावण बदि १
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Choos
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॥ विज्ञापन ॥
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सकल भविक जनोंकों उचित है कि अपार संसार सागर सेतु श्रीभगवान् दृष्ट स्वरूप जिनेंद्रकी उपासना में निरालस्य हो के अवश्य प्रत्त होना , और वह उपासना प्रवृत्ती भागम के जानही से सुकर और सफल होती है, आगम ज्ञान भी पठन पाठन और ग्रंथों को सुलभतासे सिद्ध होता है, इस हेतु धनि क लोग पाठ शाला और मुद्रायं त्रोंमें यथाशक्ति द्रव्य व्यय करें उसको व्यर्थ न समझे ग्रंथों की सुलभता और विद्या रवि होगी यहतो प्रत्यक्ष फल है परंतु औरभीफल हैं इसमें प्रमाण श्री हेम चंद्र सूरिजी का बचन है “नते नरा दुर्गति मानुवंति नम् कांनवजडखभावं ॥ नचांधतां वुद्धिविहीनतांच ये लेखयंतीजि नस्य वाक्यं ॥ १ ॥ पठति पाठयतें पठतामसौ वसन भोजन पुस्तक वस्तुभि प्रतिदिनं कुरुते य उपग्रह स इह सर्वविदेव भवे बरः २॥ लेखयंति नरा धन्याः ये जिनागम पुस्तकं ते सर्व वाङ्म यं धात्वा सिहि यांति नसंशयः ॥ ३ ॥ ,, इनवचनों में लेखयंति इसका पर्थ यह है कि अक्षर विन्यास अर्थात् कागज पर अ क्षर की रचना, सो लेखनी सेहोय, वा मुद्रासे उसमें कुछ विशे घ नहौं, ऐसे श्रेयस्कर कार्य में प्रवृत्त नहोना यह वडी भ लहै श्री भगवान् उनके सब मनोरथ पूर्ण करै, जो बंग देशभूधरण राय धनपत सिंह बहादुर ऐसे कार्य में उत्साही होके व्यय कर रहेहैं उन्ही के सहायतासे पद रत्नावली १ जिनपूजा संग्रह २ मुद्रित किया है औरसिकाय पुस्तक मुद्रित होरहा है, ऐसे हो सकल भविक लोक प्रत होय विद्या और ग्रंथों की वृद्धि करें जिसेधर्ममुरक्षिरहै भैसी हमारी इच्छा हैं, भगवान शीघ्रपू र्ण करै ॥ इति ॥
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॥ अथ श्री जिन पूजा पछतिः ॥
प्रथम श्री मजिन पूजा करने वाला | अच्छे स्थान में स्नान कर चोटी के केश बांध शुछ बस्त्र पहर के उत्तरासंगकर मुख कोश बांधै पीछे इन मंत्रो सें वास क्षेप तीन तीन वार मंत्र के अष्ट द्रव्य को शुरू करै सोही आचार दिनकर से लिखते हैं।
RA
ने त्रसरूपोहं संसारि जीवः सुवासनः सुमेधः एकचित्तो निरवदार्हत् पूजने निर्व ” निष्पापो जूयासं निरूपद्धवो नूयासं म त्संश्रिता न्येपि जीवा निरवदाहत् पूजने निर्व्यथाः निष्पापाः नूयासुः स्वाहा ॥ ॥ यह मंत्र पढके अपने ललाटमें तिलक करे।
॥अथ जल मंत्र॥
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॥ स्नात्र पूजा॥
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नै श्रापो अपकाया एकेंदिया जीवा नि रवदार्हत् पूजायां निय॑था निष्पापाः शुन गतयः संतु नमेस्तु संघहन हिंसा पाप मह दर्चने स्वाहा ॥
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॥चंदन पुष्प धूप फल अदत शुछि मंत्र ॥
बनष्पतयो बनष्पति काया जीवा एकेंदिया निरवदाइहत् पूजायां निर्व्यथा निरपाया शुलगतयः संतु नमेस्तु संघहन हिंसापाप मर्हदर्चने स्वाहा ॥
॥ अग्नि और दीपक शुछि मंत्र ॥
ने अग्नयो अग्निकाया जीवा एकैदिया निरवदार्हत् पूजायां नियंथाः संतु निर पायाःसंतु शुनगतयः संतु नमस्तु संघहन हिं सा पाप मईदर्चने स्वाहा।
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॥ स्नात्र पूजा ॥
॥श्री जिनायनमः ॥
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॥ अथ स्नात्र पूजा प्रारनः ॥
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॥ पांखडी गाथा ॥ ॥र्दा चोतीसैं अतिशय जुन । यचनाति शय संजुत्त ॥ सो परमेसर देखि नवि सिंहा सण संपत्त ॥१॥
॥ढाल ॥ सिंहासण बैठा जगनाण। देखी नविजन गुणमणि खाण ॥ जे दीठे तुझ निम्मल काण लहिये परम महोदय ठाण॥ १ ॥ कुसुमांजलि मेलो श्रादि जिणंदा ॥ तोरा चरण कमल चो वीस पूजो रे चोवीस सोनागी चोवीस बैरागी चोबीस जिणंदा ॥ कुसुमांजलि मेलो आदि जिणंदा ॥ (ए पढ चरने टीकी दीजे ॥१॥)
॥ गाथा ॥
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॥ पूजा।
जो निय गुण पजव रम्यो। तसु अनुनव ए गत्त ॥ सुह पुग्गल आरोपतां । ज्योति सुरंग निरत्त ॥ १॥
॥ ढाल ॥ __ जो निज आतम गुण आनंदी। पुग्गल संगै जेह अफंदी ॥ जे परमेश्वर निज पद लीन । पूजो प्रणमो जन्य अदीन ॥ कुसु मांजलि मेलो शांति जिणंदा ॥ तोरा चरण कमल चोवीस पूजोरे चोवीस सोनागी चोवी स बैरागी चोबीस जिणंदा कुसुमांजलि मे लो शांति जिणंदा ।
गाथा ॥ निम्मल नाण पयासकर । निस्मल गुण संपन ॥ निम्मल धम्मु वएसकर ॥२॥सो परमप्या धन ॥२॥ .... ॥ढाल ॥
लोका लोक प्रकाशक नाणी नवि जन तारण जेहनी वाणी ॥ परमा नंद तणीनी साणी। तसु भगत मुऊ मति ठह राणी । कु. समांजलि मेलो नेमि जिणंदा। तोरा चर ण कमल चोबीस पूजोरे चोबीस सोभागी
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चोवीस बैरागी चोवीस जिणंदा ॥३॥ -
गाथा ॥ जेसिद्धा सिज्जतिजे। सिकि स्संति अणंत जसु आलंबन ठबिय मन । सो सेवो अरि हंत ॥१॥
॥ढाल ॥ शिव सुख कारण जेह त्रिकालें । समप रिणामें जगत निहालें। उत्तम साधन मार्ग दिखाले इंदा दिक जसु चरण पखालें । कुसु मांजलि मेलो पार्श्व जिनंदा तोरा चरण कमल चोबीस पूजोरे छोघीस सोनागी चो बीस बैरागी चोबीस जिणंदा कुसुमांजलि मेलो पार्श्व जिणंदा ॥ ४ ॥
॥ गाथा ॥ __ सम्मदिछी देसजय साहु साहुणी सार । आचारिज उवकाय मुणि ॥ जो निम्मल शाधार ॥१॥
॥ ढाल ॥ चोबिह संधै जेमन धास्यो । मोक्ष तणों कारण निर धास्यो । बिबिह कुसुम वर जात गहेवी । तसु चरण प्रण मंत ठवेवी।
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कुसुमांजलि मेलो बीर जिणंदा तोरा चरण कमल चोवीस पूजोरे चोवीस सोनागी घो वीस वैरागी चोवीस जिणंदा कुसुमांजलि मेलो बीरजिणंदा॥
॥ इति पांखडी गाथा ५॥
॥ बस्तु ॥ सयल जिन वर सयल जिन वर नमिय मनरंग । कल्लाणक विह संथविय। करि सुज म्म सुपवित्त सुंदर । सय इक सत्तरि तित्यं कर । इक्क समैं विहरंत महियल । चवण समैं इकवीस जिण। जम्म समैं इकवीस । नत्तिय नावें पूजिया। करो संघ सजगीस ॥१॥ ॥ इक दिन अचिरा हुलरावती एदेशी ॥
भव तीजे समकित गुण रम्या । जिन नक्ति प्रमुख गुण परिणम्या ॥ तजि इंद्विय सुख
आसंसना । करि थानक वीसनी सेवना। ति राग प्रशस्त प्रजावता । मन नावना ए हवी जावता । सविजीव करूं शासन रसी इसी नाव दया मन उलसी । लहि परिणा
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॥ पूजा ॥
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म एह बुं जलुं । निपजावी जिनपद निरमलुं आऊ बंध बिचै इक नव करी । श्रद्धा संवेग थी थिर धरी । तिहां थी चविय लहै नर ज व उदार । भरतें तिम ऐरव तेज सार । महावि देह विजय प्रधान | मऊ खंडे अवतरे जिन निधान ॥
॥ ढाल
पुण्यें सुपना देखें । मनमें हर्ष विशेष गजवर उज्जल सुंदर । निर्मल वृषन मनोहर निर्भय केसरी सिंह | लखमी प्रतिह ावीह अनुपम फूलनी माल । निर्मल शशि सुकमा ल । तेज तरण अति दीपै । इंद्र ध्वजा जग जीपें । पूरण कलस पंडूर । पदम सरोवर पूर । इग्यार में रयणायर । देखे माता जी गुण सायर । बारम जुवन विमान । तेर में रत्न निधान । अग्नि शिखा निरधूम | दे खें माताजी अनुपम । हरखी रायने जासें । राजा अर्थ प्रकाशें । जगपति जिन वर सुख कर । होस्यें पुत्र मनोहर । इंदा दिक जसु नमस्यें | सकल मनोरथ फलस्यें ॥
॥ वस्तु ॥
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॥ पूजा
पुन्य उदय पुन्य उदय उपना जिण नाह। माता तब स्यणी. समैं देखि सुपन हरखंत जागिय । सुपन कही निज कंत में सुपन अ रथ सांजलो सोनागिय । त्रिभुवन तिलक म हा गणी होस्य पत्र निधान इंद्धा दिक ज सु पसननी करस्य सिद्ध विधान ।
॥ बाल गंदा उलानी॥
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..सो हम पति आसन कंपियो। देई अव | मन आनंदियो। मुफ आतम निर्मल कर ण काज । जब जल तारण प्रगटो जिहाज। नव अजवी पारंग सस्य वाह केवल नाणा इय गुण जाहं । शिव साध न गुण अंकूर जह । कार उलटो आषाढ मेह । हरखें विकसैं तब रोमराय । बलया दिक मां निज तन नमाय। सिंहासन थीऊठो सुरिंद। प्रणमं जिण आणंद कंद । सगअ पयपमहावि तत्य । करि अंजलि प्रणमिय मत्य सत्य । मुख नाखें ए खिण आज सार तियलोय पर दौठो उदार ।रे रेनिसुणों सुरलोय देव। विष यो नल तापित तुम समेव । तसु शांति क
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॥ स्नात्रपूजा॥
रण जलधर समान । मिथ्या विष चरण गरुडवान । तेदेव सकल तारण समत्य । प्रगटो तसु प्रणमी हुवो सनत्य । इम जंपी सकस्तव करेवि । तब देव देवी हरखें सुणे वि । गावें तब रंना गीत ज्ञान । सुर लोक ऊवो मंगल निधान । नर खेत्रे आरज बंश ठाम । जिन राज वधैं सुर हर्ष धाम । पि ता मात घरे उच्छव अलेख । जिन शासन मंगल अति विशेख । सुर पति देवा दिक हर्षसंग । संयम अरथी जननें उमंग । शुन बेला लगनें तीर्थ नाथ । जनम्यां इंदादिक हर्ष साथ । सुख पाम्यां त्रिनुवन सर्वजीव । बधाई बधाई थई अतीव ॥ ॥ इहां चैत्य बंदन करणां धूप खेवणां ।
॥ढाल ॥ ॥शांति जिननों कलश कहस्यों । एदेशी॥
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श्रीतीर्थ पतिनों कलस महान गाइये सुखकार। नरखित्त मंडन दुह विहंडन भवि क मन शाधार । तिहां राव राणां हर्ष उ च्छव थयो जग जय कार । दिसि कुमरि
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॥ पूजा ॥
शवधि विशेष जाणी लह्यो हर्ष अपार ॥ निय अमर शमरी संग कमरी गावती गण बंद । जिन जननि पार्स शावि पोहती गहकती आणंद । हे माय तें जिनराज जा यो शचि वधायो रम्म । शम्ह जम्म निम्म ल करण कारण करिस सूइय कम्म । तिहां भूमि शोधन दीप दर्पण वाय विजण धार तिहां करिय कदली गेह जिनवर जननि म जन कार ॥ वर राखडी जिन पाणि बांधी दियें एम शासीस । जुग कोडकोडी चिरंजी वो धर्म दायक ईश ॥
॥ ढाल इकवीसानी ॥
जग नायक जी त्रिनुवन जन हित का रए । परमातम जी चिदानंद घन सारए । जिन रयणी जी दशदिस उजलता धरै । शन लगनें जी ज्योतिष चक्रते संचरै । जिन जनम्या जी जिण श्वसर माता घरै तिण श्वसर जी इंदासन पिण थरहरै ॥
॥Jटक ॥ थरहरें शासन इंद चिंते कवण श्वसर
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॥ पूजा ॥
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ए वण्यो । जिन जन्म उच्छव काल जा णी तिहि शनंद ऊपनों । निज सिछ संपति हेतु जिनवर जांणि लगतै ऊमह्यो । विकसंतवदन प्रमोदबधतै देवनायकगहगह्यो
॥ ढाल ॥ तब सुरपति जी घंटा नाद करावए। सुर लोक जी घोषणां एह दिरावए ॥ नर खेजी जिनवर जन्म ऊवो अछ । तसु नगरौं जी सुरपति मंदरगिर ग?॥
॥ टक ॥ गबै मंदर शिखर ऊपर नवन जीवन जिन तणों। जिन जन्म उच्छव करण कारण आवज्यो सवि सुरे गणो । तुम शुछ समकि त थास्ये निर्मल देवाधि देव निहालतां आ पणां पातिक सर्व जास्य नाथ चणर पखा लतां॥
॥ढाल॥ इम सोनल जी सुरवर कोडी बऊ मि ली जिन वंदन जी मंदरगिर साहमी चली सोहमपति जी जिन जननी घर साविया जिन माता जी बंदी स्वामि बधाविया ॥
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॥ पूजा ॥
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॥ त्रूटक ॥ वधाविया जिनवर हर्ष बहुलै धन्य कृत पून्यए । त्रैलोक्य नायक देव दीठो मुक समो कुण अन्य ॥ हे जगत जननी पुत्र तुमचो मेरु मान वरकरी । उच्छंग तु मचै बलिय धापिस तमां पुन्ये जरी ॥
॥ ढाल ॥
सुरनायक जी जिन निज कर कमलें ठव्या । पांच रूपैंजी अतिशय महिमा यें स्तव्या ॥ नाटक विधजी तब बत्तीस याग ल है । सुर कोडीजी जिन दरसण नें ऊमहै ॥ त्रूटक ॥.
सुर कोड कोडी नाचती बलि नाथ शुचि गुण गावती । अपरा कोडी हाथ जोडी हाव भाव दिखावती ॥ जयजयो तूं जिन राज जगगुरु एमई प्रासीस ए । म त्राण चारण आधार जीवन एक तूं जगदीसए ॥
॥ ढाल ॥
सुर गिरवरजी पांडुक बनमें चिहूं दिसैं गिरि सिल परजी सिंहासन सासयबसै ॥ ति हां प्राणीजी शर्क जिन खोलै गह्या । चउ
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ACI
॥ पूजा ॥
| स7 जी तिहां सुरपति श्रावीरह्या॥
॥ टक ॥ आविया सुरपति सर्बजगत कलश श्रेणि बणाअए । सिद्धार्थ पमुहा तीर्थ अषधि सर्व वस्तु अणावए । अन्नू यपति तिहां हु कम कीनो देव कोडा कोडिनें । जिन मज नारथ नीरल्यावो सबै सुर करजोडिनें ॥ ॥ ढाल शांतिने कारण इंद कलशा नरै ॥
आत्मसाधन रसी देवकोडी हसी। उल्लसीने धसी खीरसागर दिशि।पउमदह आदि दहगं ग पमुहा नई । तीर्थजलअमल लेबा नणी ते गई। जाति अङ कल करि सहस अठोत्त रा॥बत्र चामर सिंहासणे शुलतरा । उप गरण पुष्फचंगेरि पमुहा सबें॥ आगमें ना सिया तेम आणी ठमें। तीर्थ जल नरिय क रिकलश करि देवता।गावता नावता धर्म उन्नतिरता । तिरिय नर अमरने हर्ष उपजा वता धन्य अमसक्ति शुचिनक्ति इमनावता समकित वीज निज आत्म आरोपता । कल श पाणीमिसै नक्ति जलसींचता। मेस सिहरो
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॥ पूजा
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वरें सर्व प्राच्यावही । शक उच्छृंग जिन दे खि मन गहगही ॥
॥ गाथा ||
हो देवा पाइ कालो | दिठ पुत्रो तिलोयतारणो तिलोय बंधू मिच्छत्त मोह विणो ॥ णाइ तिराहा विणासणो । देवाहि देवो दिवो दिवो हियकामेहिं ॥
॥ ढाल ॥
एम पजणंत वण जवण जोईसरा ॥ देव वेमाणिया जत्तिधम्मायरा ॥ केवि कप्पठिया केवि मित्ताणुगा । केवि वर रमणि वयणेण अइ उच्छृङ्गा ॥
॥ वस्तु ॥
तत्य नुय तत्यच्च य इंदु छादेश करजोडी सब देवगण ॥ लेइ बल छादे शपामिय खदमत रूप सरूपजय करण एह पुच्छंत सामिय इंद्र कहें जग तारणी तार ग म परमेस । नायक दायक धर्म निधि करिये तसु षेक ॥
॥ ढाल ॥
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॥पूजा ॥
१५
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॥ तीर्थ कमल वर उदक जरीने पुष्कर ॥
॥ सागर शावै ॥ एदेशी॥
पूर्ण कलश शुचि उदकनीधारा जिनवर अंगनामैं । शतम निर्मल नाव करतां ब धते शुन परिणाम ॥ श्च्यूतादिक सुरपति मजान लोक पाल लोकांत । सामानिक इंदा णी पमुहा इम शनिषेक करत ॥ पू० ॥
गाथा ॥ __ तब ईशाण सुरिदो सच पत्नणेइ करिस सुपसाने। तुम अंके महनाहो खिणमित्तं शम्ह शप्पेह ॥ तासकिंदो पनणइ । साह म्मि वच्छलम्मि बजलाहो शाणा एबं गिराहइ होउ कयत्या नो॥
॥ढाल। सोहम सुरपति वृषन रूप कर। राहवण करे प्रभु अंगै । करिय विलेपन पुष्फ माल ठवि वर शानरण भंगै सो० ॥१॥ तब सुरवर बऊ जय जय रवकर । निश्चै धरि शाणंद । मोक्ष मारग सारथपति पाम्यों नां जस्यूं हिब नव फंद सो ० ॥२॥ कोफ ब
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॥ स्नात्रपूजा ॥
तीस सोवनउवारी बाजतै वरनाद । सुरप ति संघ शमर श्री प्रनने । जननी ने सुप्रसा द । शणी थापी एम पयंपें । शम्ह निस्त रिया शाज । पुत्र तुमारो धणिय शमारो। तारण तरण जिहाज ॥ सो० ॥ ३ ॥ मात जतन करि राखज्यो एहनें । तुम सुत शम शाधार । सुरपति नक्ति सहित नंदीश्वर करै जिन नक्ति उदार ॥ सो० ४॥ निय नि य कापगया सव निर्जर। कहतां प्रनु गुण सार ॥ दीक्षा केवल ज्ञान कल्याणक इच्छा चित्त मकार ॥ सो० ५ ॥ खर तर गब जिन आणा रंगी राज सागर उवकाय । ज्ञान धर्म दीपचंद सुपाठक मुगुस तणे सुप साय ॥ देव चंद निज नक्तं गायो । जन्म महोच्छव बंद । बोध बीज अंकूरो उल स्यो । संघ सकल प्रांणद सो० ॥६॥
॥ इति स्नात्रम् ॥
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॥अष्टप्रकारी पूजा॥
॥राग बेलाउल ॥ इम पूजा नगरौं करो। शतम हित का ज तजी विनाव निज नावमां रमतां शिव राज इम०॥ १ ॥ काल अनते जे ऊवा । होस्य जेह जिणंद । संपइ श्री मंधर प्रनू । कवल नाण दिणद इम० ॥ २ ॥ जन्म म होच्छव इण परै । श्रावक रुचिवंत विरचे जिन प्रतिमा तणों। अनुमोद नखंत ॥ इम० ३॥ देव चंद जिन पूजनां । करतां नवनों पार । जिन पडिमा जिनसारखी । कही सूत्र मकार इम० ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥
॥ इति स्नात्रम् ॥
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॥ अथ अष्ट प्रकारी पूजा ॥
विमल केवल नासन नास्करं । जगति जंतु महोदय कारणं जिनवरं बऊ मान ज लौघतः शुचिमनः स्नपयामि विशुख्ये ॥ १ न्ही परम परमात्मने अनंतानंत ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंदाय जलं यजामहे स्वाहा ॥ १ ॥ जल पूजा ॥
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॥ पूजा ॥
सकल मोह तमिश्र विनाशनं परम शी तल नाव युतं जिनं ॥ विनय कंकम दर्शन चंदनैः । सहज तत्व विकाश कृतेर्चयेः ॥ २ नही परम परमात्मने अनंतानंत ज्ञान शाक्त ये जन्म जरामृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंद्रा य चंदनं यजामहे स्वाहा॥२॥इति चंदनपू०
विकच निर्मल शुछ मनोरमै । विशद चे तन लाव समुन्नवैः ॥ सुपरिणाम प्रसून घने नवैः । परम तत्व मयंहि यजाम्यहं ॥ ३ ॥ नझी परम परमात्मने अनंतानंत ज्ञान शक्त येजन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंद्रा य पुष्पं यजामहे स्वाहा ॥३॥इतिपुष्प पूजा
__ सकल कर्ममहंधन दाहनं । विमल संबर नाव सुधूपनं । अशुन्न पुल संग विवर्जनं जिनपतेः पुरतोस्तु सुहर्षतः ॥ ४ ॥ नही परम परमात्मने अनंतानंत ज्ञानशक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिानेंद्राय धूपंयजा महे स्वाहा ॥ ४ ॥ इति धूप पूजा
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॥अष्ठप्रकारी॥
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नविक निर्मल बोध विकाशकं । जिनगहे शुन दीपक दीपनं । सुगुण राग विशुछि सम न्वितं । दधत नाव विकाशकृते जनाः ॥५
ही परम परमात्मने अनंतानंत ज्ञानशक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंदाय दीपं यजामहे स्वाहा ॥ ५॥ इति दीपपूजा
सकल मंगल केलि निकेतनं । परम मंग ल नाव मयं जिनं ॥ श्रयत नव्य जना इति दर्शयन् । दधतु नाथ पुरो दत स्वस्तिकं ॥ ६
ही परम परमात्मने अनंतानंत ज्ञानशक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंद्धाय अकृतं यजामहे स्वाहा ॥ ६ अदत पूजा ॥
सकल पुल संग विवर्जनं । सहज चेतन नाव विलासकं । सरस नोजन नव्य निवेद नात् परम निति नाव महं स्टहे ॥ ७ ॥ नही परम परमात्मने अनंतानंत ज्ञानशक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंद्राय नैवेदयं यजामहे स्वाहा॥७॥ इतिनैवेदापूजा
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॥ शष्ठप्रकारी पूजा ॥
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कटुक कर्म विपाक बिनाशनं । सरस पक्क फल व्रज ढौकनं ॥ विहित मोक्ष फलस्य विनोः पुरः । कुरुत सिछ फलाय महाजनाः॥८॥ नझी परम परमात्मने अनंतानंत ज्ञानशक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंदाय फलं यजामहे स्वाहा ॥ ८॥ इति फलपूजा
इति जिनवरदं नक्तितः पूजयंति । परम सुख निधानं देवचंद स्तुवंति ॥ प्रति दिवस मनंतं तत्व महासयंति । परम सहज रूपं मोक्ष सौख्यं श्रयंति ॥ ८ ॥ नझी परम पर मात्मने अनंतानंत ज्ञानशक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंदाय अयं य जामहे स्वाहा ॥ ८ ॥ इति शर्ध्य पूजा ।
शको यथा जिनपतेः सुरशैल चूला। सिंहा सनो परि गतः स्लपनावशाने ॥ दध्यक्षतैः कुसुम चंदन गंध धूपैः । कृत्वार्चनं तु विद धाति सुवस्त्र पूजां ॥ १ ॥
तहत् श्रावक वर्ग एष विधिना लंकार
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Achan
L.org
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॥ लूण पूजा ॥
२१
वस्त्रा दिकां । पूजां तीर्थकृतां करोति सततं शक्त्या तिनक्त्या हतां ॥ नीरागस्य निरंज नस्य विजिताराते खिलोकीपतेः स्वस्या न्य स्य जनस्य निर्वृतिकृते क्लेशदया कांदया। नही परम परमात्मने अनंतानंत ज्ञानशक तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिने दाय वस्त्रं यजामहे स्वाहा ॥ इति बस्त्रपूजा
॥ इति शष्ट प्रकारी पूजा ॥
॥ श्थ लूण उतारण गाथा ॥ शह पडि नग्गा पसरं पयाहिणं मणिव इ करेऊणं । पडि सलूणत्तण लजियंच लूण जय बहम्मि॥ १॥ पिरकविह मुह जिन वरह दीहर नयण सलूण रहावइ गुरु मत्य नरि य । जलण पइस्सइ लूणं॥ २ ॥ लूण उतारिय जिणबरह । तिन्नि पयाहिण देइ तड तड सद्द करंतिते विज्ञाविज जलेण॥३॥ लूण अ ग्निमें दीजे ॥ जंजेण विज थूइ जलेण तंतह अस्थि ससई । जिण रूव मच्छ रेण । फिह इ लूणं तड तडस्स ॥ लूण शग्नि में दीजे ॥
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॥ आरती॥
सच्चं मुणि वइ जलणि जल तंतह नमडइ पास छहब कयं तस्स निम्मलउ निगुण बु हि पयास ॥१॥जलण अनेविणु जलनिहि पास तिन्नि पयाहिण दितिहि पास। जिम जिय युह नव दुह पास।२। जल निम्मल क र कमलेहि लेवणु । सुरविहि नावहि मुणि वइ सेवणु पनणह जिणवर तुह पय सरणु ॥ एह कहके लूण जल सरणकीजै ॥ इति
॥ श्री आरतिसबरे की ॥
जय जय आरती शांत तुमारी ॥ तोरा चरण कमलकी मैं जाउं । बलिहारी विश्वसे न अचिराजी के नंदा । शांतिनाथ मुख पूनि म चंदा जै०॥१॥ चालिस धनुष सोवन मय काया मगलांबन प्रनु चरण सुहाया ॥ जै० २॥ चक वर्त प्रनु पंचम सोहै । सोलम जिणवर जग सऊ मोहै जै० ॥ ३ ॥ मंगल
आरति लोरें कीजे । जनम जनम को ला हो लीजे जै० ॥ ४॥ कर जोडी सेवकगण गावै । नविक गुण गावै । सो नर नारी
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॥ भारती ॥
अमर पद पावै ॥ जै०॥५॥
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॥ आरती संध्या की। रिषन अजित संन्नव अनिनंदन सुमति पदम श्री सुपासकी। जै महाराज कि दीन दयाल की आरति कीजे। चंद सुबिधि शी तल श्रेयांसा । बासु पूज्य जिन राज की ॥ जै० ॥१॥ विमल अनंत धर्म हितकारी। शांति नाथ सुख कार की जैम० ॥२॥ कुं थुनाथ अर मल्लि मुनिसुव्रत नमि नमुं सो वन कायकी जैम० ॥३॥ नेमि नाथ प्रन्न पार्थ चिंतामणि वर्षमान नव पार की जै० ४॥ कंचन आरति बऊ बिध सऊकर ली जेलीजे अंग उबाह कीजै ० ॥ ५॥ सक ल संघ मिल आरति करत है आवा गमन निवार की जैमहा०॥६॥
॥ इति संपूर्णम् ॥
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॥ शारती॥
॥ अथ यद यक्षणी आरती ॥
जय २ जिन पद सेवन कारक जय २ जगदंवे आं ० अह निशि तुऊ पद समरन कारन दिल घिच ध्यान धरे ज० १ नवि जन वंबित पूरन सुरतस चक स्वरि अंबे ज०३ वसु नुज शोनित कनक च्छवि तनु सेवित सुरवंदे ज० ४ पंचानन तिम खगप ति वाहन शयुध हस्तधरे ज० ५ रिधि वृ छिनित प्रति सेवक थापें शानद संघ घरे ज०६ इति चक्कवरी जीकी आरती ॥
जय जय रिषन पदांबुज सेवक जय २ जखराया नविजन सुखदाया ज० । कामग वी जिम बंछित दायक कंचन बरण सुहाया ज० ॥ १ ॥ संकठ विकट निवारण कारण वर कुंजर चढिशाया ज० ॥२॥ उदधिनु
करि शोजित तनु छवि गुणनिधि गोमुख सुर राया ज० ॥३॥ शारत हरवा करत भारती श्रीसंघ चितऊल साया ज०॥४॥
॥ इति यद राज शरती ॥
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॥ सतरहलेदी॥
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॥ अथ सतरहलेदी पूजा ॥
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mustainm~
नाव नले नगवंत नी पूजा सतर प्रकार परसिध कीधी दोपदी अंग बढ़ शधिकार
॥राग सरपदो॥ जोति सकल जग जागती ए। सरसति समर सुनिंद ॥ सतर सुबिध पूजा तणी प जणिसु परमानंद ॥२॥
गाहा ॥ न्हवण १ विलेवण २ वत्यजुगं ३ गंधा रोहणंच ४ पुष्फ रोहणयं ५ माला रोहण ६ वनयं ७ चुन ८ पळागाय ९ आनरणे १० ३॥मालकलावं ११ बंसघरं पुरफंपगरंच १२ अठमंगलयं १३ धूवउखेवो १४ गीययं १५ नहं १६ वजं १७ तहानणियं॥४॥ सतरनेद पूजापवरं । ज्ञाताअंगविचार । द्ध पदसुता। दोपदिपरै । करिये विधविस्तार ॥५॥
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mean
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॥ सत रहनेदी ॥
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॥ अथन्हवणपूजा ॥
॥ रागदेशाख ॥ पूर्व मुखसावनं । करि दशन पावनं । हत धोती घरी उचितमानी । विहित मुख कोशकेखीरगंधोदके । सुनृत मणि कलश करि विविधवानी । नमिवि जिनपुंगवं । लोमहत्येनवं । मार्जनं करिय वावारि वारी । जणिय कुसुमांजली कला विधिमनरली | न्हवति जिन इंद्र जिमतिम गारी ॥ १ ॥
॥ राग सारंग मल्हारमें दोहा ॥
(१)
पहिली पूजासाचवें । श्रावक शुभ परि णाम ॥ शुचि पखाल तनु जिन तर्णे । करे सुकृत हितकाम ॥ १ ॥ परमानंद पीयूष रस । न्हवण मुगति सोपान ॥ धरम रूप तरु सीं
चवा | जल धर धार समान ॥ २ ॥ ॥ राग सारंग मल्हार ॥
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पूजा सतर प्रकारी । सुणियोरे मेरे जि नवरकी परमानंद ति बल्योरी सुधारस ॥
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२)
॥ सतरहलेदी ॥
२७
तपत वुझी मेरे तनकीहो ॥ पू० १॥ प्रनुकुं विलोकि नमिजतन प्रमार्जित । करत पखा ल शुचिधार वनकी हो। न्हवण प्रथम निजत्र जिन पुलावति पंककुंवरष जैसे घनकी हो ॥पू २॥ तरण तारण नव सिंधु तरणकी मंज री संपदफल बरधनकी। शिवपुर पंथ दि खावण दीपी । धूमरी श्रापद बेल मरदन की हो ॥३ पू० ॥ सकल कुशल रंगमिल्योरी सुमतिसंग। जागी सुदिसा गुलमेरे दिनकी ॥ कहै साधुकीरत सारंगनार करतां । आसफ लीमेरे मनकीहो ॥ पू० ४ ॥
॥ इति प्रथमन्हवणपूजा १ ॥
॥राग राम गिरीमें विलेपनपूजा॥ गात्रलूहें जिन मनरंगसुंहोदेवा गा० । स खरसुधूपित वाससुं ॥ वाससुं हारेदेवा वास सुं । गंधक सायसुंमेलिये ॥ नंदन चंदन चंद मैलीय रेदेवा ।नं। मांहे मृगमदकुंकुम नेली ये । करलीये रयणपिंगा णीकचोलीये ए० ॥ पग जानु कर पंसिरै रे। लालकं ठउर उदरं तरै दुषहरै हारेदेवा सुखकरै । तिलकनवे अंग
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२८
॥ सतरहनेदी ॥
कीजिये ॥ दूजी पूजा अनुसरै रे श्रावक । हरि विरचै जिम सुरगिरै ॥ तिमकरै जिणपर जन मन रंजीये ॥ २ ॥
॥ राग ललितमें दोहा ॥
करऊ विलेपन सुखसदन | श्री जिन चंद शरीर ॥ तिलक नवे अंगपूजतां । लहैं नवो दधितीर ॥ १ ॥ मिटै तापतसुदेहको । परम शिशिरता संग ॥ चित्त खेद सवि उपशमें । सुषम समरसी रंग ॥ २ ॥
॥ राग बेलाउल |
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(२)
विलेपन कीजे । श्री जिनवरअंगे जिनवर अंगसुगंधै होवि० कुंकुम चंदन मृगमदजक ईम । गरमिश्रित मनरंगे हो वि० ॥ १ ॥ पग जानूकर खंधै सिर । जालकंठ उरउदरं तरसंगै । विलुपति घमेरो ॥ करत विलेपन तपत ऊति जिम चंगेंहो वि० ॥ २ ॥ नव अंगनवनव तिलक करतही । मिलत नवेनि धिचंगें ॥ कहैसाधु तनु सुचिकरो । सुललित पूजा जैसे गंगतरंगें हो वि० ॥ ३ ॥ ॥ इति विलेन पूजा २ ॥
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(३)
॥ सतरहलेदी ॥
२९
-
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॥ अथ वस्खयुगलपूजा दोहा ॥
वसनयुगल उजल विमल । शारोपें जि नअंग ॥ लान ज्ञान दर्शन लहै । पूजा तृतीय प्रसंग ॥१॥
॥रागगोडी॥
कमलकोमलघनंचंदनंचरचितं । सुगंध ग | अधिवासियाए ॥ कनक मंफितहयै लालप लवशुचि । वसनजुगकंतशतिवासियाए । जि नप उत्तम अंगै सुबिधिशकोयथा। करियपहि रावणीढोइयेए । पाप लूहणअंगलूहणो देवनें वस्त्रयुगपूजमलधोइयेए ॥ १ ॥
॥रागवैराकी ॥ देव दुष्य जुग पूजा बन्यो है जतग गुरु । देव दुख हर शब इतनों मागुं । तुहिज सबही हित तुंहीज मुगति दाता । तिण नमि २ प्रनु जी के चरण लागुं दे० ॥ १॥ कहै साधु तीजी पूजा केवल दसण नाण । देव दुष्प मिसदेऊ उत्तम वागु । | श्रवण अंजलि पुट सुगुण अमृत पीता सवि
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३०
॥ सतरहनेदी ॥
राडे दुख शंसय घुरम जांगुं दे० ॥ २ ॥ ॥ इति देव द्रूष्य पूजा ॥ ३
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(8)'
॥ अथवासक्षेप पूजा ॥
॥ राग गौकी में दोहा ॥ पूज चतुर्थी इण परें । सुमति वधारें वास । कुमति दुरभि दूरै हरे । दहै मोह दल
पास ॥ १ ॥
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॥ राग सारंग ॥
हां होरे देवा बावन चंदन घसि कुंकुमा चूरण विधि विरचै वासुए हां० ॥ कुसुम चूरण चंदन मृगमदा कंकोल तणों अधि वासु ए हां० ॥ वास दशो दिशि वासती । पूजो जिन अंग उवंगु ए हां० ॥ लाबि नुव न अधिवासिया । अनुगामी की सरम नंगुए ॥ 9 ॥
॥ राग गौडी पूर्वी ॥ मेरे प्रभुजी की आणंद मेलें की मे० ॥ वास भुवन मोह्यो सब लोए । संपदा जेलें की पूजा ॥ १ ॥ सतर प्रकारी विजय
पूजा
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(५)
॥ सतरहनेदी ॥
३॥
देवा तता थेई । अप्रमित गुण तोरा। चरण सेवा कि पूजा ॥ २ ॥ कुंकुम चंदनवासैं। पू जीये जिनराज तत्ताथेई । चतुर्गति दुख गौरी चतुर्थी धन की पूजा ॥ ३ ॥
॥ इति वासोप पूजा ॥ १ ॥
॥ श्थ पुष्पा रोहणं ॥
॥दोहा॥ मन विकसे तिम विकसतां । पुष्प श नेक प्रकार । प्रनुपूजा ए पंचमी । पंचम ग ति दातार ॥ १ ॥
॥राग कामोद ॥ - पाफल चंपक केतकीए । कुंद किरण म चकुंद सोवन जाती जूहिका । बिउलसिरी अरविंद ॥१॥ जिनवर चरण उवरि चरै ए। मुकुलित कुसुम शनेक । शिव रमणी से वर वरै । विधि जिन पूज विवेक ॥ २
॥राग कानको ॥ सोहैरीमाई मनमोहैरी वरण । विविधक सुमजिनचरण । विकसी हसीजंसा
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३२
॥ सतरहनेदी ॥
राखि प्रभू हमसरणें सो० ॥ १ ॥ पंचमि पूज कुसुम मुकुलित की पंचविषे दुख हरणे सो० कहै साधुकीरति जगत जगवंत की । नविक नरां सुख करणैसो० ॥ २ ॥
॥ इति पुष्पा रोहण पूजा ॥ ५ ॥
॥ अथ माला रोहण ॥
॥ राग साउरी में ॥ दोहा ॥ बी पूजा ए बती । महा सुरनि पुप्फ माल । गुण गूंथी थापें गलै जेम टलें दुख
जाल ॥ १ ॥
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(६)
॥ राग राम गिरी गुर्जरी ॥
हे नागपुन्नाग मंदार नव मालिका हे म ल्लिका सोग पारधिकलीए । हेमरुक दमण कं बकुल तिलक वासंतिका । हे लाल गुल्ला ल पाऊल मिलीए । हे जासुमण मोगरा । बेउला मालतीए । हे पंच वरणें गुथी माल तीए । हेमाल जिन कंठ पीठें ठवी लह ल हैंए । हे जाण संताप सऊ टालतीए । जलां २ वारती ॥ १ ॥
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॥ सतरहलेदी॥
३३
-
-
॥राग आसाउरी॥ देखी दामा कंठ जिन अधिक एधति नंदै चकोरकुं देषि २ जिम चंदै पंचविध वरण र ची कुसुमाकी जैसी रयणा वलिसु हमंदै दे०॥ बहीरे तोफर पूजा तब कर धूजे । सब अ रिजन जइ २ बंदे । कहै साधुकीरति सक ल आसा सुख । नगति २ जेय जिण वंदे दे०॥२॥
॥इति माला पूजा ॥६॥
॥ अर्थ वर्ण पूजा
॥दोहा॥ केतकि चंपक केवफा । सोनै तेम सुगात चाढो जिम चढतां ऊवे सातमियें सुखसात १
॥राग केदारो गोडीमे॥ कुंकुम चरचित विविध पंच वरणका कु सुम सुं हे । कुंद गुल्लाल सुं चंपको दमण को जासु सुंए। सातमी पूजमें अंग आलिंगिये ए अंग शालिंग मिस मानवी मुगति शालिंगि ये ए॥१॥
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३४
॥ सतरहनेदी ॥
॥ राग भैरवी ॥ पंच वरणी अंगी रची कुसुम नी जाती फूलन की जाती पं० ॥ कुंद मचकुंद गुलाल सिरोवर कर करणी सोवनजाती पं० । दमणक मरुक पाल अरबिंदो श्रंस जूही वेउल वा ती ॥ पं० ॥ पारधि चरण कल्हार मंदारो व र्ण पटकूल वनी जांती । सुरनर किन्नर रमणी गाती भैरव कुगति व्रतती दाती पं० ॥ २ ॥ ॥ इति वर्ण पूजा ॥ ७ ॥
॥ थ गंधबटी पूजा ॥
॥ राग सोरठ ॥ दोहा ॥ सोरठ राग सुहामणी । मुखैन मेली जाय ज्युं ज्यूं रात गलतियां | त्यूं त्यूं मीठी थाय ॥ १ ॥ सोरठ धारा देशमें। गढां बडो गिर नार । नित उठ यादब वांदस्यां । स्वामी नेम कुमार ॥ २ ॥ जो हूंती चंपो बिरख वा गिर नार पहार । फूलन हार गुंधावती चढती नेम कुमार ॥ ३ ॥ राजमती गिरवर चढी । ऊजी करे पुकार । स्वामी जऊ न बा
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(८)
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(c)
॥ सतरहनेदी
ऊडे । मोमन प्राण आधार ॥ ४ ॥रे संसारी प्राणिया। चढयो न गढ गिरनार । गंगा न्हाये न गोमती । गयो जमारो हार ॥ ५॥ धन वाराणी राजेमती। धन वे नेम कुमार। शील संयमता शादरी। पोहतानव जल पार ॥६॥ दया गुणां की वेलफी। दया गुणां की खान अनंत जीव मुगतै गया । इण दया तणे पर माण ॥ ७॥ जग में तीरथ दोय बझा सेबूं जो गिरनार । इण गिर रिषन समो सरे उण गिर नेम कुमार ॥ ८॥
अगर सेलारस सार सुमति पजा शाठमी। गंध बटी घन सार । लावो जिन तनु नाव सुं ॥१॥
॥राग सोरठी॥ ___ कुंद किरण शशि जजलो जी देवा । पा वन घन घनसारो जी। शाडो सुरनि सखर मृग नालिजा जी देवा । चुन्न रोहण अधि कारो जी। शा० बस्तु सुगंध जब मोरि यो जी देवा ।शशुल करम चूरीजै जी आ० शंगण सुरतस मोरियो जी देवा । तब कु
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३६
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॥ सतरहनेदी ॥
मती जन खीजै जी ॥ १ ॥ ॥ राग सामेरी ॥
पूजोरी माई जिनवर अंग सुगंधें। गंध वटी घनसार उदारे । गोत्र तिर्थंकर बां चैं पू० ॥ १ ॥ आठमी पूजा अगर सेलारस लावें जिन तनु रागें । धार कपूर जाव घन बरषत । सामेरी मति जागें पू० ॥ २ ॥ ॥ इति गंध वटी पूजा ॥ ८ ॥
मूल ॥ १ ॥
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॥ शूथ ध्वज पूजा ॥
॥ दोहा ॥
मन मोहन धर मस्तकै । सूहव गीत समू ल ॥ दीजे तीन प्रदक्षिणा । नवमी पूजा
॥ राग मेघ गउडी में वस्तु ॥
(९)
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सहस जोयण रहेममय दंग । युतपताक पांचे वरण | घुम घुमंति घूघरी वाजै । मृ दु समीर लहकै गयणं । जाण कुमति दल सयल जांजै। सुरपति जिम विरचै धजा ए | नवमी पूज सुरंग । तिणपरि श्रावक घज
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९१०)
॥ सतरहजेदी ॥
३७
महति । आपें दान एनंग ॥१॥ .
॥राग नहनारायण ॥ जिनराजको ध्वज मोहन जि० मोहना सुगर शधिवासिन। करि पंच सबद त्रिप्रद विणा । सधव वधू शिरसोहण जि०॥१॥ जांतिवसन पांच वरण वन्योरी । विध करि ध्वज को रोहण । साधु लणति नवमी पूजा नव पाप नियांणा खोहण । शिव मंदिर कुं रुधिरोहण जन मोह्यो नहनारायण जि०२
॥ इति ध्वजपूजा ॥ ९॥
॥ अथ शानरण पूजा ॥
॥ राग केदारो दोहा॥ शिरसोहै जिनवरतणे । रयण मुगट क लकंत ॥ तिलक नाल अंगद नुजा । श्रवण कुंकल अतिकंत ॥ १ ॥ दशमी पूजा आन रणकी । रचना यथा शनेक । सुरपति प्रनु अंगें रचै । तिम श्रावक सुविवेक ॥ २॥
॥ राग अधरास वा गुंफमल्हार ॥ पाच पिरोजा नीलू लसणीया । मोतीमा
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३८
॥ सतरहनेदी ॥
(११)
-
णक लाल लसणीया।हीरा सोहै रे। मन मोहै रे । धुनी चुनी पुलक करकेतनां । जात रूप सुन्नग अंक अंजना। मन मोहै रे ॥१॥ मौलि मुकुट रयणे जम्यो । कांने कुंमल हां सुजुगतै जुम्लो । उरहारू रे ॥२॥ नाल ति लक वाहें अंगदा । आजरण दशमी पूज मुदा । सुखकारू रे । दुखवारू रे ॥२॥
॥राग केदारो॥
प्रजू शिर सोहै। मुगट रयणे जम्नो। अं गद बांह तिलक नालस्थल । यऊनीको कों नघम्नो प्र० ॥१॥ श्रवण कुंडल शशि तरणि मंझल जी । सुरसुं अधिक अलंकस्यो । दुख के दार चमर सिंहासण। कत्र शिर उवरिध स्वो । शलंकृत उचितवस्यो ॥२॥
॥ इति आमरणपूजा १०॥
॥ अथ फूल घर पूजा ।
॥दोह॥
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फूल घरो शति शोलतो। फूंदै लहकै फू
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(१२)
॥ सतरहलेद।।
३९
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ल ॥ महकै परिमल मह महा। इग्यारमी फूल अमूल ॥ १ ॥
॥राग रामगिरी कौतकिया ॥ कोज अंकोल रायबेलि नव मालिका। कुं द मचकुंद वर विचिकलूए। हे तिलक दमण कदलं मोगरा परिमलं । कोमलं पारधि पा मलूए। हे प्रमुख कसुमैं रचै त्रिनुवन कुं रुचै। कुसुम गेह विच तोरणूंए । गुच्छ चंदोदयं डूं बक उन्नयं। हे जालिका गोख चितचोरणूं ए।
॥राग राम गिरी ॥ मेरोमन मोह्यो माईरी । फूलघरै आणंद फिलै । आसत उसत दामवघारी मनोहर। देखत तबही सबदुरित खिलै फू०॥ १ ॥ कु सुम मंमित थंनगुच्छ चंद्रोदयं । कोरणि चा रु विणाण सके की । इग्यारमी पूज वणीहें रामगिरी। विवध विमाण जैसे उपरिजंजैकी
॥ इति फूल घर पूजा ॥ ११ ॥
॥ अथ पुप्फवर्षा पूजा ॥
॥ दोहा मलारमें॥
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४०
॥ सतरहलेदी ॥
(१२)
वर वारमी पूज में । कुसुम बादलिया फल । हरणताप सविलोकको । जान समा बजमूल ॥१॥
॥ राग नीम मलार गुंममित्र ॥ हेमेघबरसैभरी । पुष्फ वादलकरी जानु परिमाण करि कुसुम पगरं । पंच वरण वन्यो विकच शुमुकरवन्यो । अधर तैनही पीक पसरं मे० ॥ १ ॥ वास महकै मिलै । नमर जमरीनिले । सरसरंगै तिण दुखनिवारी । जि नप आगैकरै । सुरपजिम सुखबरें । वारमी पूजतिण परिशगारी मे० ॥ २ ॥
॥रागनीम मलार ॥ प्फवादलीया वरसैसुसमां । योजन अ शुचिहर वरपै गंधोदकै । मनोहर जानु स मा पु० ॥ १ ॥ गमन शगमन कीपीर नही तमु । इह जिनको शतिशय सुगुण । गुंज ति२ मधुकर इमनणे मधुर वचन जिनगुणथु णें । कुसुम सुपरि सेवाजोकरै । तसु पौरन ही सुमणै पु० ॥ २ ॥ समवसरण पंचवरण शधोवंत । विवुधरचै सुमना समा। वारमी पूज नविक तिमकरें । कुसुम विकसी हसी
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१३)
॥ सतरहनेदी
११
उच्चरै तसुनीमबंधण अहराजवें। जै जिननमा पु० ॥३॥
॥ इति पुष्पवर्षा पूजा १२ ॥
॥ अथ शष्ट मंगलीक पूजा ॥
॥ दोहा राग कल्याणमें ॥ तेरमि पूजा श्वसरें मंगल अष्ट बिधान । युवति रचै सुमता सही। परमानंद निधान १
॥राग वसंत ॥ शुतुल विमल मिल्या । अखंझ गुणै नि ल्या । सालि रजत तणा तंदुलाए । लषण समाजकं विच पंच वरणकं । चंद्रकिरण जै सा जजलाए । मेल मंगल लिखै। सयल मं गल अखै । जिनप शागे सुथानक धरै ए। तेरमि पूजाविध । तेरमि मन मेरे । अष्ट मंगल अष्ट सिटि करे ए। अतल०॥ १ ॥
॥राग कल्याण ॥ हांहो पूजा बणी तेरी रसमै ॥ षष्ठ मंग ल लिखै । कुशल निधान हैं। तेज तरण के रसमै हां०॥ दर्पण नद्भासण नंदावर्त्त पूर्ण
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४२
॥ सतरहलेदी॥
(१४)
कुंन । मब्युग श्रीवब तासुमैं। वर्धमान स्व स्तिक पूज मंगल की। शानंद कल्याण के सुख रस मैं हा० ॥२॥ • ॥ इति अष्ठमंगलीक पूजा ॥ १३॥
॥ अथ धूप पूजा ॥
॥दोहा॥ गंधवटी मृगमद अगर । सेलारस घन सार । धर प्रन्नु आगल धूपणा । चउदमिय रचा चार ॥१॥
॥राग वेलाउल सवावा ॥ कृष्णागर करचूर । सोगंध पांचेपर । कं दुरुक सेलारस सार । गंधवटी घनसार । गं धवटी घनसार । चंदन मगमदा रस नेलिये। श्रीवास धूप दशांग अंबर सुरनि वऊ व्य नेलिये। वेरलिय दंकनक मऊं। धूप धा णो करधरें। नव्यवृत्ति धूप करंति नोगं । रो ग सोग अशुन हरें ॥१॥
॥राग मालवी गौळी ॥ सब अरति मथन मुदार धूपं । करत गंध
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(१५)
॥ सतरहलेदी ॥
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रसाल रे । देवाकर० । काम धूमावली करिय धूसर । कलष पातिक गाल रे स०॥१॥ अर्थ गति सूचंत नविकुं । मघ मघे किरणालरे । चवदमी वामांग पूजा। दीयें रयण विशालरे। शारती मंगल थाल रे । मालवी गौमी ताल रे स० ॥ २ ॥
॥ इतिधूप पूजा १४ ॥
॥ अथ गीत पूजा ॥
॥दोहा॥ कंठ नलै शालाप कर । गावो प्रनुगुणगी त ॥नावो श्रधिकी नावनां । पनरमि पूजा प्रीत ॥१॥
॥श्रीराग ॥ यद्वदनंत केवलमनंत फलमस्ति । जैनगुण गानं । गुण वर्ण नाद वादी मात्रा नाषा लयै युक्तं ॥१॥ सप्तस्वर संगीत स्थानै र्जयतादि ताल करणैश्च । चंचुर चारी चारै गीतंगानं सुपीयूषं ॥ १ ॥
॥श्रीराग ॥
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॥ सतरहनेदी ॥
(१६)
जिनगुण गानं श्रुतअमृतं । तार मंदादि अनाहत तानं । केवल जिम तिम फल अमृतं जि० ॥१॥ विविध कुमार कुमरी आलाऐं। मुरज उपांग नादज अमृतं । पाठ प्रबंध धु
आप्रतिमानं । आयतिच्छंद सुरति सुमति सबद समान रुच्यो त्रिनुवनकुं । सुरनर गावें जिन चरितं । सप्तस्वर मान शिवश्रीगीतं। पनरमि पूज हरै दुरितं जि० ॥३॥
॥ इति गीत पूजा ॥ १५ ॥
॥ श्रथ नृत्य पूजा ॥
॥ राग शुछ नाटक दोहा॥ करजोफ्री नाटक करे । सकि सुंदर सि णगार नव नाटक ते नवि नमैं । सोलमि पूजा सार ॥१॥
॥काव्य ॥ नावादिप्पवणा सुचारु चरणा संपुन चं दानना । सप्पिम्मासम रूप वेस वयसो मत्ते न कुंजत्यणा । लावणा सुगुणा पिकस्सरवई रागाइथा लावणा । कुम्मारी कुमरावि जैन
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९१६)
॥ सतरहलेदी ॥
४५
पुरन नचंति सिंगारणा ॥ १ ॥
॥गा ॥ तएणं ते अठसयं कुमार कुमरीन लेणं देवेणं संदिठा। रंग मंझवे पविठा। जिणं नमंता गायंता वायंता नचंति ॥
॥राग त्रिगुण नाटक ॥ नाचंति कुमार कुमरी । त्रागादि तत्ता थेइ । दागादि २ थोंगनि २ मुखें तत्ताथेइ ना० ॥ १ ॥ बेणु बीणा मुरज बाजै। सोलही श्रृंगार साजे तनन निन्ना नई । घणण २ घूघरी धमके। रणणनिन्नानई ना० ॥२॥ कं संती कंचुकी तरुणी । मंजरी कंकार करणी। सोनंति कुमरी हास्तकं हावादि नावे । ददंति जमरी ना०॥३॥ सोलमी नाटक तणी सुरी यान रावणे कीधी सुधग तत्ता थेई। तेम नगते नविक लीणा । आणंद तत्ता थेई नाचंति कुमार कुमरी ॥४॥
॥ इति नृत्य पूजा ॥ १६ ॥
॥ अथ वाजिन पूजा ॥ .
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४६
॥ सतरहनदी ॥
(१७)
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सुरमद्दल कंसालो । मऊरिय मद्दल सुव जए पणवो । सुरनादि नंद तूरो पत्नणे तू नंदि जिणनाहो ॥
॥दोहा॥ तत घन सुषिरेशनधे। वाजिन चोविधवाय जगतनलीनगवंतनी। सतरमएसुखदाय॥१
॥ राग मधु माधवी ॥ तूं नंदिया नंद बोलत नंदी। चरण क मल जंतु जगत्रय बंदी। ज्ञान निरमल वा चत मुख वेदी । त्रिवली वोले रंग अतिही नंदी तं० ॥१॥नेरी गयण वाजंती। कुम ति त्यजंती । प्रन्न नक्ति पसायें अधिक गा जंती। सेवे जिन जै जणावंती । शावंती जैन सासन । जयवंती निरदंती। उदय सं घ परि परिवदंती । तूं०॥ २ ॥ सेवि नवि क मधु माधवी आखें इन फेरी । नविक न फेरी पनणंती। शंकई नाई साधु सतर मी पूज वाजिन सब । मंगल मधुर धुनि कहती तूं० ॥३॥ - ॥ इति वाजिब पूजा ॥ १७ ॥
॥राग धन्यासी॥
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॥ सत रहनेदी ॥
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॥ थ कला ॥
मणि गुण जिनके सबदिन । तेज तरणि मुख राजै । कवि शतक आठ थुणत शक स्तव । थुयकय राग मह बाजै ० ॥ १ ॥
॥ आरती करनी ॥
४७
हलपुर शांति शिव सुख दाई । सो प्रभु नव निधि रिध सिद्धि वाजै सतर सुपूज सुविधि श्रावक की । जणी मैं जगति हित काजे ज० ॥ २ ॥ श्री जिन चंद्र सूरि खर तर पति घर मन वचन सुराजै । संबत सोल अठा र श्रावण धरि । पंचमि दिवस समाजै न० ३ ॥ दया कुशल गणि अमर माणिक्य गुरु । तास पसाय सुविधि यऊ गाजें । कहै साधुकीरत करत जिन संस्तव । सब लीला सुख साजें ज० ॥
॥ इति सतरहनेदी पूजा संपूर्णी ॥
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१८
॥ नवपद पूजा ॥
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ईग॥ अथ नवपद जी की पूजा ॥
॥ गाथा ॥ उप्पन्न सन्नाण महो दयाणं । सप्पामि हे रासण संठियाणं ॥ सद्देसणाणंदिय सजणाणं नमो नमो होउ सया जिणाणं ॥१॥
॥ ढाला ॥ जिए शुछनावें निजात्मा पिडान्यो स्ववोधे बए दव्यनों भेदजान्यो । निज प्राग्नवें सप्त पः कर्म साध्यो। बिपाकोदयी तीर्थकृन्नाम बांध्यो॥१॥ यदीय प्रनावें जगत् मुप्रसिझा वसुप्राति हाOदि संपत्ति सिछा । परानंद मग्ना सदा जे विशोका। नमो ते जिना सर्वदा नव्य लोका ॥२॥ नमो नन्त संत प्रमोद प्र धानं । प्रधानाय नव्यात्मने नास्वताय । यथा जेह ना ध्यान थीसौख्यनाजा। सदा सिहच क्राय श्रीपालराजा ॥३॥कस्सा कर्मदुम मर्म
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॥ नवपदपूजा ॥
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४९
चकचूर जेणे । जला जच्य नवपद ध्यानेन तेणे। करी पूजना जव्य जावें त्रिकालें सदा वासियो पातमा तेण कालें ॥ ४ ॥ जिके तीर्थकर कर्म उदये करीनें । दिये देशना ज च्यनें हित धरीने । सदा पाठ महापाठिहारे समेता । सुरेस नरेसें स्तव्या ब्रम्हपूता । कस्था घातिया कर्म च्यारे लग्गा । नवोपग्रही च्यार में जे विलग्ग || जगत् पंच कल्याण के सौख्यामें । नमो तेह तीर्थं करा मोक्ष कामें ॥
॥ ढाल ॥
तीरथपति रिहा नमुं धर्मधुरंधर धीरो जी । देशना मृत बरसता निज वीरज वक वीरो जी ॥ १ ॥
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॥ त्रूटक ॥
वर प्रखय निर्मल ज्ञान जासन सर्व जाव प्रकाशता । निज शुरू श्रद्धा श्रात्म नावें चर ण थिरता वासता । जिन नाम कर्म प्रज्ञाव अतिशय प्राति हारज शोजता । जग जंत करुणावंत जगवंत नविक जननें थोजता ॥ ॥ दोहा ॥
परम मंत्र प्रणमी करी । तास धरी उर
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५०
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| नवपदपूजा ॥
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(१)
ध्यान । अरिहंत पद पूजा करो । निज २ सगति प्रमाण ॥ २ ॥
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॥ ढाल ॥
तीजे नव वर थानक तपकरि जिण बां ध्युं जिन नाम । चोसठ इंद्र पूजित जे जिन । कीजे तास प्रणाम रे ॥ १ ॥ जविका सिञ्चक पद वंदो जिम चिर काल यानं दो रे ज० ॥ उपशम रसनो कंदो रे ज० ॥ रत्न त्रयीनो वृंदोरे ज० | बंदी नें खानंदो रे ज० ॥ सेवे सुर नर इंदो रे नवि० ॥ १ ॥ जेहनें होइ कल्याणक दिवसे । नरके पिण उजवालुं । सकल अधिक गुण अतिशय धारी ते जिन नमि घटालुं रे ज० ॥ सि० २ ॥ जे तिहुं नाण समग्ग उपन्ना | जोग क रम खीण जाणी । लेइ दीक्षा शिक्षा दिये जन नें । ते नमिये जिन नाणी रे ज० ॥ सि० ॥ ३ ॥ महा गोप महा माहण कहिये । नियामक सत्य वाह । नृपमा एहवी जेहनें बाजे । ते जिन नमिये उबाह रे ज० ॥ सि० ४ ॥ याठ महा प्राति हारज बाजे । पैंतीस गुण युत वांणी ॥ जे प्रतिबोध करे जग जन
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॥ नवपदपूजा ॥
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५१
नें । ते जिन नमिये प्राणी रे ज० ॥ सि० ॥ ॥ ढाल सीमंधर स्वामी उपदिसे एदेशी ॥ अरिहंत पद ध्यातां थकां ॥ दह गुण पताये रे । नेद छेद करि श्रातमा । अरिहंत रूपी धाये रे ॥ २ ॥ वीर जिणेसर उपदिसे सांजल ज्यो चित लाई रे ॥ प्रातम ध्यानें छातमा । रिद्धि मिलें सऊ आई रे ॥ वी० ॥ ॥ लोक ॥
॥ विमल केवल ० हुँ । छा परमात्मने० ॥
॥ इति प्रथम पद पूजा ॥
॥ अथ द्वितीय पद पूजा ॥
॥ दोहा ॥ दूजी पूजा सिठ की ॥ कीजे दिल खुसि याल ॥ सुन कर्म दूरे टलें । फलें मनोरथ
माल ॥ १ ॥
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॥ छंद ॥ सिद्धाण माणंद रमालयाणं । णमो णमो णंत चउक्क्याणं समग्ग कम्म स्कयकारयाणं
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॥ नवपदपूजा ॥
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(२)
जम्नं जरा दुरक निवारगाणं ॥ २ ॥ निजा नादि कर्माष्टके । य करी नें । जरा मृत्यु जन्मादि दूरे हरी नें । स्थिता सर्व लोकाग्र जागें विशुद्धा ॥ चिदानंद रूपा स्वरूपें प्रसि झा ॥ ३ ॥ निजानंत बोधादि युक्ता प्रदेशा | निराबाधता निर्वृता जे श्लेशा । निराकार साकार जावे महंता । जो ते प्रमोदे सदा सि
संता ॥ ४ ॥ करी आठ कर्म दये पार पांश्या । जराजन्म मरणादि जय जेण वाम्या निरावर्ण जे प्रात्मरूपें प्रसिद्धा । थया पार पामी सदा सिद्ध बुझा ॥ ५ ॥ त्रिनागोनदेहा वगाहात्म लेशा । रह्या ज्ञान मय जात वर्णी दि देशा ॥ सदानंद सौख्या श्रिता जोति रूपा ॥ अनाबाध पुनर्नवादि स्वरूपा ॥
॥ ढाल ||
सकल कर्म मल दय करी । पूरण शुद्ध स्वरूपो जी छच्या बाध प्रभुतामई। छात म संपति पोजी ॥ सकल० ॥ १ ॥
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॥ त्रूटक ॥ जेनूप शतम सहज संपति । शक्तिव्यक्ति पणे करी स्वद्रव्य क्षेत्र स्वकाल जावें । गुण
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(२)
॥ नवपदपूजा ॥
अनंता आदरी स्वस्वनाव। गुण पर्याय पर णित । सिछ साधन परनणी । मुनिराज मानसहंससमवानमो सिझ महा गुणी १ ॥
॥ ढाल ॥ . . समय पएसंतर शण फरसी । चरमति जाग विशेष । अवगाहन लहि जे शिव पुं हता ॥ सिछ नमो ते अशेषरे न० ॥ १ ॥ पूर्व प्रयोग में गति परिणाम । बंधन बेद। शसंग । समय एक उगति जेहनी ॥ ते सिझ प्रण मो रंगे रे न० ॥ २ ॥ सि० ॥ निर्मल सिछ सिलाने ऊपर जोयण एक लो . गंत सादि अनंत तिहां थित जेहनी ते सिछ प्रणमो संतरे न० सि०॥३॥ जाणे पिण नस के कहि । परगुण प्राकृत तिम गुण जास। नपमा विण नांणी नव मांहे। ते सिह दिन जल्लास रे न० ॥ ४ ॥ जोतिसुं जोति मिली जस अनुपम । विरमी सकल जपाधि । शात म राम रमापति समरो। ते सिह सहज समा धिरेन०॥५॥..
॥ ढाल ॥ रूपातीत स्वनाव जे । केवल दंसण ना
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॥ नवपद पूजा ॥
(३)
णीरे। ते ध्याता निज प्रातमा । होइं सिध गुण खाणी रे वी० ॥२॥
॥श्लोक ॥ ॥विमल नही परम सिधेभ्यो।
॥ इति श्री हितीय सिछ पद पूजा ॥
-
॥ अथ तृतीय पद पूजा ॥
-
॥दोहा॥ हिवाचारज पदतणी पूजा करोविशेष मोहतिमिर दूरेहरे । सूफैलाव शशेष ॥१॥
सूरीण दूरीकय कुग्गहाणं णमो णमो सू रिसमप्पहाणं । सद्देसणा दाण समायराणं । अखंफ बन्तीसगुणायराणं ॥२॥ नमूसूरिरा जा सदासत्वताजा। जिनेंदा गमें प्रौढ सामा ज्यनाजा षड् वर्गवर्गित गुणे शोजमाना। पं चाचारने पालवें सावधाना ॥३॥ जिकेपंच
आचार पालें सुनावें। अनित्यादि सप्तावना नित्यनावें । जिनेंदागमें ज्ञान दानेसुरत्ता।
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॥ नवपदपूजा ॥
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५५
बनव्यमें जेरहें अप्रमत्ता ॥ ४ ॥ बती से गुणे दीप्यमाना गणेशा | सदाशासना धार नूता सुलेशा । बफूनव्य लोका सुमानयं ता । ऊज्योसूरि मुष्या सदातेजवंता ॥ ५ ॥ विप्राणिनें देशना देशकालें । सदा प्रम ता यथासूत्रालें । जिकेशासनाधारदिग्द तकल्या | जगते चिरंजीव जोशुरुजल्या ॥
॥ ढाल ॥
याचारिज मुनिपतिगणी । गुणबती सेंधा मोजी । चिदानंद रसस्वादता । परनावें नि कामोजी ॥ १ शा० ॥
॥ ऋटक ॥
निः कामनिर्मलशुचिदघन । साध्यनिज निरधारथी । वरज्ञान दरसण चरणवीरज । सा धनाव्यापारथी । जविजीवबोधक तत्वसोध क । सयलगुण संपतिधरा । संबर समाधिग तिउपाधि । दुविध तपगुण आगरा ॥
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॥ ढाल ॥
पंचाचार जेसूधापालें । मारगनाखेसा
I
चो । तेयाचारज नमियेनेहसुं । प्रेमकरीनें जा चोरे न० ॥ १ ॥ वरबत्तीस गुणेंकरिशोजें ।
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॥ नवपदपूजा ॥
(३)
युगप्रधान जगमाहै । जगमोहै नरहै खिणु कोहै । सूरिनमुंते जोहै रे न० सि० ॥ २ ॥ नितअप्रमत्त धरमउवएसें । नहिविकथान कषाय । जेहने तेआचारजनमियें। अकलुष अमलअमायरे ज० सि०॥३॥ जेदियेसार णवारण चोयण । पमिचोयण बलिजननें । पटधारी गबर्थन शचारज । तेमान्या मुनि मनने रे न सि० ॥ ४ ॥ अस्यमियं जिमसू रज केवल । वंदीजैजगदीवो । जुवन पदार थ प्रगटपटूते । आचारज चिरजीवोरे ज० सि०॥५॥
॥ढाल ॥ ध्याता शाचारजनला। महामंत्र शन ध्यानीरे । पंचप्रस्थाने शतमा । आचारज होयप्राणी रे ॥३॥ वीरजि०॥
॥श्लोक ॥ विमलकेवल० ॥ झी परम ० शाचार्य ॥
॥ इतिश्री तृतीयकला पूजा ॥३॥
॥ श्थचतुर्थ पद पूजा ४ ॥
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॥ नवपदपूजा ॥
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॥ दोहा ॥ गुण अनेक जग जेहना । सुंदर सोनित गात्र ॥ उवकाया पद अरचिये। अनुन्नव रसनो पात्र ॥१॥
॥गाथा ॥ सुन्तत्य वित्यारण तप्पराणं । णमो णमो वायग कुंजराणं । गणस्स संधारण सायराणं सवप्पणा वजिय मच्छराणं ॥ १ ॥ महा सूत्र सिझांत शुछे करीने । पढावें सुशिष्यां अनु ग्रह धरीने । करें पूजना लोक मध्ये तदीया स्फुरंती दृशी जास शक्ति स्वकीया ॥२॥ गणे सारशुहिं सहर्ष करंता । मुनी वर्ग मध्ये प्रमादं हरंता । पचीसे गुणे युक्तदेहा सुर्या । सदा वंदिये ते उपाध्याय पूर्या ॥ ३ ॥ नही सूरि पण सूरिगुण ने सुहाया । नमुं वाचका त्यक्त मद मोह माया । वली द्वादशांगादि सूत्रार्थ दाने । जिके सावधा ने निरुझा निमाने ॥ ४ ॥ धरे पंच ने वर्ग वर्गित गुणौधा । प्रवादी द्विपोच्छेदने तुल्य सिंघा। गुणी गच्छ संधारणे स्तंन नूता। उपा ध्याय ते वंदिये चित् प्रसूता ॥ ५॥
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॥ नवपदपूजा ॥
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(४)
॥ ढाल ॥
खंतिजुवा मुत्रिजुवा | प्रज्जव मद्दवजुता जी । ससोय किंचना । तव संयम ताजी ॥ १ खंति० ॥
गुणर
॥ त्रूटक ॥
जे रम्मा ब्रम्ह सुगुप्तगुता । सुमति सुमता श्रुति धरा । स्यादवाद वादें तत्ववादक । प्रा त्म पर वीजंजन करा । जव नीरू साधन धीर शासन । वहनधोरी मुनि वरा । सिद्धांत वा यन दान समरथ नमो पाठक पदधरा ॥ २ ॥
॥ ढाल ॥
1
द्वादशांग सिज्जाय करे जे । पारग धार गतास | सूत्र रथ विस्तार रसिक ते । नमोउ वज्काय उलासे रे न० ॥ १ ॥ अर्थ सूत्र नें दा न विनागें । आाचारज उवज्जाय । नवतिन्ये जेलहे शिवसंपद। नमियेते सुपसायें रे न० २ मूरख शिष्यनिपायें जेप्रभु | पाहणनें पल्लव श्राणे । तेउवाय सकल जन पूजित। सूत्र
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रथ सबजाणेरे ज० ॥ ३ ॥ राज कुमर स रिखागण चिंतक । श्राचारज पदयोगें । जेउव काय सदातेनमतां । नावें नवऩयसोगें रे न०
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(२)
नवपदपूजा ॥
४॥ सि० बावना चंदनरस समवयणे । श हित ताप सविटालें । तेउवफाय नमीजें जे वलि । जिनशासन अजुवाले रे न० ॥५॥
॥ढाल ॥ तप सिज्जाये रत सदा । छादश अंगनो ध्यातारे । उपाध्याय ते आतमा। जगबंधव जग नाता रे वी०॥
॥श्लोक ॥ ॥ विमल केवल० ॥ हा परम० उपा० ॥
॥ इति श्री उपाध्याय
-
--
॥ अथ पंचम साधु पद पूजा ॥
॥दोहा॥ मोक्ष मारग साधन जणी । सावधान थ या जेह । ते मुनिवर पद वंदतां । निरमल थायें देह ॥१॥
॥बंद ॥ सारण संसाहिय संयमाणं नमो नमो गु छ दयादमाणं । तिगुत्ति गुत्ताण समाहियाणं
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॥ नवपदपूजा ॥
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मुणीण मानंद पयठियाणं ॥ १ ॥ जिके दर्श न ज्ञान चारित्र रत्ने । करी मोद साधै प्र धान प्रयत्ने । सुमन्त्री गुपनी धरे सावधाना शनाचार पाले हरै मोह माना ॥२॥ विवों विकत्या प्रमादादि दोषा। जितेंद्री पणे जे महा ज्ञान कोसा । गुन्न ध्यान ध्यावें गुणौ घे समिछा । नमो ते सदा सर्व साधु प्र सिझा ॥३॥ करें सेवना सूरिवायग गणी नी। कऊं वर्णना तेहनी सी मुणीनी। समेता सदा पंच सुमति त्रिगुप्ता । त्रिगुप्त नही काम नोगेषु लिप्ता ॥१॥ वली बाह्य श भ्यंतरे ग्रंथि टाली। ऊइं मुक्ति में योग चा रित्र पाली। शुनाष्टांग योगें रमें चिन्त वा ली। नमुं साधुने तेह निज पाप टाली ॥ ५
॥ ढाल ॥ ___ सकल विषय विषवारनें। निक्कामी निस्सं गीजी नवदव ताप समावता । शातम सा धन रंगी जी ॥५॥
॥ टक ॥ जे रम्या शुछ स्वरूप रमणे देहनिर्मम नि र्मदा ॥ काउसग्ग मुद्धा धीरशासन ध्यान
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- ॥ नवपदपूजा ॥
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६१
अभ्यासी सदा । तप तेज दीपें कर्म जीपें नही बीपें परणी ॥ मुनिराज करुणा सिं धु त्रिभुवन बंधु प्रणमूं हित जणी ॥ २ ॥
॥ ढाल ॥
जिम तरु फूलें नमरो बैसे । पीना तसुन उ पायें । लेई रसातम संतोषें । तिममुनि गो चरि जायें रे न० सि० ॥ १ ॥ पंचेंद्र नें जेनि त जीपें । षटकायक प्रतिपालें । संयम सतरे प्रकार राधे । वंदों तेह दयाल रे ज० ॥ २ ॥ अठार सहस्स शीलांगनाधोरी । श्चल याचा
चरित्र | मुनिमहंत जयणा युत बंदी कीजे जन मपवित्र रे न० सि० ॥ ३ ॥ नवविध ब्रम्हगु प्तजेपालें । बारहविहतपसूरा । एहवामुनि नमियें जेप्रगटें । पूरबपुन्य अंकूरा रे न० सि० ४ ॥ सो नांनों परें परिक्षादीसें । दिनदिन चढतेवानें । संयम खपकरतां मुनि नमिये । देश कालानुमानें रे न० सि० ॥ ५ ॥
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॥ ढाल ॥
प्रमत्र जेनित रहे । नविहरषें नविसोचें रे । साधु सुधा ते छातमा । स्यूं मूंगे स्यूं लो रे वी० ॥
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॥ नवपद पूजा ॥
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॥ लोक ॥
॥ विमलके ० नी० परम० साधु ॥
॥ इति पंचम पद पूजा ॥ ५ ॥
॥ अथ षष्टमदर्शण पूजा ॥
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॥ दोहा ॥ जिनवर जाषित शुरुनय । तत्वतणी पर तीत ते सम्यग दर्शण सदा । प्रादरिये सुनरीत ॥ बंद ॥ जिणुत्रतत्रे रुइलरकणस्स । नमोनमो नि म्मल दंशणस्स | मिच्छत्त नासाइ समुग्गम स्स मूलस्स सम्ममहा दुमस्स ॥ २ ॥
॥ ढाल ॥
अनंतानुबंधी कृयादिप्रकारें । महामोह मिथ्यात्वने जेहवारे इगध्यादिनेदें करीव वीजे । समसष्ठिदें वली जे धुणीजे ॥ ३ ॥ जिनेंदोक्त तत्वार्थश्रद्धान रूपो । गुणासर्व म ध्ये प्रवच्वनूपो । विनाजेण नाणंचरितं शुद्धं सुहृदंत्राणंतं नमामो विशुद्धं ॥ ४ ॥ विप
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॥ नवपदपूजा ॥
६३
सहोबासना रूपमिथ्या । टलें जेशनादि थ में जे कुपध्या । जिनोक्तै ऊर्यसहजथी शुरू ध्यानं । कहीयेंदर्शनं तेहपरमंनिधानं ॥५॥ विनाजेहथीज्ञान मज्ञानरूपं चरित्रं विचित्रं न वारण्यकूपं । प्रकृतिसातमें उपशमें कयेंतेहहो वें । तिहांआपरूपें सदाशपजोवें ॥६॥
॥ढाल ॥ सम्मग्दर्शनगुणनमो। तत्वप्रतीत स्वरू पोजी । जसुनिरधार स्वनाव छै। चेतनगुण जेअरूपोजी ॥५॥
॥टक ॥ जे नूप अशा धर्म प्रगटैं। सयलपरईहा टलें । निजशछ श्रमानाव प्रगटै। अनुलवक सणाऊबलें । बजमान परणति वस्तुतत्वै । श हव सुर कारण पणे निज साध्य दृष्टं सरब कर णी । तत्वतासंपतिगिणे ॥ १ ॥
॥ ढाल ॥ शुरुदेव गुरुधर्मपरीक्षा । सद्दहणा परिणा म । जेह पांमी जे तेह नमीजें । सम्म ग्दर्शन नामें रे न० सि० ॥१॥ मलउपशम दयउ पशम यथी। जेहोइ त्रिविधि शनंग। सम्म
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॥ नवपदपूजा ॥
ग्दर्शन तेह नमीजे। जिनधर्मे दृढरंगे रे न. सि०॥ २ ॥ पंचवार उपसम लहिजै। यउ पशमियशसंख । एकवार दायक तेसम्पग। दर्शन नमीये असंख रे न० सि० ॥३॥ जे विणनाण प्रमाण नहोवें। चारित तरुनविफ लिन । सुखनिर्वाणन जे विण लहिये। सम कित दर्शन वलिन रे न० सि० ॥ ४ ॥ सफ सहबोले जे शलंकरिन । ज्ञान चारितगंमूल । शमकित दर्शन ते नित प्रणमुं । शिव पंथy एनुकूल रे न० सि० ॥ ५॥
॥ढाल ॥ शमसंवेगा दिकगुणा । क्यउपसम जेआ वेरे दर्शन तेहिज शतमा । स्युं होवें नाम धरावें रे वी० ॥ १ ॥
लोक ॥ ॥ विम० जी परम० दर्शन प०६॥
॥ इतिश्री षष्ठम पद पूजा ॥
॥ अथसप्तम ज्ञान पद पूजा ॥
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॥ नवपदपूजा ॥
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६५
॥ दोहा ॥ सप्तम पद श्री ज्ञाननो । सिद्ध चक्र तप मांहि । राधी जे सुन्न मनें । दिन दिन अधिक उबाह ॥ १ ॥ ॥ बंद ॥
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नाण संमोह तमोहरस्स । नमोनमोना ण दिवायरस | पंचप्पयार स्सुवगारगस्स सत्ताणसनृत्य पयासगस्स । ऊवेंजेहथी सर्व ज्ञानरोधो । जिनाधीश्वर प्रोक्तप्रर्थावबो धो । मतीदिपंच प्रकारप्रसिद्धो । जगना सने सर्वदैवा विरुद्धो ॥ २ ॥ यदीय प्रजावें सुन अनकं । सुपेयं पेयं सुकृत्यं कृत्यं जिणेजांणियें लोकमध्ये सुनाणं । सदा मे बि शुद्धं । तदेव प्रमाणं ॥ ३ ॥ ऊइंजेहथी ज्ञान शुद्धिप्रबोधें । यथावर्णनासें विचित्रा वबोधें तिर्णेजाणिये वस्तुषद् द्रव्यन्नावा । नहोवें वि तत्यानिजेच्छास्वनावा ॥ ४ ॥ होईपंच मत्या दि सुज्ञाननेदें । गुरूपास थी योग्यता तेनवेदै वलिज्ञेयया उपादेयरूपें । लहें चित्तमांजेम ध्यानेप्रदीपें ॥ ५ ॥
॥ ढाल ॥
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६६
॥ नवपदपूजा ॥
नव्यनमो गुणज्ञाननें। स्वपरप्रकाशक ना वेंजी। पर्यायधर्म अनंतता। दानेद स्वना वेंजी न० ॥ १ ॥
॥Jटक ॥ जेमुख्यपरणित सकलज्ञायक । बोधवास विलासता । मतिआदि पंचप्रकारनिर्मल । सिछसाधन लंछता । स्याहादसंगी तत्वरंगी प्रथम नेद शनेदता । सविकल्पनें अविकल्प वस्तु । सकल संशय व्दता ॥ २ ॥
॥ ढाल ॥ नक्ष शनद न जेविन लहियें। पेय पेय विचार । कृत्य अकृत्यन जे विन लहिये ज्ञानते सकल आधाररे न० सि० ॥१॥प्र थम ज्ञान में पीछेशहिंसा। श्रीसिझांतेन्नाष्यं ज्ञान ने वंदो ज्ञान मनिंदो । ज्ञानीये शिवसु खचाख्यु रे न० सि० ॥ २ ॥ सकलकियानो मूलजेत्रछा । तेहनूं मूलजे कहिये । तेहज्ञान नितनित वंदीजै। ते विन कहो किम रहिये रे न० सि० ॥ ३ ॥ पांचज्ञान मांहि जेह सदा गम । स्वपर प्रकाशक तेह । दीपकपर त्रिनु वन उपकारी। वलिजिम रविशशिमेहरे न०
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(e)
। नवपद पूजा ॥
सि० ॥ ४ ॥ लोक उरध शध तिर्यग ज्योति प। वैमानिक ने सिछि । लोक अलोक प्रगट सब जेहथी । ते ज्ञाने मुफसिछिरे न० सि०
॥ ढाल ॥ ज्ञानावरणी जेकर्मचै। खयउपशम तसथा येरे । तोहोय एहिजशतमा । ज्ञान प्रबोध ताजायेरे वी० ॥५१॥
॥श्लोक ॥ ॥ विमल नहीपरमपरमात्मनेज्ञान० ॥
॥ इतिश्री सप्तम ज्ञानपद पूजा ७॥ .
॥ अथाष्ठम चारित्र पद पूजा ॥
॥दोहा॥ शष्टमपद चारित्र नों पूजो धरी उमेद । पूजन अमुन्नव रस मिलै । पातिक होय उ द॥१॥
शारा हिया खंडिअ सक्किअस्स । नमो नमो संयम वीरिशस्स । सज्जावणा संग
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॥ नवपदपूजा ॥
।
निवहि शस्स । निवाण दाणाइ समजय स्स ॥ १ ॥ फलै जेह संपूर्ण थी तत्तकालं । सुणाणंपि सर्वात्मन्नावे विशालं। जिणे शाद स्यो जे प्रयत्ने करीने । दियो लोक में जे अनुग्रह धरीने ॥२॥ऊ। जेहथी रंकलोको पि पूज्यो । गुणश्रेणि थी दीपतो जेम सू
र्यो । स्वकीये सुन्नेर्दै करी जे विचित्रं । जयो ते सदा लोक मध्ये चरित्रं ॥३॥ बली ज्ञा न फल ते धरिये सुरंगें। निरायंसता द्वार रोधै प्रसंगे। नवांनोधि संतारणे यान त ल्यं । धरूं तेह चारित्र प्राप्त मूल्यं ॥४॥ होइं जास महिमा थकी रंक राजा । बली छादशांगी नणी होइ ताजा । बली पापरू पोपि निःपाप थावे । थई सिझ ते कर्म ने पार जावे ॥५॥
॥ ढाल ॥ चारित्र गुण बलि २ नमो । तत्व रमण जसु मूलो जी । पररमणीय पणो टलें। सकल सिछ अनुकूलो जी चा०॥
॥टक॥ प्रतिकूल आशव त्याग संयम तत्व थिर
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(८)
॥ नवपदपूजा ॥
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ता दम मयी । शुचि परमखंती मुनींद शम पद । पंच संवर उपचयो । सामायिकादिक नेद धर्मे यथाख्याते पूर्णता । शकषाय श कलुष श्मल नजल काम कश्मल चूर्मता ॥१
॥ढाल ॥ देश विरतने सर्व विरतजे । गृही यती शनिराम । ते चारित्र जगत जयवंतो। की जे तास प्रणामरे न०॥ १ ॥ तृण पर जे षट खंझ सुख बंझी । चक्रवर्तिपण बरिन ॥ ते चारित्र अखयसुख कारण । ते मैं मनमांहि धरिन रे न० ॥ २ ॥ जवा रंक पिण जेहनें शादरि । पूजित इंद नरेंद। शशरण शरण तेहिज वारू । बरिने ज्ञान आनंद रेन०॥ ३ ॥ बारमास परिजायें जेहनें अनुत्तर सु ख अतिकमिये । शुक्ल शुकल एनिजात्य तेऊपर । ते चारित्र ने नमिये रेन०॥४॥ चयते शाठ कर्म नो संचय । रिक्त करै जे तेह । चारित्र नाम निस्तै नाष्षु । ते बंदू गुणगेह रे । न० ॥५॥
॥ढाल। जाणी चारित्र तेआतमा । निज स्वना
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॥ नवपदपूजा
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(8)
।
वमांहि रमतोरे । लेच्या शुद्ध अलंकस्यो । मोह बने नवि जमतो रे बीर० ॥ १३ ॥ ॥ लोक ॥
विमल केव० । परम परमा० चारि०
॥ इत्यष्टमी कलवा पूजा
॥ अथ तप पूजा ॥
॥ दोहा ॥ कर्म काष्ठ प्रति जालवा परतिख अग्नि समान तपपद पूजो जवि सदा । निरमल धरिये ध्यान ॥ १ ॥
॥ बंद ॥
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ति
कम्महु मुन्मूलन कुंजरस्स । नमो नमो तवो नरस्स । प्रणेग लीण निबंध णरस । दुस्सज्ज प्रत्याणय साहणस्स ॥ १ ॥ इय नव पय सिद्धिं लठि विजा समि यं । पयप्रिय समवग्गं ज्ञीति रेहासमग्गं । दिशिवइ सुरसारं खोणि पीढा वयारं । विजय विजय चक्क सिक् नमामि ॥ २
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(९)
। नवपदपूजा .
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विधै जे कस्यो आतमा जजा वाले । घणा कालनी कर्मराशि प्रजालें। अनेका सुलही लहै यत् प्रनावें । कमायुक्त ए साधु महानं द पावे॥ ३ ॥ वली वाह्य अप्निंतरें जेद निवं जिनेंदा गमें वर्णव्यू जे बिलं । शनासं स्वनावें तिलोके सुबंदं । नमूते प्रमोदे तपः पद मनिंदा ॥४॥इति जिनवरदं नक्तितो ये स्तुवंति । परम पद निधानं मानसे संस्म रंति । परनव इह वा श्रीपालव मानवानां प्रनवति किल तेषां चार कल्याण लक्ष्मीः॥ ५ ॥ विकालिक पणे कर्म कषाय टाली। निकाचित पणे बांधिया तेह वाली । कह्यो तेह तप वाह्य शभ्यंतर दुने दे। क्षमायुक्त निर्हेतु दुर्ध्यान दे ॥६॥ होइं जास महि मा थकी लछि सिछि । श्वांबक पणे कर्म श्रावरण शुछि । तपो तेह तप जे महानंद हेतै। होइं सिछि सीमंतिनी जिम संकेतै॥७ इसा नवपद ध्यान में जेह ध्यावें । सदानंद चिद् पता तेह पावें । वली ज्ञान विमलादि गुणरत्न धामा । नमो तेह वृंदा सिश्चक प्रधाना॥ इम नवपद ध्यावें । परम शानंद
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॥ नवपदपूजा ॥
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(5)
पावें । नव जव शिव जावें । देव नर जव पावें । ज्ञान विमलगुण गावें । श्री सिद्धचक प्रजावें । सवि दुरित समावें । विश्वजय कार पावें । ॥ ९ ॥
॥ ढाल ॥
इच्छा रोधन तप नमो । वाह्याभ्यंतर नेदेजी । तम सत्ता एकत्वता । परपरणित उछेदैजी ।
॥ त्रूटक ॥ उच्छेदकर्म अनादि संतति जेह सिद्ध प गोवरें। योगसंगै निद्रायाहारटाली । जाव यता करें | अंतर मकरत तत्वसाधै स र्श्व संवरता करी । निजात्म सत्ता प्रगटना वें । करो तपगुण चादरी ॥ १० ॥
। ढाल ॥
इमनवपद गुण मंलुं । चउनिक्षेप प्रमा जी । सातनयें जेादरें । सम्मग ज्ञानें जा जी ॥
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॥ त्रूटक ॥ निरधार सेतोगुणें गुणनोकरें जेवऊमान ए । जसु करणईहा तत्वरमणें थायें निर्मल
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(९)
नवपदपूजा ॥
७३
ध्यान ए। इम शुछ सत्ता नलो चेतन सकल सिझी अनुसरें। अक्षय अनंत महंत चिदघन परम शानंदता वरें ॥ १ ॥
कलश ॥ इम सयल सुख कर गुण पुरंदर सिछ्वक पदावली । सविलब्धि विजा सिद्धि मंदिर नविक पूजो मनरली । उवकाय वर श्री राज सागर ज्ञान धर्म सुराजता । गुरुदीपचंद सु चरण सेवक देवचंद सुशोनता ॥२॥
॥ढाल ॥ जाणंता त्रिजंज्ञाने संयुत । ते नव मुकति जिणंद। जेह आदरें कर्म खपेवा। ते तप सुर तस कंदरे न०॥ १ ॥ करम निकाचित पिण
यजावें। कमा सहित करंतां । ते तप नमि ये तेह दिपावें। जिन शासन उजवाले रे न० २॥ शामोसहि पमुहा बऊलछी । होइंजा स प्रन्नावें अष्ट महा सिधि नव निधि प्रग टें । नमिये तेह प्रनावें रे न० ॥ ३ ॥ फल शिव सुख मोटूं सुर नरवर । संपति जेहy फूल । ते तप सुरतरू सरिखो वंदु । सम मकरंद थमूल रे न० ॥ ४ ॥ सर्व मंगल मां
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॥ नवपदपूजा ॥ .
(१)
है पहिलो मंगल । वरणवियो जे ग्रंथे । ते तप पद त्रिकरण नित नमिये । बर सहाय शिव पंथे रे न०॥ ५॥ इम नव पद थुण तो तिहां लीनो । ऊवो तनमय श्री पाल सुजस विलास ने चौथे खं। एह इग्यार मी ढाले रे न०॥६॥
॥ढाल ॥ इच्छारो| संबरी। परणित समता योगें रे तपते एहिज आतमा । बरतें निज गुण नोगें रे वी० ॥१॥ शगम नोआगमतणो । नाव ते जाणो साचो रे । आतम नावे थिर ऊवो पर नावें मत राचो रे वी० ॥२॥ अष्ट स कल समृहिनी। घटमांहें रिछी दाखी रे । तिम नवपद रिछ जाणज्यो । हातमराम में साखी रे वी० ॥३॥ योग शुसंख्य कें जिन कह्या नवपद मुख्य ते जाणो रे । एह तणे अवलंब नें । शातम ध्यान प्रमाणो रे वी० १॥ ढाल बारमी एहवी। चौथे खंभें पूरी रे वाणी बाचक जस तणी । कोइ न अधूरी रे वी० ॥५॥
॥ लोक ॥
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(8)
॥ नवपद शारती ॥
॥ बिमल केवल० नी तपसे ॥
॥ इति तप पद पूजा ॥ ९ ॥
॥ इति वृहनवपद पूजा संपूर्णा ॥
॥ अथ नवपद जी की आरती ॥ जय जय जग जन बंबित पूरण सुरतरु अभिरामी । प्रतम रूप बिमल करतारक अनुभव परिणामी ज० ॥ १ ॥ जय २ जग सारा । नविजन धारा ॥ रति पार उतारा | सिद्ध चक्र सुख कारा ज० ॥ २ ॥ जग नायक जग गुरु जिणचंदा । जज श्री नग वंता । तमराम रमा सुख जोगी । सिद्धा ज वंता ज० ॥ ३ ॥ पंचाचार दिये श्राचारज युगवर गुण धारी । धारक बाचक सूत्र रथना पाठक जव तारी ज० ॥ ४ ॥ सम दम रूप सकल गुण धारक मोटा मुनि राया दरसण नाण सदा जय कारक | संजम तप गाया ज० ॥ ५ ॥ नवपद सार परम गुरु जाषै । सिद्धचक जयकारी । इह नव पर
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७५
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७६.
बोटी नवपदपूजा ॥.
(७)
-
नव रिधि सिधि दायक नव सायर वारी॥ ज० ॥६॥ कर जोडी सेवक जस गावे मन बंछित पावे। श्री जिन चंद चरण परि पूजक शिव कमला पावे ज० ॥ ७॥
॥ इति नवपद शारती संपूर्ण ॥
॥ अथ नवपद लघु पूजा ॥
-
-
उय्यन्त्रसन्नाणमहोमयागं । सय्यामिहेरास णसंठिशाणं ॥ सद्देसणाणंदियसजणाणं । न मोनमो होउसया जिणाणं ॥ १ ॥ नमोनंतसं तप्रमोदप्रधानं । प्रधानाय नव्यात्मने ना स्वताय। थया जेहना ध्यानधी सौख्यनाजा॥ सदा सिझ चकाय श्रीपालराजा॥२॥कस्या कर्म दुम मर्म चकचूर जेणें । जलानच्य नव पद ध्यानेन तेणें ॥ करी पूजना नव्य ना वें त्रिकाले । सदा वासियो प्रातमा तेण का
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(१)
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॥ बोटी नव०जा ॥
७७
लें ॥ ३ ॥ जिके तीर्थकर कर्म उदयें करी नें । दिये देशना नव्य नें हित धरी नें ॥ सदा आठ महापाoिहेरें समेता ॥ सुरे सें नरे सें स्तव्या ब्रम्ह पूता ॥ ४ ॥ कस्पाघा तिया कर्म च्यारे अलग्गा । नयो पग्रही च्यार के जे विलग्गा ॥ जगत् पंच कल्याण के सौप्य पामें । नमो तेह तीर्थंकरा मोद कामें ॥ ५ ॥
॥ दोहा ॥
परम मंत्र प्रणमी करी । तास धरी उर ध्यान ॥ अरिहंत पद पूजा करो । निज २ सक्ति प्रमाण ॥
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॥ ढाल ॥
तीजे नव विधि सों करी । बीसस्थानक तप करिनें रे ॥ गोत्र तीर्थंकर बांधियो । समकित सुधमन धरिनें रे ॥ १ ॥ छरिहंत पद नितवंदिये करम कठिन जिमबंप्रिये रे छां० ॥ जनम कल्याणकने दिने । नारकीसु खियायः वें रे । मतिश्रुतश्वधिविराजता । ज सुनुपमकोई नावें रे ० ॥ २ ॥ दीवालीधी सुमनें । मनपर्यव खादरियो रे ॥ तपकरि
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बोटी नव०जा।
कर्मखपायनें। ततखिणकेवल वरियोरेश०३ चोतिस तिसय सोजता । वाणीगुण पें तीसोरे ॥ शठदस दोष रहितथई । पूरसंघ जगीसो रे २०॥ ४ ॥ मनतन वयण लगा यनें । अरिहंत पद शाराधै रे ॥ तेनरनिश्च यथीसही। अरिहंतपदवी साधे रे २०५
॥श्लोक ॥ _श्याष्ठ दलमध्याबज कर्णिकायां जिने श्वरान् शवितो लसद्वोधा नावृतः स्थाप याम्यहम् ॥ १ ॥ निःशेषदो धनधूमकेतू। नपार संसार समुदसेतून् ॥ यजेसमस्ता तिश यैक हेतून् । श्रीमजिना नंबुजकर्णिकायां २ नहीशहभ्यो नमः ॥ इति शरिहंत पूजा ॥
॥ अथ सिछ पूजा ॥
॥दोहा॥ दूजी पूजा सिधनी कीजे दिल खुसियाल शसुन्न कर्म दूरे टलें फलें मनोरथ माल ॥१ सिझणमाणंदरमालयाणं । नमो नमो गंत चउकयाणं । करी शाठकर्मक्षये पार पाम्या जरा जन्म मरणादि नय जेण वाम्या । निरावर्ण यात्म स्वरूपें प्रसिझा । थया पा
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॥ बोटी नवजा॥
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रपामी सदा सिछ बुझा॥त्रिनागो न देहा वगाहात्म प्रदेशा। रह्या ज्ञानमय जात वर्णा दि लेशा । सदानंत सौष्या श्रिता ज्योति रूपा । शनाबाध अपुनर्नवादि स्वरूपा ॥
॥ ढाल ॥ सकल करमनों दाय करी । सिझ श्व स्था पाई रे गुण इगतीस विराजता । नपम जस नहि काई रे ॥ ६॥ मनसुध सिझपद बदिये क० शं० । जनममरण दुख नीगम्या
छातम चिदरूपी रे । अनंतचतुष्टय धारता अव्यावाध अरूपी रे म०॥७॥जास ध्या न जोगीसरू । करे राजप्पा जा रे। जव २ संच्या जीव। कठिन करम ते का रे ॥ म० ॥८॥ ध्यान धरता सिझनों पूजंतां मन रागें रे । अविचल पदवी पाईये। कह्यो जिनवर व नागें रे म० ॥ ९ ॥
॥ श्लोक ॥ तस्यपूर्व दलेसिछान् । सम्यक्तादि गुणा मकान् ॥ निः श्रेयस पदंप्राप्तान् । निदधे नक्तिनिर्नरः ॥ १॥ तत्पूर्वपत्रे परितः प्रण ष्ठः। दुष्टाष्ठका नधिगम्यशुहिं॥ प्राप्ताबरा
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॥ बोटी नवजा॥
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न सिछि मनंतवोधान् । सिधा न्यजे शांति करावराणां ॥२॥ झी सिन्यो नमः ॥
॥ इति सिह पूजा ॥
॥ अथ शाचार्य पूजा ॥
॥दोहा॥ हिवआचारिज पदतणी। पूजा करो विशे ष॥ मोह तिमिर दूर हरै। सूझे नाव शशेष
॥बंद ॥ सूरीण दूरीकय कुग्गहाणं । नमोनमो सू रिसमय्यहाणं । नमोसूरिराजा सदातत्वताजा जिनेंदागमे प्रौढ साम्राज्यनाजा । षट्वर्गव हितगुणे शोनमाना । पंचाचारने पालवें सा वधाना । नविप्राणिने देशना देशकालें । स दा अप्रमत्ता यथासूत्राले । जिके शासना धारदिगदंतिकल्पा । जगत्ते चिरंजीव जोशु छजल्पा ॥ १ ॥
॥ढाल ॥ गुणबत्तीसे दीपता। पालै पंचशाचारोरे॥ जिनमारग साचोकहै॥ युगप्रधान जयकारो
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॥ बोटी नवपद० ॥
रे।शाचारिज पदवंदीये क० । सारण वारण चोयणा । पमिचोयण चौसिद्धारे। नव्यजीव समझायवा । देवाने ते दहा रे शा० ॥ १ ॥ जिनवर सूरिज शाथम्यां। परतिख दीपक जे हारे । सकल नाव परगट करें। ज्ञानमयी ज सु देहा रे शा०॥ २ ॥ विधिसुं पूजा साचवें ध्यावे निज हित जाणी रे। पावें लघुतर का लमा आचारिज पद प्राणी रे शा० ॥ ३ ॥
॥श्लोक ॥ स्थापयामि ततः सूरीन् दक्षिणेस्मिन् दले मले चरतः पंचधाचारं षट्त्रिंशत् समुणैर्यु तान् ॥ १ ॥ सूरीन् सदाचाररतां इचसारा नाचारयंतः स्वपरान्यथेष्ठं उग्रोपसगैक नि वारणार्थ मन्यर्चयाम्यक्तगंधधूपैः ॥ २ ॥ ही सूरिज्योनमः॥ इति शचार्य पद पूजा॥
॥ श्थ उपाध्याय पूजा ॥
॥दोहा॥ गुण अनेक जग जेहना । सुंदर सोनित गात्र ॥ उवझायापद शचिये। अनुन्नव रस नो पात्र ॥ १ ॥
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॥ बोटी नवपद०॥
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॥बंद ॥ सुत्तत्यविस्थारण तय्यराणं । नमो नमो वा यग कुंजराणं । नहीसूरि पिणसूरिगुणनें सु हाया । नमुं वाचकात्यक्त मद मोहमाया।व लीहादशांगादि सूत्रार्थ दाने ।जिके सावधा ने निसछानिमाने । धरै पंचने वर्गवर्गित गु णौघाः प्रवादी द्विपोच्छेदनेतुल्यसिंहा । गुणी गच्छ संधारणे स्तंननूता। उपाध्याय तेवंदिये चित् प्रसूता ॥ १ ॥
॥ढाल ॥ द्वादशांगी वांणी वदें। सूत्र शरथ विस्ता रैरे। पंचवरग गुण जेहना । सुमति गुपति नित धारै रे ॥ १॥ श्रीउवझाया वंदीये क० आं० ॥ दायक शागम चावना । नेद नावयु त सारी रे । मूरखकुं पंफित करै। जगतजंतु हित कारी रे ॥२॥ शीतल चंद किरण समी वांणी जेहनी कहियें रे। तेउवकाया पूजतां। अविचल सुखका लहीये रे श्री०॥३॥
॥ श्लोक ॥ छादशांग श्रुता धारान् । शास्त्राध्ययन तत्परान ॥ निवेशयाम्युपाध्यायान्। पवित्रे
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॥ बोटी नवपद०॥
पश्चिमे दले ॥१॥श्रीधर्मशास्त्राण्य निशंप्र शांतपै । पठंतिये न्यानपिपाठयंति ॥ अध्या पकांस्तांनपराजपत्रे।स्थितान्पवित्रान्परि पूजयामि ॥२॥ नँझा उपाध्यायेच्यो नमः । ॥ इति उपाध्याय पूजा ४ ॥
॥ अथ साधु पूजा ॥
॥ दोहा ॥ मोक्षमारग साधननणी। सावधानथया जह ॥ ते मुनिवरपद वंदतां । निरमलथायें देह ॥ १॥
॥ बंद ॥ साण संसाहिय संजमाणं । नमो नमो सुछ दयादमाणं । करैसेवना सूरिवायग गणी नी। कलं वर्णना तेहनीसी मुणीनी । समेता सदा पंचसमितित्रिगुप्ता। त्रिगुप्ते नही का मनोगेषुलिप्ता । वलीवाह्य अन्यंतरें ग्रंथि टाली। ऊयेमुक्तिने योग्य चारित्र पाली। सुनाष्टांग योगै रमैं चिन्नवाली। नमुंसाधुने ते ह निज पापठाली ॥ १ ॥
॥ ढाल॥
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॥ बोटी नवपद०॥
. सकलविषय विषवारनें । शतमध्यानेरा तारे । उपशम रसमांकीलता । निजगुणज्ञा ने माता रे ॥ १ ॥हित धरि मुनिपद वंदिये क० आं० । रतनत्रया शाराधतां । षटका या प्रतिपाल रे। पंधी जी सदा । जिन मारग उजवाले रे हि० ॥ २ ॥ गुण सत्ता वीस शलंकस्था। पंच महाव्रत धारी रे । द्वादशविध तपशादरै । चिदानंद सुखकारी रे हि० ॥ ३ ॥ नवविध व्रम्हचरिज धरै । करम महा नट जीत्या रे । एहवामुनि ध्यावें सदा । तेनरजगत विदीता रे हि ॥ १ ॥
॥श्लोक ॥ व्याख्यादिकर्मकुर्वाणान्। शुनध्यानैक मा नसान् ॥ उदक्पत्रगतान्नित्यं साधून्बंदामि सु व्रतान् ॥ १॥ वैराग्यमंतर्वचसिप्रसिद्धं । स त्यंतपोछादशधाशरी रे येषामुइक् पतगतान पवितान् । साधून् सदातान् परिपूजयामि २॥ नही सर्वसाधुन्यो नमः ॥ इति साधु पूजा ॥५॥
॥ श्थ दर्शन पद पूजा ॥
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॥ बोठी नवपद०॥
॥दोहा॥ जिनवर जाषित शुधनय। तत्वतणी पर तीत ॥ ते सम्यग्दर्शन सदा। शादरिये शु नरीत ॥१॥
॥बंद ॥
सइलरकणस्स । नमोनमो नि म्मलदंसणस्स ॥ विपर्यासहो वासनारूप मि ध्या। टलै जे अनादी अबै जेम पथ्या ॥ जिनोक्त ऊवें सहजथी शह ध्यानं । कहिये दर्शनं तेह परमं निधानं ॥ विना जेहथी ज्ञा न मज्ञानरूपं । चरित्रं विचित्रं नवारण्य कप प्रकृति सात उपशमदये तेहहोवें। तिहांआ परू सदा आप जोवें ॥१॥
॥ ढाल ॥ सुगुरू सुदेव सुधर्मनी सरदहणा चित ध रिये रे । सात प्रकृतिनो क्य करी । कायक समकित वरिये रे ॥ १ ॥ दरसण पद नित वंदीये क० ० । इण विन ज्ञान निफल कह्यो । चारित निफल जायें रे । सिव सुख जे विण नां मिलें । बऊ संसारी थाये रे॥ द०॥ २ ॥ सतसठि नेदें सोनतो । अज
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८६
॥बोटी नवपद०॥
(७)
रामर फल दातारे । जे नर पूजै नाव सुं ते पामें सुख सातारे द० ॥ ३ ॥
॥श्लोक ॥ जिनेंदोक्त मतं श्रछा लक्षणं दर्शनं यजे मिथ्यात्व मथनं शुद्धं । न्यस्त मीशान सद्द ले ॥ १ नही सम्यग्दर्शनाय नमः ॥ इति दर्शन पद पूजा ॥६॥
॥ अथ ज्ञान पद पूजा ॥
॥दोहा॥ सप्तम पद श्री ज्ञाननो। सिह चक्र तप मांहि । शाराधीजे शुन्न मनें। दिन दिन श धिक उगहि ॥ १ ॥
॥बंद ॥ अन्नाण संमोह तमो हरस्स। नमो नमो नाण दिवायरस्स । जयें जेहथी ज्ञान श छ प्रबोधं । यथा वरणनासे विचित्रं वियो धं ॥ तिणे जाणिए वस्तु षड्द्धव्य नावा । नहोवें वितत्या निजेछा स्वनावा॥ ऊवें पंच मत्यादि सुज्ञान नेर्दै । गुरू पास थी योग्य तातेन वेदें । बलीज्ञेय हेयाउपादेय रूपें ।
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(6)
॥बोटी पदनव०॥
८७
लहें चित्तमां जेम ध्वांत प्रदीपें ॥१॥
॥ ढाल ॥ नद अन्नद विचारणा पेय अपेय निर धारो रे । कृत्य अकृत्य ने जांणिये ज्ञान महा जयकारो रे॥१॥ ज्ञान निरंतर बंदिये क०। शां० ॥ ज्ञान विना जयणानही । जयणा बिन नहि धर्मो रे । धर्म बिना शिव सुख नही । तेविण नमिठैनौ रे ज्ञा० ॥१॥ पां चप्रकार, जेहना । नेदइकावन तासोरे ॥ जाणीने पूजेसदा। तेलहै केवलखासोरे॥२॥
॥ श्लोक ॥ अशेषव्यपर्याय । रूपमेवा वनासकं ॥ ज्ञानमाग्नेय पत्रस्थं। पूजयामि हितावहं १॥ इतिज्ञान पद पूजा ७॥
॥ अथ चारित पद पूजा ॥
॥दोहा॥ शष्टमपद चारित्रनो । पूजोधरी उमेद ॥ पूजत शनुनव रसमिलें। पातिक होयउद
॥बंद ॥ श्राराहिया खंमिय सकियस्स । नमो २ सं
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॥ बोटी नवपद०॥
यमवीरियस्स । ज्ञानफल तेहधरिये सुरंगे। निरायंसता हार रोधेप्रसंगें। नवांनोधि सं तारणे यानतुल्यं । धसंतेहचारित्र अप्राप्तमू ल्यं । ऊवें जास महिमा थकी रंकराजा। व लीहादशांगी नणीहोय ताजा । वली पाप रूपोपिनिः पापथायें । थईसिह तेकर्मनोपा र पायें ॥ १ ॥
॥ढाल ॥ सर्वविरतिने देशविरतिथी।शणागार सा गारी रे । जयवंतो थावोसदा । तेचारित्र गु णधारी रे ॥१॥ चारितपद नितवंदीये क० शां० । षटखं सुखतजिआदरे। संयमशिव सुखदाई रे । सन्तरिनेर्दै जिनकह्यो । तेश दरियेन्नाई रे चा० ॥२॥ तत्वरमण तसुम् लछ। सकलशाश्रवनो त्यागी रे। विधिसेती पूजनक रे।नावधरी वनागी रे चा०॥३॥
लोक ॥ सामायिकादिनि भैदै । श्चारितू चारूपं चधा । संस्थापयामि पूजार्थ पतहिन ते कमात् ॥ १ ॥ जीसम्य ग्चारिताय नमः ८॥ इति चारित पद पूजा
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॥ बोटी नवपद०॥
॥ अथ तपपद पूजा ॥
॥दोहा॥ कर्मकाष्ठ प्रतिजालवा। परतिख अगनि समान । ते तपपद पूजोसदा । निरमल ध रियेध्यांन ॥ १॥
॥बंद ॥ कम्महमन् मूलन कंजरस्स । नमो रति छतवो नरस्स । त्रिकालिक पणे कर्म कषाय टाले । निकाचित पणे वांधिया तेहवालें । कह्यो तेह तप वाह्य शन्यंतर दुलेदें। द मा युक्ति निहेतु दुान दें। ऊवें जास महिमा थकी लब्धि सिछि । श्वांछ कपणे कर्म शावरण शुछि। तपो तेह तपजे महा नंद हेतै। जवें सिधिसीमंतिनी निज संकेत
॥ढाल ॥ निज इच्छा अवरोधीये । तेहिज तप जिन नाख्योरे। वाह्य शल्यंतर नेदथी छाद श नेदे दाख्योरे ॥ १ ॥ अनुपम तप पद बंदीये क० । आं० । तदनव मोक गामीप णो । जाणे पिण जिनरायारे। तप कीधा प ति शाकरा । कुत्सित करम खपायारे अ०॥२
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॥ बगेटी पदनव०॥
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करम निकाचित क्षय ऊवें । ते तप ने पर नावें रे। लवधि अठावीस ऊपजे । अष्ठ म हा सिध पावें रे २० ॥ ३॥ एहवो तप पद ध्यावतां । पूजंतां चित चाहेरे। अक्षय गति निर्मल लहै । सऊ योगिंद सरा है रे॥ अ०॥४॥
॥श्लोक ॥ हिया द्वादशधा निलं । पूते पत्रे तप श्चयं निस्थापयामि नक्त्यात्र । वायव्यांदि शिशर्मदं ॥ १ ॥झी सम्पक तपसे नमः ।
॥ इति तप पद पूजा ॥
॥ श्थ कलश ॥ इम नव पद ध्यावे। परम आनंद पावे नव नव शिव जावे । देव नर नव पावे । ज्ञान विमल गुण गावे । सिछ चक्र प्रनावे । सऊदुरित समावे । विश्व जयकार पावे ॥
॥ अथ तवन उपरको कला ॥ अरिहंत सिछ शाचार्य उवकाय साधु दंसण नाणए । चारित्र तप नवपद थकी इहां सिझ चक प्रमाणए। श्रीपाल राजा सु
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॥ बोटी नवपद०॥
रक ताजा लह्या सिध्चक ध्यानसों । नवि जन नजो जिन लान जांणी।हिये आणीना वसों ॥ १ ॥ इय नवपय सिद्धिं । लछि विजा समिळं। पयमिय सर वग्गं । झाति रेहा समग्गं । दिसिवइ सुर सारं । खोणि पीढा वयारं तिजय विजय चर। सिझ च कं नमामि ॥१॥ निः वेदत्वादि दिव्याति शय मय तनून् । श्री जिनेंदा न्सुसिछान् । सम्यक्तादि प्रकृष्ठा ष्ठगुण गणनुदा चार सा रांश्च सूरीन् । शास्त्राणि प्राणिरका प्रवचन रचना सुंदराण्या दिसंत स्तत्सिबै पाठका नां यति पति सहिता नईयाम्य र्घ्यदानैः ।। १ ॥ इत्य मष्ठदलं पन्नं पूरये दर्हदा दिनिः स्वाहांतैः प्रणवादी श्च पदै विध्ननिवृत्तये॥ २॥ नझा पंच परमेष्ठिने सम्य ग्ज्ञानादि चतु रन्वितेच्यो नमः ॥ इति श्री नवपदस्त तिः ॥ सिझचक्र तप महिमा वर्णनम् ॥
॥ इति लघु नवपद पूजा ॥
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॥ बोठी खारती ॥
॥ अथ आरती ॥
ए नवपद प्राणी नित ध्यावो । पंचम ग त शासय सुख पावो ॥ ० ॥ धुरधी रि हंतपद ध्याईजै थिरता यें श्रीसिद्ध थुणीजे । ॥ १ ॥ चारज तीजे याराधो । सूधै मन निज कारिज साधो ए० ॥ २ ॥ उवकाया पंचम अणगारा प्रणमंतां पामें नवपारा । ३ ॥ दंाण नाण चरण नलदीपें । तप तप तां कुमरिनें जीपें ए० ॥ ४ ॥ ए नवपद प्राणी नित थुणतां । गिरवा नरजव सफल गिता ए० ॥ ५ ॥ सिद्ध चकूनी कीजे सेवा मनबंछित लहिये नितमेवा ए० ॥ ६ ॥ जर श्मर सुखदायक साचो । रूडै मनसे नि तप्रति राचो ए० ॥ ७ ॥ इति आरती ॥
॥ थ विंशति स्थानक पूजा ॥
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(१)
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(१)
॥वि० स्था० पू०॥
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॥दोहा ॥ सुखसंपति दायकसदा। जगनायक जिन चंद ॥ विघनहरण मंगलकरण । नमो नानि नृपनंद ॥ १ ॥ लोकालोक प्रकासिका । जि नबाणी चितधार ॥ विंशतिपद पूजनतणो। कहिस्यूं विधि विस्तार ॥ २ ॥ जिनवर अंगें नाषिया। तपजप विविधप्रकार॥विंशति प द तपसारिखो। श्वर न कोइ उदार ॥३॥दा नशील तपजप किया। नावविना फलहीन जैसे जोजन लवण विन । नहीसरस गुणपीन ४ ॥जेनवियण सेवेसदा । नावें स्थानकवीस तेतीर्थंकर पदलहै । बंदै सुरनरईश ॥५॥
॥ ढाल ॥ श्री अरिहंत पद १ सिधपद २ ध्यावो प्रवचन ३ आचारिज ४ गुणगावो॥ स्थविरपं चमपद ५ पुनरुवकाया ६। तपसी ७ नाण ८ दंसण ९ मनन्नाया ॥ १ ॥
॥ उल्लालो॥ मननाव विनया १० वश्यका११ मल । शील १२ किरिया १३ जानिये॥ तप १४ विविध नतम पात्र १५ बेया। बच्च १६ समाधि १७
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॥वि० स्था० पू०॥
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बखानिये॥हितकर अपूरब नाण संग्रह १८ध रोमन सुजगीसए॥ श्रुक्तिलक्ति १९ फुनि तीर्थ प्रत्नावन २० एह थानक वीसए ॥२॥
॥ ढाल ॥ एथांनकबीश जग जयकारा । जपतांलही ये जिनपदसारा ॥करम निकंदैवीश बावीसै नाण्या जग तारक जगदीसें ॥
॥ उल्लालो॥ जगदीस प्रथम जिणंद । जगगुरु चरमजि नवरजीमुदा। नवतीसरे पद सकल सेवी २० लही जिनपति संपदा । बावीस जिनवर२२ सकल सुखकर । इंदजसु गुनगाइये । इग दोय २ त्रिण ३ सज २० पद जपीनें । तीर्थप ति पदपाइये ॥ ४॥
॥दोहा ॥ शरिहंतादिक पदसदा । नजिये तपकरि गुछ । प्रतिनिर्मल गुनयोगता । करिकेतसु गुणलुछ ॥१॥ बिमल पीठत्रिक तदुपरें । ठविये जिनवर वीस ॥ पूजन उपग्रण मेलक रि। शरचीजै सुजगीस ॥ २ ॥ एक २ ए पद तणो । दव्यपूज परकार ॥ पंच ५ अष्ट८ बि
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(१)
वि० स्था० पू०॥
९५
धजानिये। सन्तर १७ इगविस २१ सार ॥३॥ अष्ट८ जातिना कलश करि । बिमलजलें नर पूर ॥ पूजो नवियण सज २० मुदा । होय सकल दुख दूर ॥ ४ ॥ सोहै सऊ परमेष्ठि मैं जिनवरपद अनिराम ॥ बेद ४ निपें सम रिये । वधते शुलपरिणाम ॥ ५॥
॥ रागदेशाख । पूर्वमुखसावनं एचाल॥
सकलजगनायकं । परमपददायकं । लाय कं जिनपदं विमलनानं । चतुरधिकतीस ३४ अतिशय अमलबार १२ गुण । वचन पणतीस ३५ गुणमणिनिधानं ॥ १ ॥ सुखकरण जिन चरण पटलसेवित सदा । नमर सुर शसुर नर हदयहारी । एहजिनवरतणी आण पूरणसदा दामजिम जगतजन शिरसि धारी थईयो॥२ जिनपपददरशपारसफरशतेंजवें । प्रगटनिज रूप परिणति विनासं । तजिय वहिरात्म गि रिसारता नविलहै । अनुपमं आत्म कांचन प्रकाशं ॥३॥ ऊवइ जिनराज पद जाप रवि किरण तै। तुरत बऊ दुरित जर तिमि र नाशं । घन चिदानंद वरकंदधन नवि
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९६
॥ वि० स्था० पू०॥
(२)
लहैं। तीर्थकरचरण कमलाविलाशं ॥४॥वर बिबुध मणि लही काच लघु शकल कों। ग्र हण करिवा कवण कर पसारे । तिम लहीजि न चरण शरण शुन योग सें। श्वर सुरसरण कुण ह दय धारै ॥५॥ प्रन्नु तणे पंच कल्या केरे दिन। प्रगट तिज लोकमें जइ उजेरो। नविक देव पाल श्रेणिक प्रमुख जिन नमी बांधियो गोत्र जिनराज केरो ॥ ६ ॥ जेह त्रिण काल नित नमैं जिन हरखसुं । तेह न व जल तिरे जनम तीजें । शधिक नव य दि करे । तदपि निश्चय करी ॥ सप्त ७ वलि अष्ट नव करीय सीकै॥७॥
॥काव्य ॥ णमो णंतबिन्नाण सहसणाणं । सयाणंदि या सेस जंतू गणाणं । नवं नोज वियणे वारणाणं । णमो वोहियाणं वराणं जिणाणं ८॥ जी श्री अहम्यो नमः ॥ ॥ इति प्रथमपदे श्रीजिनेंद पूजा ॥१॥
॥दोहा॥ तन त्रिनाग के घटन ते ॥ घन श्वगा हन जास । विमल नाण दंसण कियो । लो
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(२)
॥वि० स्था० पू०॥
९७
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कालोक प्रकास ॥१॥ बिनासी अप्रमित शचल । पदवासी विकार । अगम गो चर शजर राज । नमो सिझ जयकार ॥२॥ ॥राग सोरठ कुंदकिरणशशिऊजलोरेदेवा ॥
अनुनव परमानंदसुंरे बाला । परमातम पद बंदो रे। करम निकंदो बंदिने रे वा० । लहि जिनपद चिरनंदो रे ॥१॥ गगन पए शंतर बली रे वा०। समयांतर अणफरसी रे
व्य सगुण परजायना रे वाला। एक समय विध दरसी रे ॥ २ ॥ एक समय शजु गति करीरे वाला। नए परमपद रामी रे।नांजै सादि अनंत रे वा० । निरुपाधिक सुख धामी रे॥३॥ अखिल करममल परिहरी रे बाला। सिझ सकल सुख कारी रे । विमल चिदानं द घन थयारे वाला । वर इकतीस गुण धारी रे ॥४॥ उतपन्नता वलि विगमता रे बाला ध्रवता ३ त्रिपदी संगें रे। प्रनु मैं अनंत च तुष्कता रे बाला। सोहें शमकम नंगें रे॥५॥ पनर १५ नेद ए सिछ थयारे बाला । सह जानंद स्वरूपी रे। परम ज्योति मैं परिण
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९८
॥ विं० स्या० पू० ॥
(२)
म्यारे बाला । अव्याबाध रूपी रे ॥ ६ ॥ जिनवर पिणप्रण मैं सदारे वाला। एहनें दीक्षा प्रवसरे रे । तिण प्रभुपद गुणमालिका रे बा ला । कंठे धरिये सुपरै रे ॥ ७ ॥ हस्ति पा ल नवि जगतिसुं रे वाला | सिद्ध परम पद जजिने रे । पद श्री जिन हरखे लह्यो रे बा ला । पर गुण परणति तजिनें रे ॥ ८ ॥ ॥ काव्यं ॥
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लोगग्गनागोपरि संठियाणं । बुझाणसिद्धा णं मणिंदियाणं । निस्सेस कम्मरकय कारगा णं । णमो सया मंगल धारगाणं ॥ ९ ॥ मुँजी श्री सिद्धभ्यो नमः ॥
॥ इति द्वितीय पदे श्री सिद्ध पूजा ॥
॥ दोहा ॥
पदतृतीय प्रबचन नमो | ज्युनजमो संसा र ॥ गमो कुमति परिणमनता । दमो करण जयकार ॥ १ ॥ जैसे जलधर वृष्टि तें । ल फल्द विकसाय ॥ तैसें प्रवचन शक्तितें । शु न परिणति उलसाय ॥ २ ॥
खि
॥ श्रीराग जिनगुणगानंश्रुतच्यमृतं एचालमै ॥
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(३)
वि० स्था० पू० ॥
९९
प्रवचन ध्यानं सुखकरणं। परिहरिये सज विषय विकारं । करिये प्रवचन शाचरणं प्र० १ ॥ सप्त ७ नंगिनूषित एप्रवचन । स्यादवा द मुद्धानरणं । सप्त नयात्मक गुणमणि शा गर । बोधबीज उतपति करणं प्र० ॥२॥ जैसे शमृत पानकरणतें । ऊवें सकलविष संह रणं । तैसें प्रवचन शमृतपाने । कुमति हला हल प्रविसरणं प्र० ॥३॥ प्रवचनको आधे यकहीये । सकलसंघ तसु शधिकरणं । तिण एसंघ चतुरविध प्रवचन । एपद अखिल कलु षहरणं प्र०॥ ४ ॥ यदि नविजन तुमएचा हतुहै। मुगति रमणि जन वश करणं । कर ण तीनइक करि तद करिये । प्रवचन पदसम रण धरणं प्र० ॥५॥ जिनवरजी पिण एती रथनें । प्रणमें मध्य समवसरणं। नवजल ता रण तरणि समानं । ए तीरथ अशरण शरणं प्र०॥६॥ जिमनरतेसर संघनगति करि । लहियो पुण्यफला चरणं । चकीपद अनुन वि वलि शिवपद । लीध करिय कम निर्जर णं प्र०॥ ७॥ नरपति संनवजिन हरकरि धाराधी प्रवचन चरणं । करम निकंद थया
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१००
वि० स्था० पू० ॥
(३)
जगदीसर जिनप रमाउर आनरणं प्र०॥८॥
॥काव्य ॥ अणंतसंसुछगुणायरस्स । दुरकंधया सग्ग दिवा यरस्स ॥ अणंतजीवाण दयागिहस्स। णमोणमो संघचउनिहस्स ॥ १ ॥ नझाश्रीप्र वचनाय नमः ॥ इति तृतीयपदे श्रीप्रवचन पूजा ॥३॥
॥दोहा॥ पदचतुर्थ नमियेसदा। सूरीसर महाराज सोहम जंबू सारिसा । सकल साधु सिरताज १॥ सारण वारण चोयणा। पमिचोयण कर तार ॥ प्रवचनकज विकसायवा। सहस कि रण अवतार ॥२॥
॥राग रामगिरी गात्र लूहैं । आचारिज पद ध्याइयेरे वाला। तासवि मल गुण गाइये॥पाइये हांहोरे वाला पाइये जिनपति पद जगशिर तिलो रे शा० ॥१॥ जिन शासन नजुवालतारे वाला। सकलजी व प्रतिपाल तां॥ पालतां हां० ॥ चरण क रण मगचाल तां श० ॥ २ ॥ सूरी सकल गुण सोहता रेवाला । सुरनर जन मनमोह
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(१)
वि० स्था० पू० ॥
१०१
ता। मोहता हां० ॥ नवियण ने पकिवोह ता श०॥ ३ ॥ पंचाचार विराजिता रे वाला स जलजलद जिम गाजता ॥ गाजता हांहो० सूरि सकल सिर बाजता शा०॥४॥ उप देशामत वरसतारे वाला । दुरित तापसज निरसिता ॥ निर० हांहो० ॥ परमातम पद फरसता शा०॥ ५॥ धरम धुरंधरता धरा रेवा० जग वांधव जग हितकराहि० हांहो स्वपर समय बिउ गणधरा शा०॥ ६ ॥ प द श्रीजिन हर ग्रह्योरे वाला सूरीसर पद तप वह्यो ॥ तक हांहो० ॥ पुरुषोत्तम नृप शिवलह्यो ॥ शा०॥
॥काव्य ॥ कुबादि केली तरु सिंधुराणं । सूरीसराणं मुनिबंधुराणं ॥ धीरतसंतजिय मंदराणं । ण मो सया मंगलमंदिराणं॥ १ ॥ नझी श्रीया चार्यन्योनमः ॥ ४ चतुर्थपदे आचार्यपूजा ॥
॥दोहा॥ विविध थविर जिनवर कह्या ॥ दुव्य नाव परकार । लौकिक लोकोतर वली। सु निये नेद बिचार ॥१॥जनका दिक लौकि
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॥ विं० स्था० पू० ॥
(५)
क थविर | लोकोत्तर अणगार | पंचम पद में जानिये । द्वितीय थविर अधिकार ॥ २ ॥
॥ राग सारंग ॥
नित नमिये थविर मुनी सरा । पंचमहा व्रत धारक वारक । कुमति जगत जन हित करा नि० ॥ १ ॥ संयमयोगें सीदत बालक ग्लाना दिक सऊ मुनिवरा । एहनें उचित सहा य दियते । वारे एहनां दुखजरा नि० ॥ २ ॥ पर्यय वय श्रुत त्रिविध ए धविरा । वीस स साठ समोपरा । वयधर समबया धिक पा ठक | एह थविर गुण आगरा नि० ॥ ३ ॥ तीजे अंग कह्या दस थविरा । रत्न त्रयीनां गुण धरा । ते इह निर्मल नाव ग्रहिया न विक सरोज दिवाकरा नि० ॥ ४ ॥ कीरजल धिराम प्रतिहि गंजीरा । सुरगिरि गुरु धीर
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ज धरा । वारणागत तारणता धारा । ज्ञान विमल जल सागरा नि० ॥ ५ ॥ श्रुत तप धीरज ध्यान धरणतें । दुव्यादिक ज्ञाता व रा । तेह स्वरूप रमण कह्या थविरा । नही य धवल केशांकुरा निं० ॥ ६ ॥ एह थविर पद सेवी जगते । पदमोत्तर बसुधेसरा । पद
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(६)
॥ विं० स्था० पू० ॥
श्री जिन हरखें तिण लहियो । मुनिवर कुमुद निसाकरा नि० ॥ ७ ॥
१०३
॥ कला ॥
सम्मत संयम पतित जविजन । यतिहि थिर करता जला । अवगुण दूषित गुण विभूषित | चंद्र किरण समुज्जला । अष्टाधि कादवा सहस शीलांग । रथ रुचिर धारा धरा नव सिंधु तारण प्रवर कारण । नमो थविर मुनीसरा ॥ ८ श्री स्थविराय नमः ॥
॥ इति पंचमपदे स्थविर पूजा ॥
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॥ दोहा ॥
पूवरनाण दरसण चरण धारक यतिधूम सारे ॥ समितिपंच त्रिण गुपतिधर । निरुपम धीरज धार ॥ १ ॥ चरण कमल जेहनां नमें ग्रहनिशि सुरनर राय ॥ जनतागिरि दारण कुलिना । जय जय सिरि उवकाय ॥ २ ॥ ॥ राग भैरव पंचवरणी अंगीरची० एचाल ॥ नावधरि उबकाया वंदो विजयकारी | श्री उवकाय परमपद बंदी | लहो जिनपद छतिशय धारी जा० ॥ १ ॥ कुमती मदतर
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१०१
॥वि० स्था० पू०।
(६)
नंजन सिंधुर । सुमतिकंद घन अवतारी ॥ अंग दुबालस नणे नणावें। शिष्य नणी चि तहित धारी ना० ॥ २ ॥ सकल सूत्र उपदे श दियण ते वाचक शति विमलाचारी ॥ नव तीजै अमृत सुख पावें । सुर शसुरेंद्र मनोहारी ना० ॥३॥ हय गय वृष पंचान न सरिखा । करमकंद वरतर वारी । वासु देव वासव नृप दिनकर । विधु झारि तु लाधारी ना०॥ ४ ॥ जंबू सीता नदि कांच न गिरि। चरमजलधि नेपम नारी। एनपम बऊतनी जाणों उतराध्ययनें कही सारी ना० ॥ ५॥ श्मल पंचविंशति गुण मणि निधि सकल नवन जन उपगारी । संशय तिमिर हरण वासर मणि । पाप ताप आ तप वारी ना० ॥६॥ प्रवर संख पय नरि यो सोहै। तिमए ज्ञान चरण चारी महेंद्र पाल पाठक पद सेवी । लहियो जिन पद विजितारी ना० ॥७॥
॥ काव्य ॥ सहोहि बीजं कुर कारणाणं । णमो णमो वायग वारणाणं । कुबोहि दंती हरिणेसरा
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(६)
॥ वि० स्था०पू०॥
१०५
णं । विग्घोष संताव पयो हराणं ॥८॥
जा श्री उपाध्यायेन्यो नमः॥ ६ इति षष्ठ पदे उपाध्याय पूजा ॥
॥दोहा॥ जाणे जिनवाणी सरस । स्याद वाद गुण वंत ॥ मुनि कहिये शिव पंथनें। साधैं साधु कहंत ॥१॥ शमता रस जल कीलता । बि सदानंद सुरूप ॥ तिग पाम्यो पद सप्तमें। नभो नमो मुनि नूप ॥ २॥ ॥राग गुंफ मिश्रित नीममल्हार मेघबरसे ॥
॥जरी पुष्प बादल करी एचाल ।
नक्ति धरि सातमें पद नजो मुनिवरा । सुखकरा विजित इंदिय विकारा ॥ गुण स तावीस जूषण करी सोजिता । कोनिता वि कट कम सुनट सारा न० ॥१॥ चरण सत्त रि परम करण सत्तरि धरा। शिव करण नाण किरिया प्रधाना ॥ प्रति दिनें दोष या हारना वरजिता । सप्त ७ चालीस १० यति धूम निधाना न०॥२॥ मदन मद नंजता कमति जन गंजता । नक्त जन रंजता दांति
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६०१
वि० स्था० पू० ॥
(६)
नरिया ॥ सुमत धरिया सदा चरण परिया जना । तारिया ज्ञान गंभीर दरिया न० ॥ ३॥ तृणमणी सम गिणे चतुर बिध धर्मना परम उपदेश दायक उदारा ॥ बहिरज्यंतर निदा वार बिधथति कठिन। तपत सकल जीउ अन्नयकारा न०॥४॥ वलि श्ठा वीस मनहरण गुण लबधि निधि । सातमें बछ गुण ठाण वसिया । सप्त जय वारका प्रवरजिन आगन्या । धारका स्वगण परिण मनरसिया न०॥५॥ पंच परमाद कल्लोल ता कुल महा । पार संसार सागर जिहाजा बिविध नव वामि युत शील व्रत के धरा मधर निज वाणि रंजित समाजान०॥६॥ कोकि नव सहस थुणिये महामुनि वरा । वी रत्नद्ध जिम करिय साधु सेवा ॥ परम पद जिन हर्षसुं ग्रह्योतसु तणा । चरण कजयुग नमें सकल देवा न० ॥ ७ ॥
॥ काव्य ॥ __ संतजिया सेस परीसहाणं । निस्सेस जीवाण दया गिहाणं ॥ सन्लाण पजायतरू वणाणं । नमो नमो होय तवोधणाणं ॥८॥
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(८)
॥ वि० स्था० पू० ॥
१०७
नही श्री सर्व साधुन्यो नमः ॥ इति सप्तम पदे श्री साधु पूजा ॥
॥दोहा॥ बिमल नाण खर किरण किय । लोका लोक प्रकास ॥ जीत लही निज तेज से। जिण अनंत रविनास ॥ १ ॥ सज संशय तम अपहरे । जय २ नाण दिणंद ॥ नाण चरण समरण थकी विलय होय दुख दंद ॥ ॥राग घाटो मेरो मन बस करलीनो ॥
॥जिनवर प्रन्नु पास एचाल ॥
नावें ज्ञान बंदन करिये। शिव सुख तर कंद ॥ जिन चन्द पद गण धरिये वरिये प रम शानंद ना० ॥१॥ मतिनाण १ त २ पुनरवधि ३ मन परजय जाण ४ ना० । लो कालोक नाव प्रकासी। वर केवल नाण ५ ना० ॥ २॥ पंच ५ ए इकावन ५१ नेर्दै । कह्यो जिनवर जान ॥ जग जीव जन्ता छेर्दै ज्ञानामृत रस पान ना० ॥ ३ ॥ बिन ज्ञा न धीकी किरिया । होय तसुफल ध्वंस ॥ नदानद प्रगट ये करिये। जिम पय जल
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१०८
॥वि० स्था० पू० ॥
(१)
हंस ना० ॥ ४ ॥ वरनाण सहित सुकिरिया करी फल दातार ॥ ऊवो ज्ञान चरण रसी ला। लहो नव जल पार ना० ॥५॥ ज्ञाना नंद अमृत पीधो । *नरतेसरराय ॥ तिणसे शमत पद लीधो । सुरपति गुण गाय ना० ६॥ सेवी ज्ञान जयत नरेसैं । नये जिन महाराज ॥ सोहें ज्ञान ये त्रिनुवन में । स ज गुण सिरताज ना०॥७॥
काव्य ॥ बद्दछ पजाय गुणुकारस्स । सया पयासी करणो रस्स ॥ मिच्छत शन्नाण तमोहरस्स नमो नमो नाण दिवायरस्स ॥८॥ ही श्री ज्ञानाय नमः ॥ इति अष्टम पदे श्री ज्ञान पूजा ॥८॥
॥दोहा॥ दरशण आश्रय धर्मनों। एहना षटउप मान ॥ दरशण विणनहि चरणचिद । उतरा ध्ययनें जान ॥१॥ जिन दरसण फरस्यो नलो। अंतर मुजरत मान ॥ अईपुगल परि यट रहें। तसु संसार वितान ॥२॥
• मरुदेवीमाय ॥ इत्यपिपाठः ॥
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(९)
वि० स्था० पू० ॥
१०९
॥ राग कामोद चंपक केतक मालती एचाल॥
जिनदरसण मुझमनवस्योए । शइयोमन वस्योए । उपजत परमशानंद । जिनदरसण दरसणदिये । विमल नाण तरकंद ॥ १ ॥द रसण मोह रिपु जीतिया ए अ० । वरदरसण उलसंत । दरसण घट परगट ऊवां । नविय ण नव ननमंत॥२॥जिनवर देव सुगुरु व्र तीए । केवलि कथित जिनधर्म । तीन तत्व परिणति रमें । ते दरसण करेंशर्म ॥३॥ जिन प्रनु वचनो परिसदाए १० । थिर सरदहण धरंत । इण लक्षण तै जानिये । समकित वंत महंत ॥ ४ ॥ इग १ दुग २ ति ३ चउ ४ शर ५ दस १० विहाए। सतसठि ६७ नेदवि चार । वलि पररीति समकित नण्यो दुख्य नाव परकार ॥ ५॥ व्यजिन दरशण कह्यो ए। नावें समकित सार । द्रव्यत दरशणना वतो । दरशण कारण धार ॥६॥ द्रव्यदरस ण यदिगतवलीए २०॥ तदपि उत्तर हित कार शयं नव जिनदरसणें। पायो दरसण सार ७॥ दरसण विण किरियाहताए १० अंक विना
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११०
" विं० स्था० पू० ॥
जिम बिंदु | वहिणियों विनचंदिका । वा सरमें जिम इंदु ॥ ८ ॥ हरिविक्रम नृप सेवतो ए प्र० । दराण पद अभिराम । पद श्री जिन हर धस्यो ॥ बधतै शुभ परिणाम | ८ |
॥ काव्य ॥
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(6)
अनंत विनाण सुकारणस्स । णंत सं सार विदारणस्स ॥ णंत कम्मावलि धंस णस्स । णमो २ निम्मल दंसणस्स ॥ १ ॥ झी श्री दर्शनाय नमः ॥ ९ ॥ इति नवम पदे श्री दर्शन पूजा ||
॥ दोहा ॥
विनय भुवन रंजन करें । विनये जस वि सतार ॥ विनय जीव नूषित करै । विनयें ज य जय कार ॥ १ ॥ विनय मूल जिनधर्मनों । विनय ज्ञानतरु कंद ॥ विनय सकलगुण से हरो । जय जय विनय सनंद ॥ २ ॥ ॥ रागसामेरीपूजोरीमाईजिनवर यंगसुगंधै ॥
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**
ध्यावोरीमाई विनय दशम पद ध्यावो । पंचद दस १० विध तेरस १३ विध । बा वन ५२ नेद गणेसै ॥ बासठि ६२ भेद कह्या
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(१०)
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॥ विं० स्या० पू० ॥
999
श्रागम में | विनयतणा सुविसेसें ध्या० ॥ १ ॥ तीर्थंकर १ सिट २ कुल ३ गण ४ संघा ५ किरिया ६ धर्म ७ वरनाणा ८ ॥ नाणी ९ छाचारिज १० मुनिथविरा ११ । पाठक १२ गणि १३ गुणजाणा ध्या० ॥ २ ॥ ए रिहादिक तेरस १३ पदनो । विनय करें जेनावें । ते तीर्थंकर पद अनुविनें । मृतपद सुखपावें ध्या० ॥ ३ ॥ जिम कंचन मैं मृदुगुण लालेँ । नहीय कालिमा पावें ॥ तिण ए सकल धातु मैं उत्तम । नाम कल्पाण कहावें ध्या० ॥ ४ ॥ तिम विनयी मैं बै मृदुता गुण कुमति कठि नता नासें । कृन्नादिक लेन्यानी मलिनता जाये विनय गुण जासे प्या० ॥ ५ ॥ दोय स हस अधिक चिऊत्तर । देववंदन निरधा रो। गुरु वंदन विधि च्यार से बाणुं ४९२ भेद करी उरधारो ध्या० ॥ ६ ॥ तीर्थकरादि कनो मन रंगें । विनय चरण शुन ध्यायो ॥ धन नामा जविजन शुभ योगें। पद जिन हर्षे पायो ध्या० ॥ ७ ॥
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॥ काव्य ॥
आणंदया सेसजगज्जणस्स । कुंदिंदु पादा
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११२
॥वि० स्था०पू०
(११)
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मलता चणस्स ॥ सुधम्म जुत्तस्स दयास्यरस णमोणमो सविणया लयरस ॥८॥र्नुहोत्री विनयाय नमः १० इति दशमपदे श्रीविन यपूजा ॥ १० ॥
॥दोहा॥ इग्यारमपद नितनमुं । देवासरव चारित्र पंकमलिनता दूरकरि।चेतनकरे पवित्र ॥१॥ एह चरण सेवन करें । रंकथकी सुरराय ॥ तीन जगतपति पददिये । जसु सुरनर गुण गाय ॥२॥ ॥ राग सारंग बावन चंदन घसिकुम०एचाल ॥
चरण सरण मुऊमनहस्यो। सुखकरण ह रण घनपापए। हांहो रे वाला ॥ एहचरण ज लधरहरें । अज्ञान तरुणतर तापए हां० १ पाठकषाय निवारतां । देशविरत प्रगटजवें खासए हां० । चारकषाय निवारिया । सम विरत लहै गुण वास ए हां० ॥ २ ॥ इगवा सर सेव्यो थको। सुधसरव संवरचारित्रए हां० परमानंद घनपददिये । सुरलोक जनि तसुखचित्रए हां ॥३॥ नवनय तरुगण
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(१२)
॥ वि० स्था० पू०॥
११३
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दिवा । ए संयम निसित कुठार ए हां० ॥ ज्ञान परंपर करण छै । शमृतपदनों हित कार ए हां० ॥ ४॥ चरण अनंतर करण छ। निर बाण तणों निरधार ए हां। सरब विरति सुध चरणसे पामें रिहंत पद सार ए हां०॥५॥ वरस चरण पर जायमें। अनुत्तर सुख अति कम होय ए हां० । सतर १७न्नेद चारित्रना। कहिया जिन शगम जोय ए हां० । देश थी सम संयम विर्षे। उजलता अनंत गुण जाज ए हां० । अरुण देव सेवी चरणने । न ये जगगुरु जिन महाराजए हां० ॥ ७ ॥
॥काव्य ॥ कम्मोघ कतार दवानलस्स । महो दयानं द लयाजलस्स । विन्नाण पंकेरुह काणणस्स णमो चरितस्स गुणाषणस्स ॥८॥झी श्री चारित्राय नमः ॥ ११ ॥ ॥ इति एकादश पदे श्री चारित्र पूजा ॥
॥दोहा॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवी । काम कलश श्वधार । व्रम्हचर्य इण सम कह्यो । कामि त फल दातार ॥ १ ॥ जिम जोतिसियां र
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॥ विं० स्था० पू० ॥
जनि कर । सुर गण में सुरराय । तिम सऊ व्र त शिर सेहरो । ब्रम्ह चरिज कहिवाय ॥ २ ॥ ॥ रागकाफी जंगला जला प्रनुगुण वाल्हाहो ॥
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(१२)
नवनयहरणा शिव सुखकरणा । सदानजो ब्रम्हचाराहो ज० ॥ शीलविबुध तरुप्रतिपाल नकों । कही जिनवर नववाराहो ज० ॥ १ ॥ दिव्यौदारिक करण करावण । अनुमति विष य प्रकारा हो ज० ॥ त्रिकरणजोगें ये परिहरि ये । नजिये नेद दारा हो न० ॥ २ ॥ कन क कोमिनो दान दिये नित । कनक चैत्यकर तारा हो ज० ॥ येहथी ब्रम्हचरिज धारकनो । फल गणित अवधाराहो ज० ॥ ३ ॥ सहसचो रासी श्रवण दानफल । नाम ब्रम्हव्रतफल सारा हो न० ॥ विजयसेठ विजयासेठाणी । उन्नय पक्ष ब्रम्ह धारा हो ज० ॥ ४ ॥ जये सुदर्शन से ठशीलसें | मुगतिबधू जरताराहो ज० ॥ सह स स्टार शीलांगरथ धारा । धार करो निस तारा हो ज० ॥ ५ ॥ सिंहादिक वसुजय तरु जंजन | सिंधुर मदमतवारा हो ज० ॥ कलह कारि नारद रिषिसरिखे । तस्योजवजलधि
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(१३)
॥वि० स्था० पू०
११५
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पारा हो न० ॥ ६ ॥ पच्चरकाण विरति न हि एहमें । येव्रम्हव्रत उपगाराहो न० ॥स कल सुरासुर किन्नर नरवर । धरीय नगति हितकाराहो न० ॥७॥ व्रम्हचरिज व्रतधरन रवरके । प्रणमैंचरण उदाराहो न०॥ दशमें अंगेजणियों नरवर्मा । नरपति गण साधा राहो न० ॥८॥ व्रम्हचरिजनत पाल लह्यो पद । जिनहर * जयकारा हो न० ॥ ९ ॥
॥काव्य ॥ सग्गा पवग्गग्ग सुहपयस्स । सुनिम्मला णंत गुणालयस्स ॥ सच्च्या नसण नूसगस्त णमोहि सीलस्स अदूसणस्स ॥ ९॥ ज्ञात्री ब्रम्हचर्याय नमः १२ इति छादशपदे श्रीत्र म्हचर्य पूजा ॥ १२ ॥
॥दोहा॥ करम निरजरा हेतु है । प्रवर किया गुण खाण ॥ जिनशासन नीस्थितिरही किरिया रूपें जाण॥ १॥ नवन मांहि किरियामही । सकल शुछ विवहार ॥ प्रवरनाण दरसण त णों। शुधकिरिया सिणगार ॥२॥ ॥ राग मालवीगौझी सब शरतिमथन०धूपं ॥
-
ॐ भव तारा हो।
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११६
॥वि० स्था० पू०॥
(१३)
शुनध्यान किरिया हृदय धरिने। धूम स कल उरधार रे ॥ शातरौंदनी हेतुकिरिया । शशुन पणवीस वार रे सु० ॥ १ ॥ ज्ञानवंत अशस्त्रनटहैं। किया शस्त्र वतंसरे॥सुनटना णी कियाशस्त्रै । करयकम अरिध्वंस रे सु०२ ज्ञान सेती वदेशिवयदि । तेरमें गुणठाणरे॥ येकनाणे करि जिनेसर । किम न लहैं निरवा णरे सु० ॥३॥ जिनप शैलेशीकरण करि । चउदमें गुणठाण रे ॥ सरस संबरचरण करणे लहें पद निरवाणरे सु० ॥ ४ ॥ ये अनंतर अ मृतकारण । कह्यो जिनवर नाणरे ॥ सरवसं वरचरणकिरिया । नशिवइण विनुजाणरे सु० ५॥ येकनाणे इककियामें । नशिव वितरण शक्ति रे ॥ कहें जिनवर उन्नय योगें। लहन विजन मुक्तिरे सु० ॥६॥ गरलमिश्रित स रसनोजन । शगुन परिणति धाररे॥ अमृत संयुत तेहन्नोजन । रुचिर परिणति कार रे सु० ७॥ ज्ञानसहता तेमकिरिया । करिकरें निस ताररे ॥ ज्ञानविन किरियानदीयें। मनोमत फलसाररे सु०॥८॥ ज्ञान परिणत रमीकि रिया । तेहकिरिया साररे ॥ नयोहरि वाहन
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(१४)
॥ विं० स्था० पू० ॥
जिनेसर | शुद्ध किरियाधार रे सु० ॥ ९ ॥ ॥ काव्यं ॥
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(१७
विठ समान विनूसणस्स । सुलद्धि सं पत्तिसुपोसणस्स ॥ णमोसदाणंत गुणप्पदस्स णमोणमो सुकिरिया पदस्स ॥ १० ॥ झी श्री क्रियायै नमः १३ इति त्रयोदशपदे श्री किया पूजा ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥
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शमतारस युत तपरुचिर । जणियो जिन जगन्नान ॥ शिवसुर सुख चंदनफलद । नंद नविपिन समान ॥ १ ॥ सघन करम कानन दहन | करनविमल तपजान ॥ विपिन धूम केतनसमो । जय तप सुगुण निधान ॥ २ ॥ ॥ रागकल्याण तेरीपूजावनीतेरस में एचाल ॥
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मेरीलगी लगन तपचरणें । सकल कुशल मैं प्रथम कुशल ए । दुरित निकाचित हर णें मे० ॥ १ ॥ जैसे गणधर की जिन चरणें । चातक की जल धरणें | जैसे चक्रवाक की अरणें । चकोर की हिम किरणें मे० ॥ २ ॥ जिनवर पिण तदनव शिवजाणें । त्रिणचउना
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११८
॥ विं० स्था० पू० ॥
ण सुकरणें मे० ॥ तदपि सुकोमल करण सर णनें । ठवय कठिन तप करणें मे० ॥ ३ ॥ कपट सहित तपचरणधरणतें । वांबित फल नवितरण मे० ॥ नितएदंन रहित तपपदके सुरपति गणगुण वरणें मे० ॥ ४ ॥ पीठम हापीठमुनि मल्ली जिन । पूरब जव तप सर मैं मे० ॥ रहिया तदपि कपट नवि बनो । नये स्त्रीगोत्रा चरणें मे० ॥ ५ ॥ दृढप्रहारी पांव धनकरमी । बंम्नाकरमावरणें मे० ॥ तपसे शोजलही त्रिभुवनमें। केवल कमलान रणें मे० ॥ ६ ॥ लाषइग्यारह असी हजारा | पंचसयस दिनखिरणें मे० ॥ मासखमण करि नंदन मुनिवर । पाम्यों फलशिव धरणै मे० ७ तपकरियो गुणरयण संवच्छर । खंधक नाम तादरणें मे० ॥ चनुदसहस मुनिमैं कह्यो धिकं । धनोतपाचरणें मे० ॥ ८ ॥ बहिर च्यंतरनेदें एतप । बारनेद अधिकरणें मे० ॥ वसनें कनककेतु पांम्यो पद । जिन हरषें न वतरणें मे० ॥ ९ ॥
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(१४)
॥ काव्य ॥
लसीसरोजा वलिता वणस्स । सरूव सं
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वि० स्या० पू० ॥
लग्ग सुपावणस्स ॥ शमंगलानो कुहदुद्दवस्स णमोणमो निम्मल सत्तवस्स ॥ १० ॥ झा श्री तपसे नमः ११ इति चतुर्दश पदे श्री तप पूजा ॥ १४ ॥
॥दोहा॥ गौतम गणधर पनरमें। पदसेवो सुप्रसन्न वलिसऊ जिन गणधर नमो। चवदैसें बाव ल ॥१॥ दानसकल जग वशकरें । दान ह रेंदुरितारि॥ मनवांबित सऊ सुखदियें। दा न धरम हितकारि ॥२॥ ॥रागसोरठ तेरी प्रीति पिलानी हो
पनरम पद गुणगाना होनवि पनरम०॥ नावधरी करिये मनरंगें । परम सुपा दा ना हो नवि पनरम० ॥१॥ पात्रकह्या व्य नाव दुनेदें। दव्यलबन एजानाहो नविप०॥ सर्वोत्तम उत्तमऊवें नाजन । रतनकनक रू पाना होनवि प०॥२॥ मध्यम पात्रकही जे एहवा। ताम् धातु निपजाना हो नवि प० पात्रलोहादिक अपरजातिना। तेहजघन्य क हाना होनवि प० ॥३॥नावपात्रनो लच्छ न कहियें। सुनिये सुगुण सयाना हो नविप०
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॥ विं० स्था० पू० ॥
पंचम चरणधरें वलि वरतें । क्षीणमोह गुण ठाणाहोनवि प० ॥ ४ ॥ रतनपात्र समते स र्वोत्तम । पात्रका जिननाना हो जवि प० प्रवरनाण किरियाधर मुनिवर । लाजालान समाना हो जवि प० ॥ ५ ॥ तेकांचन नाज न समकहिये । नवजल तारन याना हो नवि प० ॥ सुधमन द्वादशव्रत दरवान घर | तार पात्र समजाना हो जवि प० ॥ ६ ॥ शुध स मकित धरश्रेणिक परमुख । रह्या विरति गुणठाणा हो जवि प० ॥ ताम्रपात्र समएहनें कहीयें । जावी गुणमणि खाना हो जवि प० ७ ॥ पर सकलजन मिथ्यादृष्टी । लोहादि पात्र गिनाना हो नवि प० ॥ जिनशासन रंगें रंगाना | वाचंयम सुप्रमाना हो नवि प०८ एहनें दान दियांशिव लहिये । एहसुपात्र प हिचाना होजवि प० ॥ पंचदान दशदान नि करमें । यसुपात्र महिराना होनवि प० ९ ॥ नरवाहन शुनपादानते । नयेजिन ह रष निधाना होजवि प० ॥ सालिन वलि सुर सुखलहियो । सुरनर करय वखाना हो ज विपढ़ ॥ १० ॥
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॥ वि० स्था० पू०॥
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॥काव्य ॥ अनंतविलाण विनासरस्स। दुवाल संगी कमला करस्स ॥ सुलक्ष्वासा जरगोयमस्स । णमो गणाधीसर गोयमस्स ॥ ११ ॥ झा गौतमाय नमः। इति पंचदश पदे सुपात्रदा नाधिकारे गौतम पूजा ॥ १५॥
॥दोहा॥ सोलमपदमें जानिये । वेयावच्च विधान अखिल विमल गुणमणि तणों । सोहै प्रवर निधान ॥१॥ जिन १ सूरी २ पाठक ३ मुनी? बालक ५ वृछ ६ गिलान ॥ तपसी ८ चैत्य९ संघनोंकरो। वेयावच्च प्रधान ॥ २ ॥ ॥रागजंगलावालोम्हारोकबमिलसीमनमेलू॥
--**सेवोजाई । सोलमपद सुखकारी ॥श्री जिनचंद प्रमुख दशपदनों । करो वेयावच नारी से० ॥ १ ॥श्रीतीर्थंकर त्रिनुवन शंक र । श्वर केवली बलिहारीरमनपर्यवधर३ शवधिनाणधर ४ चवदंपूरब श्रुतधारी से० २॥दशपूर्वी १६उत्कृष्ठ चरणधर। लब्धिवंत शणगारी ॥ ए जिन कहिये इनवंदन । न
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॥वि० स्था० पू०॥
(१६)
विजवें जिनअवतारी से० ॥ ३॥ जिनमंदि र बिंबकरयनरावें। पूजकरें मनुहारी ॥ वेया वचकहीये जिनकी । करिये नवजलतारी से० ४॥ याचारिज परमुख नवपदकी । वेयाव च विजितारी ॥ नक्तिपूर्व वस्त्रौषध अनजल देवें गुणविस्तारी से० ॥ ५॥ पंचसय मुनि नीकरीय वेयावच । पूरबनव व्रतचारी ॥न रतबाऊबलि चक्रीपदनुज । बललयो वरीशि वनारी से० ॥ ६ ॥ नंदिषेण मुलसामुनि जि नकी करीय वेयावचसारी ॥ तिनसे स्वर्गलोक में दुयकी। नईय प्रशंसानारी से०॥७॥ इत्या दिक सोलमपद उधरे । बझालनच्य कमजा री॥ तिनसें इन वेयावचपद की । वारीजा उं वारहजारी से०॥ ८॥ नृपजीमूत केतुर सोलमपद । सेवीलये दुखवारी ॥ श्रीजिनह र्षधरी हरिवंदित। शरणागत निसतारी से०
॥काव्य ॥ मणुस सवातिसया सयाणं । सुरा सुराधी सर वंदियाणं ॥ रवींदु बिंबामल सग्गुणाणं । दयाधणाणंहि नमोजिणाणं ॥ १ ॥ हाजिने ज्योनमः ॥ इति षोफापदे वेयावृत्य पूजा ॥
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(१७)
॥ वि० स्था० पू०॥
१२३
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1
॥दोहा॥ सतरम पद में सेविये । सक सुख करण समाधि ॥ जिन सेवन ते नविक नों। गमें व्याधि शुरु आधि ॥१॥ ब्रम्ह नगर पति विचरतां। बरपाथेय समान॥ ए समाधि पद जानिये । सुरमणि कियेहै रांन ॥२॥ ॥ रागकहरवा बाजै तेरा बिबुआ रे वा० ॥
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मेरो रे समाधि चरण चित बसियो । तसु गुण समरण कियो मनु बसियो मे० ॥ सकल जगत जन जिनकं स्तवतु हैं । अनु नव रंगे अतिहि विकसियो मे०॥१॥ द्रव्य तनावत दुबिधि समाधि। सुरतरु मार्नु नित लुवन विलसियो ॥ शसन वसन सलिला दिक नक्ति । करय संघनी कसणा रसियो॥ मे० ॥ २॥ दव्य समाधि प्रथम ये सुनियें। कह्यो जिन लोकालोक दरसियो ॥ सारण वारण चोयण प्रमुखें । पतित सुधिर करै धूम में हरसियो मे० ॥ ३ ॥ नाव समाधि ठितीय ये कहिये। जो करै सो जिन चरण फरसियो ॥ सकल संघ कों जो उपजावत ।
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१२४
॥वि० स्था० पू०॥
(१७)
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दुविध समाधि दुरित तसु नसियो मे० ॥४॥ सुमति पंच त्रिण गुपति धरें नित । सुरगिर वरनों धीरज करसियो ॥ जगत जंतु शघ त पति हरन कुं शुनुन्नव अमृत धार वरसियो मे० ॥५॥ ध्यान अनल करमें धन दाहत जिनसे पर गुण परिणत खिसियो ॥ ये मुनि तरणि तेजसम दीपत । अमृत सुखामृत पान तिरसियो मे० ॥६॥ इन पदमें जैसे मुनि जन के समरन तें। ऊये जग अवतं सियो ॥ ये पद सेवी नृपति पुरंदर नये ज गपति जिन हरख उलसियो मे० ॥७॥
॥ काव्य ॥ सबिंदिया पारविकारदारी।शकारणासेस जणोवगारी॥ महानयातंकगणापहारी।जयो सदा शछ चरित्त धारी ॥८॥ झी श्री नमश्चारित्र धारेज्यः ॥ इति सप्तदश पदे समाधि पूजा १७॥
॥दोहा॥ श्रुत अपूर्व ग्रहिवो सदा। शष्ठादश पद मांहि ॥ इण पद सेवक जन तणा । सऊ संकट जय जाहि ॥१॥ जेती कुमति निशु
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(१८)
वि० स्था० पू० ॥
१२५
रुता । घोर तपें करि होय ॥ तत अनंत गुण शुरुता । सुज्ञानी की जोय ॥२॥ ॥दिलदारयार गबरू राणूं रे हमारा घट में।
जिन चंद नाम तेरा । महाराज ज्ञान तेरा ॥ जीत रे बिकट नव नटनें। ज्ञान धरणा ॥ वितरे जिनेंद्र चरणा । करेस र्व कर्म हरणा जी० ॥१॥ जग में महोप कारी । जय सिन्धु वार तारी॥ कुमतांधता विदारी जी० ॥२॥ सऊनावनों प्रकासी। परम स्वरूप नासी । परमात्म सनवासी ॥ ३॥ बिनु हेतु विश्व बंधू । गुण रत्न राशि सिंधू ॥ समता पियूष अंधू जी०॥४॥ स्या छाद पद गाजे । नयसप्त से विराजे॥ एकां त पहनाजे जी० ॥ ५ ॥ लहि तीर्थपाव तारा। इनसें जिनेंद सारा ॥नविके किया उधारा जी० ॥६॥ पद सेवि ए नरिंदा । नये सागरादि चन्दा ॥ जिन हर्ष केसमंदा। जी०॥७॥
॥काव्य ॥ शुलविया मंझल मंझनस्स। संदेह संदोह
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१२६
॥वि० स्था०पू०॥
(७९)
विखंफणस्स ॥ मुतीउपादान सुकारणस्स । णमोहिनाणस्स जसोधणस्स ॥८॥ नझी श्री ज्ञानाय नमः ॥ इति अष्ठादश पदे अपूर्व श्रुत ग्रहण रूपा ज्ञान पूजा ॥ १८ ॥
॥दोहा॥ पापताप संहरणहरि । चंदनसम शु तसा र ॥ तत्वरमण कारण करण । प्रशारण शर ण उदार ॥१॥ एगनवीस पद में नजो। जिनवर श्रुतनीनक्ति॥इनपद वंदनसलहें। विमलनाण युतमुक्ति ॥ २ ॥ ॥ राग देसी ब्रजवासीकानतें मेरी ॥
॥ गागरढोरीरे एचाल ॥ नविजन चैतनक्ति चरणशरण उरधरिये रे । ए त्रु तनक्ति सुमंगलमाल ॥ विमलकेवल कमलावरमाल भवि० ॥१॥ सकलव्य ग णगुणपर्याय। प्रगटकरण एन त मनभाय भ० शतुलं अनंतकिरण समवाय । धरणतरणगण समकहिवाय न० ॥२॥ एव तकुमति युवति नेसंग । अगणित रमणतणो करेंनंग ज० ॥ श्रथैभाष्यो श्रीजिनराज । सूत्रगणधर मुनि सिरताज न० ॥३॥ एश्रुत सागर अगम * आज पायो रे उछाह जिवडा नाच निनन्द भागे।
।।
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(१९)
वि० स्था० पू०॥
१२७
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अपार । अनंतशमल गुणरयणाधार न० ॥ जवनय जलनिधि तरण जिहाज । निसुणमग ननई सकलसमाज न० ॥ ४ ॥ लवकोटील गें तपकरिजीव । शज्ञानीकरें जितनीसदीव न०॥ कर्मनिरजरा तितनीहोय । ज्ञानीके इकङ्कणमेंजोय न० ॥५॥ एकसहस कोमि बसयकोमि । चतुरतीस कोकि अक्षरजोकि शसठिलापरु सातहजार । अफसय इसी य प्रमित चित धार न०॥६॥ इतने वर नसें इकपदहोय । एकश्लोकके गणितएजो य न० ॥ इकपदको परिमाण एजान । इण पद से आगम परिमाण न०॥ ७ ॥ तीन कोकि शुस अफसठि लाख । सहस बैयालि स एपद नाख न०॥ इतनेपदसें अंगइग्यार केरीगणना नविचितधार न० ॥८॥ बारम दृष्ठि वादकोमान । असंख्यातपदको पहिचा न न०॥ इनको चवदपूरबइकदेश । एनों पा रलह्योहें गणेश ज० ॥ ९॥ एहदुवालस अंग उदार। एहनीजइयें नितबलिहार ज० ॥ ए हनी च्यनाव बजानक्ति । करियेधरिये जि नपदयुक्ति न० ॥१०॥ रत्नचू नृपसुखमा
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१२८
॥ वि० स्था०पू०॥
(२०)
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धार । जिनश्रुत नक्तिकरी हितकार न०॥ नये जिनहरष परम पददाय । जिनके सुरन रपति गुनगाय न० ॥११॥
॥काव्य ॥ शन्नाणवल्ली वणवारणस्स । सुबोहिबीज कुरकारणस्स ॥णंतसंसुछ गणालयस्स। ण मोदया मंदर सच्छयस्स ॥ १२ ॥ झी श्री श्रुताय नमः १९ इति एकोनविंशतिपदे श्रु तपूजा ॥ १९॥
॥दोहा॥ प्रावचनी १ अरुधमकथी। वाद ३ नि मत्ती १ जाण ॥ तपसी ५ विदा ६ सिझ७ पुन । कवी ८ एहमुनिनाण ॥ १ ॥ लावती र्थ के प्रनुकह्या । प्रानाविक एअष्ट ॥ तीर्थप्र जावन जेकरें । तेफललहें विशिष्ट ॥२॥
॥राग धन्यासी ॥ . तीरथ परत्नावन जयकारा । जिनसे नव सागर जल तरिये ॥ ते तीरथ गुण धारा । ती० ॥१॥ जिनके गणधर तीरथकहिये। बलि सऊ संघ सुखकारा ॥ एह महा तीरथ पहिचानो । बंदिलहो नवपारा ती० ॥२॥
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(२०)
॥ वि० स्था० पू०॥
१२९
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अफसठि लौकिक तीरथ तजिकरि । जलो कोत्तरसारा ॥ व्यत्नाव दोयनेद लोकोतर। थिरजंगम नयहारा ती० ॥ ३॥ पुंगरीक प रमुख पंचतीरथ । चैत्यपंच परकारा॥ एवर तीरथ थावरकहिये। दीठांदुरित विदारा ती० ४ ॥ श्रीसीमंधर प्रमुख वीसजिन। विहरमा न नवतारा ॥ दोयकोमि केवलि विचरंता। जंगमतीर्थ उदारा ती० ॥५॥ संघचतुर वि ध जंगमतीरथ । जिनशासन उजियारा ॥ वरश्चनंत गुणजूषण जूषित । जिनकुं नमत जिनसारा ती० ॥६॥ एतीरथ परनावन करिये । शुन्न नाबन शधारा ॥ शिवकज जलविंशति तमपदकी। जाउं प्रतिदिन बलि हारा ती० ॥ ७ ॥ एतीरथ परनावन करतो मेरुप्रन विकारा॥ पदजिनहरषलहीने तरि यो। नवअंनोधि अपारा ती० ॥८॥
॥काव्य ॥ महामहानंदपदप्रदाय । जिनश्रुतज्ञानपयो नदाय ॥ जगत्रया धीश्वरवंदिताय । नमोस्तु तीर्थाय सुनंददाय ॥१॥हात्रीतीर्थायनमः इतिविंशतितमपदेतीर्थप्रनावनापूजा॥ २०
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. १३०
॥ विं० स्था० पू० ॥
(२०)
॥ सुणि चतुरसुजाण परनारीसुं प्रीति ॥ ॥ कबजंन कीजिये एचालमे ॥ चितहरषधरी । नुनवरंगें वीसपरमपद वंदिये ॥ शिव रमणिबरी । केवल सखीयस हायकरी चिरनंदिये ॥ ० ॥ एवीसचरण छवशरणचारणा । चिरसंचित दुरित तिमिरह रणा । नितचित ए पदसमरण धरणा चि०१ एपदसमरण जिन चितधरिया । तरिया तर सें तरें नवदरिया । सदनंत नविकसऊ नय हरिया चि० ॥ २ ॥ एपद गुणसागर मनुहा रा । वरणनतरणीये बहारा | इंद्रादिकसु रनर नलह्योपारा चि० ॥ ३ ॥ एपदच्छतिशय महिमाधारा । अमृत पद कमला जरतारा ॥ जिनचंदानंद घन पढ़कारा चि० ॥ ४ ॥ जि नहरष सुरिंदके शिव करणा । चंद्रामल गुण विंशतिचरणा । ऊइज्यो मनुयरज ए अवधर णा ॥ ५ ॥ इति श्रीसमस्तविंशतिपद स्तुतिः ॥
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॥ कलना ॥
ए बीसथानक भुवनबंदन घ निकंदन जानिये विबुधेंद्रचंद्र नरेंद्र बंदित पद जिनें द बखानिये ॥ ए बीसपद जवजलधि तारन
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(२०)
॥ वि० स्था० पू० ॥
१३१
तरन गुन पहिचानिये । इम जानि नविजन कुशलकारन बीसपद उर आनिये ॥ १ ॥इ ह वरस चंददिनेंद्र हरिमुख बिधिनयन बि तिमिरधरू । तिह मासन्नादव धवलदल ति थि पंचमी रविवासरू ॥ बंगालजनपद जि हां विराजत शिखर तीरथ गिरिवरू। सजा नगरशोनि अजीम गंजपुर द्वितीय बालूचर पुरू ॥ २॥ खरतरगणेार विजितसुरगुरु वि मल गुणगरिमाधरा । गुणनवन नविजन न लिन कानन नितविकासन दिनकरा ॥ मुनि चंद श्रीजिनलानसूरिंद सुगुरु महियल युग वरा । सकलें बंदा जिनेशासनमंझना नि तहितधरा ॥ ३ ॥ तसुपहउजाल श्चलगन वर उदयगिरि बासेरकरा ॥ योगींद वंद न रेंद्र बंदितचरणपंकज गणधरा ॥ शचार पं चबतीसगुणधर सकल भागमसागरा । युग प्रवर श्रीजिनचंदसूरी गुरु सकलसूरीसरा ॥ ४ ॥ तसु चरण कमलज युगलसेवन अहनि शि मधुकरताधरी । पुन सुगुरुपद शरविंद युग नी कृपा नित चित शादरी ॥ गणधार श्री जिनहरषसूरी हरषधर घनअघहरी या
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१३२
॥ विस्था० प्रा० ॥ (२०)
बीसपदकी बिबिध पूजन विधितणीं रचनां करी ॥ ५ ॥ इतिश्री बिंशतिस्थानकस्तुति ॥ जियाचतुरसुजाणनवपदके गुणगायरे ॥ ॥ इस चाल में छारती ॥
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पिया विंशतिधान मंगलयारति गायरे सुमतिप्रिया कहैं चेतनपतिकों निसुण बचन मननायरे पि० ॥ १ ॥ यदि निजगुण परि णति तुमचहिये । तिणको एह उपायरे पि०
रिहंत सिद्ध आचारज पाठक साधु सकल समु दायरे पि० ॥ २ ॥ इत्यादिक विंशति पद समरण जवनय हरण विधायिरे । एह आरती तिवारती । अनुपमसुर सुखदाय रे पि० ॥ ३ ॥ जैसेंनगतें करय प्रारती । स कलसुरा सुररायरे ॥ तैसेंजवितुमे करोारती एपदगुण चितलायरे पि० ॥ ४ ॥ पंचप्रदी पसें करयचारती । जेनितचित उलसायरे ॥ तेलही पंच चिदानंद घनता । अचलअमर प दपायरे पि० ॥ ५ ॥ पंच प्रदीप खंति ज्योतैं । दुर्मति तिमिर बिलायरे ॥ एहछा रती तुरत तारती । नवजल निपतित धा यरे पि० ॥ ६ ॥ पदजिन हरष तणी एकर
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(9)
॥चौवीसजिनपूजा ॥
१३३
णी । मनहरणी कहिवायरे ॥ चंदविमलशि वसिधिनिधि धरणी। वरणीकिण विधजाय रे पि० ॥७॥ इतिविंशति स्थानकारात्रिका ॥॥ अथ चौवीसजिन पूजा ॥
॥दोहा॥ प्रणमी श्रीपारस विमल । चरण कमल सुखदाय ॥ शषिमंगल पूजन रचुं । बरबिध जूचितलाय॥१॥नंदीश्वर मंदरगिरें। शाश्व त जिनमहाराज ॥ घरचें अफबिध पूजसुं॥ जैसे सऊसुरराज ॥ २ ॥ तिम चित जिनपति गुणधरी । श्रावक समकितधार ॥ बिरचैं जि न चौवीसकी। अफबिध पूज उदार ॥३॥
॥ गाथा ॥ सलिल सुचंदन २कुसुमनर३। दीवगकरणंच ४५वदाणंच५॥बर अरकत६ नेविज७। सुन्न फल पूजाय पठविहा ॥१॥ शमविध पूजा करणं सुणिये सूत्रमकार ॥ जे नविबिरचैं प्र नुतणी । ते पावें नवपार ॥२॥
॥दोहा॥ प्रथम जिनेश्वर तिम प्रथम । योगीश्वर नरराय ॥ प्रथम नये युगादिमें। सकलजीव
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१३४
॥चौ० जि० पू०॥
(1)
mins
सुखदाय ॥१॥
॥ रागदेसाख पूर्वमुखशावनं एचाल ॥ विमलगिरि उदयगिरिराज सिखरोपरे । तरुणतसतेज दीपतदिणंदा ॥ युगलधुमवार करधरम उदयोतकिय । विमलइक्ष्वाकु कुल जलधिचंदा ॥ १ ॥ मातमरुदेवि वरउदरद रि हरिवरा । सकलनमकटमणि नानिनंदा अखिलजगनायका । मुगतिसुखदायका विम लवरनाणगुण मणिसमंदा ॥ २ ॥ वृषनलांब नधरा । सकलनवनयहरा ॥ श्मरवरगीतगु णकुशलकंदा । गहिर संसारसागरतरणसमध रा। नमतशिवचंदप्रनुचरणवंदा ॥३॥
काध्य ॥ सलिलचंदनपुष्पइफल ४व्रजै। सुविम लाक्त५दीप६ सुधूपकै७ विविधनव्यमधुप्रव रान्नकै८ । जिनममीनिरहंवसुनिर्यजे॥१॥i झीश्रीपरमात्मनेशनंतानंतज्ञानशक्तये॥जन्म जरामृत्युनिवारणाय ॥ श्रीमदृषनजिनेंदाय॥ जलं चंदनं पूष्पं धूपं दीपंशकतं नैवेदयं फलं यजामहेस्वाहा ॥ इतिश्रीरिषनजिनपूजा ॥१॥
॥दोहा॥
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६२)
॥ चौ० जि० पू० ॥
१३५
. जयजिणंददिणइंदसम । लखिन्नविकजवि कसात ॥ परमानंदसुकंदजल । विजयामातसु जात ॥१॥ ॥रागशासावरी हो दिलबागमें॥
॥ प्यारे जिनजी ॥ एचाल एक शज अवधारिये। शजितजिन एक अजितजिनेसर जगशलवेसर । कुरम निजर निहारिये १० ॥ १ ॥ चरमसिंधु नवनय ज लनिपतित चरणपतित मोहे तारिये अ०॥ २ ॥ परमानंदघन शिव बनितानन । कजम धुपान सुकारिये २० ॥ ३॥चिर संचित घ नदुरित तिमिर हर । तुम जिननये तिमिरा रिये १० ॥ ४ ॥ कहैं शिवचंद अजित प्रन्नु मेरे एह अरज न बिशारिये २०॥५॥ झा परमप०अनं०जन्म० श्रीम० ज० चं०स्वाहा ॥ इति अजितजिन पूजा ॥२॥
॥दोहा॥ जय जितारि संनव सदा । श्रीसंनवजिन राज ॥ सकललोक जिण जीतियो। जीतोमोह समाज ॥१॥जैनाकरगुणपूर । सेवो तेजसनूर नक्तिनवपूरण उरधार। मुक्तिपुरीपथसार ॥
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१३६
॥चौ० जि० पू० ॥
(३)
॥रागवेलाउलसबाबागंधवटी०सारए०॥
अपरमित बर शिखरसागरधार संनवका रए । जिनरायसंनव पाय बंदो लहो नवजल पारए॥ वल जलधिजात सुजातकुंजरकुंननंज न जानिये । तसुजनकनाम समाननामा । न ये जिन उर शानिये॥१॥ जसु चरण पंकज मधुर मधुरस पान लयलागीरह्या । मिलकर सुरासुर खचरव्यं तर नमर निलचितजमह्या॥ जसुचरण कमलेग्लवगलांबनकनक सुवरणका यए। सजनुवननायक सुमतिदायक । जननि सेना जायए ॥ २ ॥ जसुमधुरबाणी जगबखा णी। तीस सरगुण धारिणी ॥ संसार सागर नयनराकर । पतित पारउतारिणी ॥ स्याद्वाद पक्ष कुठारधारा। कुमतिमद तरुदारिणी ॥ प्र न बाणि नित शिवचंदगणिके । जवो मंगल कारिणी ॥३॥ नानी परम० शनंज्ञान श्रीमत्संनव जिने ॥ जलं०स्वाहा ॥ इतितती यसंनव पूजा ॥३॥
॥दोहा॥ श्रीचतुर्थ जिनवर सदा । पूजो नविचित लाय ॥ नगति युवति संकटहरण । करण ति
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(१)
। चौ० जि० पू० ॥
१३५
।
न सुध थाय ॥ १॥
॥ कुंदकिरणशशिउजलोरे एचाल॥ संवरनंदन जिनबरूरे बाला। शनिनंदन हि त कामीरे ॥ जगदनिनंदन जयकरूरे बा०॥ दुरित निकंदन स्वामीरे ॥ १॥ लोका लोक प्रकासता बा०॥ करता विचल धामीरे य व्याबाध अरूपितारे वा० ॥ विमल चिदानंद रामी रे ॥२॥ वंबित पूरण सुरमणी रे बा० एप्रनु अंतरजामी रे। जैसे प्रनुमहाराजकुं रे बा। सिवचंद नमेंसिरनामी रे॥३॥ नही पर०अनं० अभिनंदनजिनेंदाय जलं० स्वाहा
॥दोहा॥ पंचमजिननायकनमूं । पंचम गतिदातार पंचनाणबरबिमलकज । बनबिकसनदिनकार
॥ कहरवा बंसीतेरी बैरणबाजै एचाल ॥ __ सुधनावचितथिरधरके रे। पूजोसुमतिजि णंद ॥ जिननक्ति करण रसीला । लहें परम शानंद सु० ॥ १ ॥ जिनराज सुमति समंदा करे कुमतिनिकंद ॥ प्रजुनाचरण अरविंदा । बंदै असुर सूरिंद सु० ॥ २॥ कनकान तनु दुतिसोहे। प्रनुसुमंगालानंद ॥ करुणोपशम
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१३८
॥ चौ० जि० पू० ॥
(६)
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रसन्नरिया । बंदै नित सिवचंद सु०॥३॥ नही परम०अनं० ज्ञा० ज० श्रीमत् सुमति जिनेंद्राय जलं०नैवेव्यजामहेस्वाहा ॥ ५ ॥
॥दोहा॥ हिवषष्ठमजिनवरतणी । पूजनकरिऊं उ दार ॥ नविचित नक्ति धरीकरी । सुखसंप तिकरतार ॥१॥ ॥ रागसारंग वावनचंदनघसिकुमकुमा॥
हांहोरेबाला पदमप्रनू मुखचंद्धमा । नित सकललोक सुखदायए। हांहोरे बाला ॥ ह रिसुरशसुरचकोरफा । नित निरखरह्या लल चायए। हांहोरेबाला । जिनमुख बचनअम् ततणो । जे श्रवणकरें नविपानए । हांहोरे बाला ॥ ते शजरामरता लहै । हरिगण करें जसुगुणगान ए। हांहो० धर नृप कुलनन्नदि
प्रन्नु मातसुसीमा नंदए हां० ॥प्र नु दरसणते प्रति दिने । जयज्यो शिवचं शनंद ए ॥३॥ नशा परम०अनं०ज्ञा०ज० श्रीमत्यदमप्रन जिने० य जलं० नैवे० यजा महेस्वाहा ॥ इति बही पूजा संपूर्ण ॥ ६ ॥
॥दोहा॥
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(७)
॥ चौ० जि० पू० ॥
१३९
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__ श्रीसुपार्श्व सुरतससमो । कामित पूरण काज ॥ नो नवियण पूजो सदा । बसुविध पूजसमाज ॥१॥ ॥ राग तेरीपूजावणीहें रसमें एचाल ॥
मेरी लगी लगन जिनवरसे मे० ॥ जैसे चंदचकोर नमरकी। केतकिकमलमधुरसें मे० एहसुपारस नए प्रनुपारस । गुणगणसमरण फरसे मे० । चेतन लोहपणो परिहरके । ऊ यलैकंचन सरिसे मे० ॥ २ ॥ एप्रनु करुणा करकुं धरिले । नर जिमकमल नमरसे मे०॥ जेजवि जिनपदलगनधरे तसु ॥ नहिलये म रन शसुरसें ॥३॥ मात टधवी तनुजात र नुभुति । समगुलकंचनसरिसें है ० ॥ हैं सिव चंद चित नितमेरो रहो प्रजुपदलय नरसे मे० नूझा परम० शनं० ज० सुपार्श्वजिने जलं० नैवे० यजामहेस्वाहा ॥ इति सातमीपूजा ॥७
॥दोहा॥ अष्ठमजिनपदपूजिये। बिबिधकष्टहरतार अष्ठसिछनवनिध लहै । जिनपूजाकरतार ॥ ॥रागमेघबरसेनरीपुष्पबाइलकरीएचाल॥ परमपदपूर्वगिरिराज परिउदयलहि। बि
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१४०
| चौ० जि० पू० ॥
जितपरचंद्र दिनकरानंता ॥ चंदप्रभुचंद्रिका बिमलकेवलकला | कलित शोजितसदाजिन महंता प० ॥ १ ॥ कुमतिमत तिमिरजरहरि यपुननिवि । कुमुद सुखकरिय गुणरयणद रिया ॥ गहिरनवसिंधु तारणतरणतरणिगुण धारि नवितारि जिनराज तरिया प० ॥ २॥ राखियेच्याज मोहेलाजजिनराजप्रनुकरणसुख जिनचरण सरणपरिया । परम शिवचंद्र पद पद्ममकरंदरस ॥ पाननितकरण ततपरनरी या प० ॥ ३ ॥ ] परम० नं० श्रीम चंद प्रनजिनें० जलं० नैवे० यजामहेस्वाहा इति टम जिनपूजा ॥ ८ ॥
॥ दोहा ॥ सुबिध२ समरणथकी । कामितफलप्रकटा य ॥ तीगहन संसारवन । बलप्रटनमिट
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(९)
जाय ॥ १ ॥
॥ राग चंपक केतकी मालती एचाल ॥ सुबिध चरण कजबंदिये अइयो बं० । नंदियेतिचिरकाल शिवतरवारनिकंदिये । बिधनकंद ततकाल इ० ॥ १ ॥ प्राजजनमस फलोजयो प्र० ए दीठोप्रजुदीदार । तनमनदुग
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(१०)
॥ चौ० जि० पू० ॥
बिकसितनये ॥ जिमकजलखिदिनकार ॥ २ ॥ मृतजलध रबरसियो प्र० ब० । नविउरखे मकार | दर्शनसुरतरु ऊगियो प्र०ए शिव फलनोंदातार ॥ ३ ॥ तुझी पर० नं०ज० श्रीम त्सुबिधिजिनेंद्राय ज० नैवे० यजामहेस्वाहा ९ ॥ इति सुविविजिन पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
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१४१
मुऊतन मन शीतलकरो । श्री शीतलजिन राय ॥ तुमसमरण जलधारसे । अंतरतपतपु
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लाय ॥ १ ॥
॥ दादाकुशल सूरिंदएचालमें ॥ घाटो ॥ मेरे दीनदयाल | तुमनयेसकललोक प्रति पाल मे० ॥ सुणशीतलजिनवरमहाराज । च रणसरणधस्यो प्रजुनोंच्छाज ॥ ननमूंसकारी देव | करिस्यूंचरणकमलनीसेव मे० ॥ १ ॥ जैसे सुरमणिकरतलपाय | कुणले का चसकलउलसा य ॥ तुमसमसुरवर प्रवरनकोय । हेर २ जग निरख्योजोय मे० ॥ २ ॥ प्रनुदरसण जलध रघनघोर । लखीयनिरतकरें नविजनमोर ॥ पदशिवचंद बिमलनरतार । शिवबनिता घतिसुखकार मे० ॥ ३ ॥ परम० नं०
*मरज एक सरधरिये सार ॥
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१४२
॥चौ० जि० पू०॥
(११)
मच्छीतलजिने० ज० नै० य०स्वाहा॥१०॥
॥दोहा॥ श्रीश्रेयांसजिनेंदपद । नददुति सलिलाधा र ॥ जेनेत्रेमजनकरें। तेसुचिइऊंबिधुतार॥ ॥ राग सोहमसुरपतिवृषन रूपकरएचाल ॥ __ श्रीश्रेयांसजिनेसरसाहिब । इंघियसदन सन्नंदहे । जसुबसुबिधपूजनसेअरचो ॥ उरध रिपरमानंद हे शी० ॥ १ ॥ ए समकित धर श्रावककरणी । हरणी नवमनरंगहे ॥ बिजय देवजिनप्रतिमापूजी । जीवानिगमउवंगहे ॥ शी० ॥ २ ॥ सूरियानजिनपूजनकरियो।रा यपसेण उवंगहे। ज्ञाताअंगें पदिशाविका ॥ पूज्याजिनचितचंगहै । जेनिन्हवकुमतीजिन पूजन॥उत्यापेंतेहअनंतहे काललगेलमसीनव बनमें ॥ मंदम्तीनयनांतहे ॥ २॥ बिश्नुमा ततनुजात बिस्नुमप। बिमलकुलांबरहंसहे ॥ सकलपुरंदर,मरअसुरगण । शिरु वरिप्रनुअ वतंसहे॥इणसुरवरनीपरनविशावकजेपूजैजि नउबरंगहे ॥ ते शिवचंद परमपदलहिस्कॅनि चयकरि नवनंगहे श्री० ॥३॥ नहीपर० अनं०ज० श्रेयांस जिनें जलं० नैवे० यजा
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(१३)
॥ चौ० जि० पू० ॥
महेस्वाहा ॥ इति एकादशमजिन पूजा ॥ ११ ॥ दोहा ॥ हिवबार मजिनवरतणी । पूजनकरियेसार जावनक्तियुत जविसदा । दूव्यनक्ति चितधार ॥ राग सबञ्चरतिमुदारधूपं एचाल ॥ सकल जगजनकरतबंदन । जयानंदन स्वा मिरे ज० । दुरितताप निकंदचंदन । परम शिवपदगामि रे स० ॥ १ ॥ नृपतिवर बसु पूज्यनृपकुल । विपिन नंदनजातरे देवा वि० सु हरिचंदन नंदनंदन | नंदमदकियधातरे ॥ स० ॥ २ ॥ बसुपूज्यनंद जिनेंद्रपूजो । सक लजिन महाराजरे ॥ करतनुति शिवचंदप्रभु ए । निखिल सुरशिरताज रे दे० ॥ ३ ॥ नी पर० नं० ज० वासुपूज्यजिनें० ज० नैवे० यजामहे स्वाहा ॥ इति बारमजिनपूजा ॥ १२ ॥ दोहा ॥
बिमल बिमलजिन करमुळे । मलिनकरम करि दूर ॥ तेरमप्रभु रमिये सदा । मुऊ उर मकि गुणपूर ॥ १ ॥
॥ सिधचक्र पदबंदोरे नविका एचाल ॥ विमलचरणकजबंदोरे । सूरीजनवि० बंदी
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१४४
॥चौ० जि० पू० ॥
(११)
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नेशानंदोरे॥जसुगणधरमुनिवरगण मधुकर। सेवतपदशरविंदोरे स्यामाउदरसुगति मुगता फलकृतवरमानपनंदोरे सू०॥१॥ सऊजगमं मलबिमलकरणकुं निजसासन नन्नबंदो। उदय नयोनविकुमुदबिकसवा । बरगुणरयणसमंदो रे ॥ २ ॥ यदिनवबंदिहरण नविचाहो । प्रन्नु बंदीचिरनंदो । बिमल चिदानंद घन मयरू पी। नितवंदित शिवचंदो रे वि०॥३॥झी परम०५०ज०श्रीबिमलजिने जलं० स्वा०
॥दोहा॥ हिवचवदमजिनपूजतां । हरिये बिषयवि कार ॥ नो नवियण सुणिये सदा । एप्रनुश रणाधार ॥ १ ॥
पंचवरणीअंगीरची एचाल ॥ पूजकरणीप्रनुनीदुरितनिवारी। अनंततर णिहिमकिरणतरुणतर। किरण निकरजीताहै नारी। अनंतनाण वरदरशण तेजे। प्रनुसुय सोदर स्वतारी पू० ॥ १ ॥ लोकालोक छ नंतव्यद्गुण। पर्ययप्रगट करणहारि ॥ तातै शन्वययुतजिन धरियो । अनंतनामथतिम नुहारी पू० ॥२॥ सिहसेननृपनन्दन बंदन
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(१५)
॥ चौ० जि० पू०॥
१४५
करतइंदचंद्रसुखकारी । सादिशनंत नंगथि तिधरियो॥ पदशिवचंद बिजयधारी पू० ॥ नही परम०अनं० ज० श्रीम दनंतजिनेंद्राय ज०नैवे०स्वाहा इतिथनंतजिनपूजा ॥ १४ ॥
. दोहा॥ नानुनूपकुलनानुकर । पनरमजिनसुखका र ॥ सोनित सऊजग विपिन जन । हरख फलदजलधार ॥ १ ॥ ॥ धीरसमीरेजमनातीरेवसतिबनेवनमाली॥
धरमजिनेसर धरमधुरंधर। जगवंधव जग बालामें वारीजाउं ॥ सुव्रतानंदनपापनिकंदन प्रनुनएदीनदयालामें वारीजाउं ध०। प्रनुधी रजगुणनिरखअमरगिरि । लजिलीनो अचला धारा में ॥ १ ॥ जिनगंजीरताचरमसिंधुलखि कियलोकांत बिहारामें ध० ॥ एजिनचंदुचर णअरचनतें । लहिजिनपतिशवतारामें ॥ २ करमवैरिदलकरि नविलहस्यो पदशिवचंदउ दारा में नही परम०अनं० ज०श्रीधर्मजिनेंदा य ज०स्वाहा ॥ १५ ॥ इति धर्मजिनपूजा ॥
॥दोहा॥ अचिराउयरेश्वतरी । शांतिकरीसुखका
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१४६
॥चौ० जि० पू०॥
(१६)
र ॥ मारि विकार मिटायकरि । नामधस्यो शांतिसार ॥१॥ ॥ रागनाव धरिधन्य दिनाजसफलोगिणुं॥ __ शांतिजिनचंद्ध निजचरणकजशरणगत त रणिगुणधारि नववारितारी कुमतिजनबिपि नजनिकुमतघन व्रततितत निशितधारतरबा रबारी शांति०॥ एकनविपदउन्नयचक्रधरती र्थकरधारियावारियाविघनसारा सकलमदमा रियाविमल गुणधारिया सारियानक्तबांबित अपारा शां० हरिणलांछनधराकरणसुवरणक रासुरवराहितधरागतबिकारामोहनटधरणिध रंगणहरणबज्रधरकुमुद शिवचंदपदरजनिका राशां॥३॥ झीपरम० अ० ज० श्रीशांति जिनेंद्राय जलं०० यजामहेस्वाहा १६ ॥
॥दोहा॥ सतरम जिनवर दीवसम । मफिनवसाग रजाण ॥ नक्तियुक्ति नित पूजिये । लहिये शमलविनाण ॥१॥ ॥ राग अरिहंतपद नितध्याइये एचाल ॥
कुंथुजिणंद गुणगाइये । मनबंबितफलपा इये रे ॥ प्रनु समरण लयल्याइये । नविनव
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१७)
॥ चौ० जि० पू०॥
११५
तजिशिवजाइये रे कुं० ॥ १ ॥ लवजलगतनि जातमा । बारी करूणाउरधरिताइये रे चर णकरणउपयोगिता । ग्रहणकरणकुंध्याइये रे कुं० ॥२॥ एप्रन्नुदरणजीवनें । अनुन्नवर सनोदाई रे ॥ वरशिवचंद बिमलबधे । दिन दिनसोलसवाई रे कुं० ॥३॥ ही परम०२० श्रीकुंथुजिने जलं० नै० स्वाहा ॥१७॥ इति
॥दोहा॥ जिनअठारमोध्याइये । नवियण चित्तम फार ॥ करण तीनइक करिमुदा । प्रतिदिन जयजयकार ॥१॥
॥राग संगलागोही यावे० एचाल ॥. निजबिमल नक्तिसें शरजिन सुं नितरमि ये रे ॥ जिनगुण निजगुणतुल्यकरणकुं । चंच लचितहयदमिये रे नि० ॥१॥ जतियुकाले संगतिउरधरिके । कुमतिनारसंगगमिय रे ॥ अनुनब अमृतपान करणसे । विषयविकृति विषयमिये रे नि०॥२॥ जिनवरसंगरमण दव शनिलें। पंकसघनबन धमिये रे ॥ कहें शिवचंद जिनेंदु रमणसे । नवबनमें नहिन मिये रे नि०॥३॥ झी परम० अ० श्रीम
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१४८
॥चौ० जि० पू० ॥
(१९)
AR
त्यरजिने जलं० यजामहेस्वाहा ॥ १८॥
॥दोहा॥ उगणीसमजिन चरणकज । जमरहोयलय लाय ॥ सेवे तसुनवनमरता। अगणिततुरत बिलाय ॥ १॥ __ मल्लिजिणंदउपगारी रे वाला हांहोरेवाला बारीजाउं वारहजारी रे वाला म० ॥ कुंलन रेसर गगनांगण में। सहसकिरण शवतारी रेवा०॥म०॥१॥ पूरबनव खटमित्र नरिंद पति । बोधसिंधुनवतारी ॥ वेदत्रई विरही तनुधास्यो । सकलसंघसुखकारी रेबा० म०॥ २॥ सकलकुशलहरिचंदनतसवर। नंदनबन अनुकारी ॥ संघचतुर्बिधनूरिखचरगण प्रण तचंदमनुहारी रे वा०म० ॥३॥ नूझा पर म० शनं० श्रीमल्लिजिनेंदाय जलं० यजाम हेस्वाहा ॥ इति मल्लिजिनपूजा ॥ १९॥
॥दोहा॥ पदनोदरवरपननंद गतपरपन्न समान॥ विज्ञातितमप्रनुपूजिये । केवललच्छिनिधान ॥
॥ नविनक्तिधरीनवपदनव० एचाल ॥ सुणसुव्रतजिनेऽ सुनिजरधर मुझपर वर
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(२०)
॥चौ० जि० पू०॥
१४९
दरसणदीजिये। प्रजुदरसप्रीतनिरूपाधिकता करियेलहिये शिवसाधकता। तबतुरतमिटेंशि वबाधकता सुण० ॥१॥ अमृत मेंसाध्यपणों बिलसें प्रनुदरसणसाधनताउलसें तद मुझने साधकतामिलसें सु०॥२॥निनाधिकरणता यदिबिघटै। एकाधिकरणतायदिसुघटें॥ तद मुफशिवसाधकताप्रगटें सु०॥ ३ ॥ एकाधि करणता मुफकरिये । निन्नाधिकरणतापरिह रिये ॥ शिवचंदबिमलपदतदबरिये । सु० ॥ १ ॥ नझी परम० शनं० मुनिसुव्रत जिने जलं० चंद० यजामहेस्वाहा ॥ २० ॥
॥दोहा॥ अंतरबैरीमारिया। तबलहियोनमिनाम॥ नवियणएप्रनुपूजसें। सरिये बंबितकाम ॥१॥ श्रीनमिजिनवरचरणकमलमें। नयननमरयुग धरिये रे ॥ तिणकियगुण मकरंदपानसे। चे तनमदमत करिये रे श्री० ॥ १ ॥ एहचरण कजशहनिशिविकसै । परकजनिशिकुमलावें रे ॥ ए न बलेबलि तुहिन शनलसै अपरक मल बलजावे रे श्री० ॥२॥ एपदकजगन मधुरस पीवत । जीव शमरता पावें रे वा०
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१५०
चौ. जि० पू०॥
(२२)
शवर कमल रसलोनी मधुकर ॥ कजगतग लगलजावेरे वा० । परकज निजगुण लच्छि पात्र है ॥ पदकज संपद देवे रे । तातें पद शिवचंद जिणंद के ॥ अहनिशि सुरनर सेवे रे श्री० ॥ ३ ॥ झी परम० अनं० नमिजि में० जलं० नैवे० यजामहे स्वाहा ॥ २१ ॥
॥दोहा॥ घावीसमजिन जगगुरू । व्रम्हचारि बिख्यात इणबंदन चंदन रसैं । पापताप मिटजात १ ॥ राग गाजलूहै जिनमन रंगसुं०एचाल॥
नेमि जिणंद उर धारी रे वाला। विषय कषाय निबारिये रे वाला। बारिये रे हारे याला ॥ ए जिननें न बिसारिये रे ॥१॥ अलधर जिम प्रन्नु गरजता रे बाला। देशना शमृत बरसता रे बाला दे० बरसता हां रे० तविक मोर सुण उलसता रे बाला ॥२॥ समवसरण गिरि पर रह्यारे बाला । नामंझ लचपलावह्यारेवा० ॥ सुरनर चातकऊमद्या रे॥३॥ बोधबीज उपजावियो रे घाला। विउरक्षेत्र बधावियो रे बालाज०बनवि
फलपाबियो रे॥४॥र्नीपरम०
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९२३)
॥चौ० जि० पू० ॥
१५१
-
श्रीमन्लेमिजिनेंद्रायजलं नैवे० स्वाहा॥२२॥
॥दोहा॥ अश्वसेननंदनसदा । घामोदरखनिहीर ॥ लोकशिखरसोनेप्रनू। विजितकरमबमबीर १ ॥ बाजै तेरा बिबुबा रे या एचाल ॥
पासजिणंदा प्रनुमेरेमनबसिया मे०॥शि वकमलानन कमलविमलकल । तरमकरंदपा नशतिहिसरसिया पा०॥१॥बामानंदनमोह निमूरत । सकल लोक जनमन किय बसिया पा०॥ परमजोति मुखचंद विलोकित । सु र नर किंनर चकोर हरसिया ॥ २ ॥ अंजन गिरि तनुदुति जिनजलधर देशन अमृतधार बरसिया पा० ॥ २ ॥ पियकरि नवि चिर काल तरसिया । मुगति युवति तनु तुरत फरसिया पा० ॥ २ ॥ कुमुद सुपद शिव चंद जिणंद नी ॥ बारी जाउं मन मेरो छ तिहिउलसिया पा०॥३॥ झी परम०१० ज० श्रीमत्पार्श्वनाथाय ज० यजामहे स्वाहा
॥दोहा॥ बरइखाकुकुलकेतुसम। त्रिसलोदरश्शवतार एप्रनुनीनितकीजिये । बिबिधनक्ति सुखकार
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१५२
॥चौं० जि० पू०॥
(२४)
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॥ रागतेजतरणिमुखराजेंप्रनूजीको एचाल ॥
चरमबीरजिनराया। हां रेजिनराया मेरे प्रनुचरमबीर जिन० सिझा रथकुलमंदिरधज सम । त्रिसलाजननी जाया । निरूपम सुंदर प्रनुदरणतें । सकललोकसुखपाया मे०॥ १॥ बामचरणअंगुष्टफरसतें। सुरगिरिवर कंपाया इंदनूतिगणधर मुनिजन । सुरपति बंदितपा मुख या मे० ॥ २ ॥ बरतमानसाशनसुखदाया॥ चिदानंदघनकाया। चंकिरण गणबिमल स चिरकर । शिवचंदगणि गुणगाया हां० ॥३॥ बरसनंद मुनिनाग धरणमित। हितियाश्विन मनन्नाया। धवलपद पंचमितिथिशनियुत॥ पुरजयनगरसुहाया मे०॥ ४ ॥ श्रीजिनहर्ष सूरिसूरीश्वर । बरखरतरगडराया। केमकि निशाषागणिनूषण रूपचंदनवझाया मे० ५ महापूर्बजसु नूरिनरेस्वर । बरखरतर गबरा या। तासुशीसबाचक पुन्यशीलगणि तसुशी प्यनामधराया मे०॥६॥ समयसुंदरअनुग्रहि शषिमंझल । जिनकीसोजसवाया । पूजरची पाठकशिवचंदने । आनंदसंघबधाया मे० ७
॥ इति रिषिमंगल पूजा संपूर्णा ॥
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(3)
॥ नंदीश्वरपूजा ॥
१५३
॥ अथ नंदीश्वर जीकी पूजा ॥
॥दोहा॥ स्वस्तिश्री सुखकरण घन । विघनहरण ज यकार ॥ अश्वसेन नंदन चरण । शरण
रुचिर उरधार ॥ १ ॥ जिनवाणी समरणकरी । सकलजीव सुख कार ॥ कहिस्युं नंदीश्वर जगत । पति
पूजन विसतार ॥२॥
॥ढाल ॥ अखिलहीपसिरताज।शष्ठम नंदीश्वरही पबाजै ॥ वलयाकार जगत सुख कारी । नि सपम शतिशय गुण मणिधारी॥ १॥
॥ उल्लालो॥ मणिधारि बावन विमल गिरिवर । जै नमंदिर युतसदा ॥ शुजनक्ति धर निरजरपु रंदर निरषिपामें सम्मदा । इककोकि शतत्रि ण सष्ठिकोफिय चोरासीलख योजना। इणही पनो चकवाल विष्कंन । मान जाणो नोजना
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॥ न० श्व० पू०॥
॥ढाल ॥
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इण ही पूरब दक्षिणासा । पश्चिम उत्तर दिश चउपासा ॥ चतुरंजन गिरिसुख माधारी। चारणसुर विद्याधर चारी ॥२॥
॥ उल्लालो॥ धरचारि निजदुति नरविनिर्जित सजल जलधर घनघटा । वलिचतुर शीति सहस्त्र योजन तंगता धरता स्फुटा ॥ इणप्रवर अं जन सिखरि सिखरे शाश्वता जिनमंदिरा ॥ चउसंख्य सुंदर कनककलसो। पमधरा जग सुखकरा ॥२॥
ढाल ॥ इकइक अंजनगिरि चउपासा । चउपक्क रिणी प्रगट प्रकासा ॥ विस्तर इगलख योज नसारा । तासुमांहि इक इक्काउदारा ॥ ३ ॥
॥उल्लालो॥ इकइक उदारा सहस चउसठि योजनोन तता कुला ॥ जिनराज मंदिर मंमिता सऊ चंद्ध किरण समुज्वला । दधिमुख धराधरदी र्घिका प्रतिविदिशि दोयदोय रतिकरा। दश सहसयोजन उन्नताधर उदय करुणा सणवरा
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॥ नं० ० पू० ॥
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१५५
॥ ढाल ॥
जिनमंदिर युत रतिकर विमला। पूरब दिशितेरस सऊञ्श्चला ॥ यह रीतें परत्रिणदि शिजाणो । इम बावन्नगिरी इवखाणो ॥ ४ ॥ ॥ उल्लालो ॥
इवखाणशतयोजनसुदीर्घा बऊत्तरयोजन प्रमा । प्रति उन्नता पंचास योजन विस्तरा जिनगृह समा ॥ शत एक अष्टोत्तर प्रमाणा पंचात धनुरुन्नता । इणरीति प्रति प्राशाद प्रतिमा जाणिये बिंबशाश्वता ॥ ४ ॥ ॥ दोहा ॥
ऋषजानन चंद्रानना । वारिषेण व्रधमा न || एजाणो शाश्वत सकल | जिनप्रति मा निधान ॥ ३॥ सुरगिरि शिखरे जिनतणों । जिन न्हव णोत्सव सार ॥ करिके नंदीश्वर जई । ह
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रिगण विबुध उदार ॥ ४ ॥ अनुन रसयुत जक्तिधर । हृदय सरोज मकार ॥ इणपरि शाश्वत 'जिनतणों । करें पूजति सार ॥ ५॥ पूरबदिशि अंजनगिरी । मंदिरगत जि
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।
॥ नं० श्व० पू० ॥
नराज ॥ शमविधि पूजाये सदा । भर - चीजे हित काज ॥६॥ प्रथम पूज जिन राजनी। विमल जलैं नर पूर ॥ करिये न्हवण सदानवी। हो
य सकल दुख दूर ॥ ७॥ ॥ कुंदकिरण शशिऊजलोजी देवा एचाल ॥
मिलिकरि सकल सुरासुरा रेवाला । नि जसेवक सुर पासें रे ॥ दीर जलधि मागध थकी रे वाला। सिंधुनदी गंगासें रे ॥१॥ वलि वरदामसुतीर्थसें रेवा० । विमल सलि लशणावें रे ॥ मणिकनकादि कलश नरी रे वाला । अषधि कुसुम मिलावें रे ॥ २॥ इं दादिक सऊसुरगणा रेवा० । शाश्वत जिन न्हवरावें रे ॥ विमल सलिल धाराकरी रेवा कमति तापने गमावे रे ॥३॥ इणपरि जे जगतेनवी रेवाला । न्हवणकरै जिमअंगें रे तेसुरवर सुख अनुनवी रे वा० । लहै शिव पद मनरंगे रे ॥ ४ ॥ व्यपूज करि सुरवरा रेवा० । करै जिणंद गुणगानारे ॥ कुशल कु मुद विकसायवारे वाला। प्रनु शिवचंद स माना रे ॥५॥
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॥नं० श्व० पू०॥
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॥काव्य ॥ दुरितदाव घनातप वारणं । सकलनाव विकासनकारणं ॥ जगतिन्नव्य नवोदधि तार णं । जिनगणं स्नपयाम्य मलै ऑलैः ॥१॥
झी श्रीअर्ह परमात्मन्यो निंतानंतज्ञान श क्तिभ्यः प्रणतसकल सुरासुरेंद्र वृंद विहित नक्तिभ्यः कठिन कर्म शालमालो न्मूलन चरणेन्यो जन्मजरा मृत्युनिवारण कारणेच्यो नंदीश्वराष्टम द्वीपगत पूर्वीजन गिरिशिखर स्थ सिहायतन मंझनायमानेभ्यः श्रीरिषनान न चंदानन वारिषेण वर्षमाना निधानाष्ठो त्तरैकशत शाश्वत जिनेन्यो जलं यजामहे स्वाहाः इति प्रथमजल पूजा ॥ १ ॥
॥दोहा॥ द्वितीयपूज जिनराजकी । करऊ नक्तिन रसार ॥ वरसुगंध दुव्य करी। तरऊसिं
धु संसार ॥१॥ ॥ मेघवरसैनरी पुप्फवादलकरी एचाल ॥
नक्तिधरी नविजन पूजमहाराजकुं। एह वरगंध व्यं सदाई ॥ विमल घनसार चंदन सरसमृगमदा। कुंकमें कर विलेपन मुदाई न.
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१५८
॥नं० श्व० पू०॥
(२)
१॥ जे नवि सुरनितरगंधव्य करी । सुरनि तनुकरै जिनराज केरो ॥ तेहनी चंद करा मल यशवासना । सुरनितम करइ सऊजग घणेरो न०॥ २ ॥ एमवर सुरनितर द्रव्य सेंसुरवरा । घरचकरि जगपती बिंवसारा ॥ परमशुन्न नावना लावता गावता । विशद जिनवर गुणा अतिशपारा॥३॥ सकलसुर गणमिलीएम जंपेंमुदा । जोसुरा आज जिन राज शरची ॥ विरति गुण रहितनिज जन्म सफलो कियो । सुमति संयोग दुरमति विगू ची न० ॥ ४ ॥ दुतियइम पूज करतांहरै न व्यनो । पापघनताप शा अपारा ॥ सरग निरवाण पुरपंथ प्रगटीकरण । विशदशिव चंदकरगण उदारा न० ॥ ५॥
॥काव्य ॥ मृगमदोज्वल कुंकुम चंदनै । श्चिर तनां तर तापनिकंदनः ॥ जिनवरा नघता मसना स्करान् । स्वहितकृध्धिये चसमर्थयेः ॥६॥ नही श्रीअर्ह परमात्म० प्रणत० कठिन० नं दीश्वरा०रिषनानन चंद्रानन वारिषेण वर्ष माना ष्टोत्तरैकशत शाश्वत जिनें० चंदनं य
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(३)
नं० श्व० पू०॥
१५९
जामहेस्वाहा इतिद्वितीया गंधपूजा संपूर्णम्
॥दोहा॥ तृतीयपूज जिनराजनी। विकसित श तिहिरसाल ॥ सुरलि कुसुमकरि नवियज
न । करिये नक्ति विशाल ॥१॥
॥पांचवरणी अंगीरची एचाल॥ एह जिनकी पंकहरणी नगतिसारी । मि लिकरि हरिवर सकल सुरासुर ॥ त्रिकरण इ क करि हितकारी एह० ॥ १ ॥ अनुनवरस युत चिन्न नक्तिधरि । पूरब पुन्य उदय नारी एह० ॥ इणबिध कुसुम नक्ति जिनवरकी। करइ हरइ घन दुरितारी। एह० ॥ २॥ मा लती नागपुनाग केवको । दमणक कुंद सुगं धिधारी एह०॥ मसक केतकी पन मोगरा कुसुममालकरि मनुहारी ए० ॥३॥ जिनवर कंठ ठवें प्रनु शगल । कुसुमपुंज धरि दुख वारी ए० ॥ इण बिध पुष्प नक्तिकरि नवि जन । वरइ सकल जग सिरि नारी एह० ॥ ४ ॥ करिके शुकलध्यान पावकसें । जस्म वि षम समक्रमवारी ए०॥चिदानंदघनपद शिव चंदोपम । पामें शतिगुण विसतारी॥ ए०॥५
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१६०
नं० श्व० पू० ॥
(४)
॥ काव्य ॥ नव दवानल ताप घनाघनं । कुशल चंद न नंदन काननं ॥ विशद शारद चंद समा ननं । जिनगणं कुसुमै च समर्चयेः ॥६॥
हात्री अर्ह परमात्मज्योनिंता० ॥ प्रणत० कठिन० नंदी० श्री रिपन्नानन चंानन वा रिषेण वर्षमाना निधान २० जिनेन्यो पु ष्पं यजामहेस्वाहा ॥ इतितृतीयपुष्पपूजा ॥३
॥दोहा॥ जगनायक जिनचंद नी । एह चतुर्थिजा ण॥ धूपपूज करिये सदा। हरिये कुमति
शनाण ॥१॥ सबशरतिमथनमुदारधूपं एचाल ॥ जग कुशलकारि घालि हरणं । धूपपूजन दाररे ॥ धूप अनलै कुगति दुखनर । फलद दहन अपाररे ॥ १ ॥ ज० ॥ सरस चंदन अगर अंबर । मगमदा घनसाररे ॥ कुंदरू कबली सेलारस । करिये गंधवटि साररे ॥ २ ॥ जग० ॥ रतनमय वर धूप धाणो ॥ धूपन्नत करधाररे । सुर पुरंदर पूजकरतां ॥ लहै लान अपाररे ज० ॥ ३ ॥ धूपपरिमल
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(५)
नंदीश्वरपूजा ।
१६१
महम हैं जिम ॥ तेम जुवन मकाररे ॥ धूप पूजा ते नविकनो। गुण सुगंधि बिचाररे ॥ जग० ॥ ४ ॥ जव अंधकप पतंत उधरत । धूप अरचन धाररे । कहत गणि शिवचंद पाठक । पूज चतुर्थी साररे ज० ॥ ५॥
॥काव्य ॥ नव सुदस्तर वारिधि तारणं । विषय सौख्य विकार निवारकं । निरूपमोत्तर मंग ल कारकं । जिनगणं धृतधूप करायते ॥ १ नही अर्ह परमात्म० प्रणत कठिन०॥ नंदी श्वरा० श्री रिषनानन चंद्रानन । वारिषेण वर्षमानानिधान अ० धूपं यजामहे स्वाहा इति चतुर्थी धूप पूजा ॥ ४ ॥ .
॥दोहा॥ दीप पूज इह पंचमी । करिये विविध प्रकार ॥ दीप पूज करतो नविक । दीपें जगतमकार ॥१॥
॥ तेरी पूजावणी तेरसमै एचाल ॥ मेरी लगीय प्रीत प्रनु चरणा । जिनगुण परिणति करण कारण ॥ सकललोक सुखकर ण मे० ॥ १ ॥ गहिरसिंधुनव निपतित ता
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१६२
॥ नं० व० पू० ॥
रण । तरण तरणिगुणधरणे ॥ अनंतरूपधर दुरगतिनय हर । परमज्योति अधिकरणे मे ० ॥ २ ॥ करुणाधार विमलगुण आगर नि रूपमशरण शरण मे० । एजिनचरण दीप पूजनसे || चीजे दुख हरणे मे० ॥ ३ ॥ केवल विमल चिदानंद लहिये दीपपूजके क रणें मे० । रतन दीपसे करै आरती हरिगण जिनगुण चरणे मे० ॥ ४ ॥ एप्रनुचरण सेव नवि जनकुं ॥ मृत पद सुवितरणे मे० । कुमति रजनि अज्ञान तिमिर हर । वर शि वचंद सु किरणे मे० ॥ ५ ॥
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(६)
॥ काव्य ॥
मदन सिंधुर सिंधुर वैरिणं । गुरु कषाय करेणु समीरणं ॥ मद धराधरता वल वैरिणं जिनगणं प्रयजे वरदी पकैः ॥ ६ ॥ की पर मा० प्रणत० कठिन० नंदीश्वरा० श्रीरिषना नन चंद्राननं वारिषेण वर्द्धमान प्र० दीपं य जामहे स्वाहा ॥ इति पंचमी दीपपूजा ॥ ५ ॥ दोहा ॥ बीकृत रचना | करिये धरि शुन भाव ॥ बरिये सिवधू परम | प्रय
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(६)
___॥ नं० श्व० पू०॥
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सुख नोदाव ॥ १ ॥ ॥ हाहोरे देवा बावनाचंदनघसिकुमकुमा ॥ __ हाहोरे वाला एजगदीसर हितकरू । छ लवेसर जिनमाहाराजए ॥ शतिगहिरानव जलधिते । प्रनुतारण तरण जिहाजए हां० १॥नीमकरम कुंजरघटा । नंजन मृगराज समानए ॥ हांहोरे बाला नव्यकमल प्रतिवो धिवा । एप्रनुवासर महिरानए हां० ॥२॥ रजत शालि तंदुलमयी शदत पूजन एग्रसा रए ॥ एपूजा जिनचंद नी । बांबित सुखनी दातारए हां० ॥३॥ ठवणजिनंद दरसणश छै। अनुनव रसतसनो कंदए ॥ नावजिणे सरदरसनो कारण कह्यो सकलजिणंदए हां० ४ ॥ ए पाठक शिवचंदने । जिनचरण शरण आधारए ॥ प्रतिनव जय ज्योयेकही बही। शदत पूजासारये हां० ॥५॥
काव्य ॥ विजित मंदर जूधर धीरतं । निहत साग रराजगन्नीरतं ॥ प्रदित पातकयोध सुवीरतं जिनगणं प्रयजादत पूजया ॥ ६ ॥ ही अर्ह परमात्मन्यो अनंता० प्रणत० कठिन०
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१६४
॥नं० श्व० पू०॥
(७)
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नंदीश्वरा०श्रीरिषनाननचंद्रानन वारिषेणव ईमाना निधानाष्टोत्तरैक०जिनेअक्षतंयजा महे स्वाहाः ॥ इति बहीशक्तपूजा ॥ ६ ॥
॥दोहा॥ हिवपूजा नैवेदानी । सप्तम अतिहिवि साल ॥ करिये जिनवरनी श्चल । लहि
ये मंगल माल ॥१॥ ॥ राग जिनगुणगानं श्रुतशमृतं एचाल ॥
जिनवरदरसण वरअमृतं । ए जिनदरा ण अमृत फरसै ॥ नवि तजि मिथ्याश्यगुण तं जि०॥ १ ॥ जगदीसरपरमात्मदशापद। पामें अनुपम कांचनतं ॥ तिणसें सुरपति प्र नुदरसणवरि । नगते गावें जिनचरितं जि० २॥ मोदक घृत वरखजक परमुख । वरनवे दासरसधरितं ॥ हरिगण जगप्रनु शागलढो वें। मणिमय कनकथाल नरितं जि०॥३॥ जे नैवेद्य करी जिनपूजन । करइ तेह जगम न हरितं ॥ अतिही स्वादु सुरगति शिवपद सुख । ततिनित सेवें वितुरितं जि०॥४॥ विंशति पदमें ये जिनपतिपद । वरशिवचं द विमल शमितं ॥ इणपद सेवक नविजन
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(८)
॥ नं० ० पू० ॥
केरो । संचित भूरिहरइ दुरितं जि० ॥ ५ ॥
॥ काव्य ॥
अनंतविज्ञानमयस्वरूपं । समस्त लोकत्रय नूतिनूपं ॥ लस णौघामृत चारुकूपं । यजे सुनैवेदाच्या नियं ॥ ६ ॥ | श्री परमात्मन्योऽनंता प्रणत० कठिन०नंदी०श्री रिषनानन चंद्रानन वारिषेण वर्द्धमाना नि धाना ष्टोतरैक० जिने ०च्यो नैवेदां यजामहे स्वाहाः ॥ इति सप्तमी नैवेदन पूजा ॥ ७ ॥ ॥ दोहा ॥
जिनफल पूजा अष्टमी । कष्टानिष्ट वि दार ॥ करिये शुभजावें सदा | जरिये पु
न्यत्तंझार ॥ १ ॥
॥ तेजतरणि मुखराजै एचाल ॥ सुरनायक जसगावें । जिनजीको सुर०ए की ॥ निरमल मनवच काय करणते । लुलि २ शीस नमावें । सुर अबतार सफल जयोमेरो । जिनपूजन सुपसावें जि० ॥ १ ॥ नयनचकोर चंद्र समज्योती । संचितदूर पु लावें ॥ निरखि२ मनमोहन मूरति । नंद अंगनमावें जि० ॥ २ ॥ नालिकेर नारंगी क
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॥ नं० श्व० पू० ॥
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(6)
अणावें ॥ पूंगीफल दाि
वला । केला शाम म परमुखफल | जिनवर चरण चढावें जि० ३ ॥ जेवि फलपूजा जिनवरकी । करैकरा वेंजावें ॥ अनुमोदें तेपरम चिदानंद | घन मृत फलपावें जि० ॥ ४ ॥ वरस ढार बि होत्तर जेठें। प्रतिपद सुकल सुहावें ॥ चंद सूनुवासर जयनगरै । खरतर गच्छजगचावें जि० ॥ ५ ॥ श्रीजिनहर्ष सूरि सूरीसर । वि । जयमान वदावें ॥ रूपचंद गणिपाठक पा री । वादींद विरुद धरावें जि० ॥ ६ ॥ ता ससीस वाचक पुन्यशील सिष ॥ समय सुंदर कहिरावें ॥ तासुसीस पाठक शिव चंदै । पू जरची मननावें जि० ॥ ७ ॥ जेनंदीश्वर शा वत जिनकी । वसुविध पूजरचावें ॥ तेजन सकल लोकके ईश्वर । तीर्थ करपद पावें जि०
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॥ कला ॥
सुरपति सुरासुर वृंद वंदित चरण पंकज मघहरं । सतुद्वीप नंदीश्वर जिनालय परम तर सुख माकरं ॥ अति विशद हिमकर चं प्रिका मल निखिल गुण मणि सागरं । जि नराज गण मह मर्चये वरफल चयैः करुणा
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(०)
॥नं० श्व०पू० ॥
१६७
-
करं ॥ ९ ॥झी श्री परमात्मन्यो ऽनंता० प्रणतस० कठिन० नंदीश्वरा० श्री शषना नन चंद्धानन वारिषेण वर्षमाना निधानाष्टो तरैकशत शाश्वत जिनेंद्रच्यः फलं यजामहे स्वाहाः ॥ इत्यष्ठमीफल पूजा ॥ ९ ॥
॥दोहा॥ पूरब दिसि अंजन गिरी । मंदिरगत जि नराज ॥ शमविधि पूजा ये सदा । शरची जै हितकाज ॥ १ ॥ पूरब परमुख चिऊं दि सै। पुक्करणी शनिराम ॥ दधि मुख चनमं दिर जिना । अरचीजै शुन काम ॥ २ ॥ई शानादि बिदिशिगत । वसुरतिकर गिरिराज मंदिर गत जिनराजकी॥ करिये पूजसमाज ३॥ दक्षिण अंजनशैलमें । चउ दिशिदधि मुख सार। चउमंदिर जिनराज की॥ करिये पूज उदार ॥ ४ ॥ दक्षिण दिशि अंजन गि री। मंदिरगत जिनराज ॥ वसुविधि पूजा ये सदा । पूजी जे हित काज ॥ ५॥ ददि ण ईशानादिकै । विदिश शतिहि उदार ॥ शक रतिकर गिरिवर जिना । पूजो विवि ध प्रकार ॥६॥ पश्चिम दिशि अंजन गिरी
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१६८
॥नं०श्च० पू०॥
मंदिर जिन महाराज ॥ वसुविध पूजा ये स दा। पूजो नविक समाज ॥ ७॥ पश्चिम अंजन शैलने । चउदिशि दधि मुखधार ॥ चउमंदिर जगनाथ की । पूज करो सुखकार ८॥ पश्चिम ईशानादिकै ॥ विदिशें जगहि त काज । अफ रतिकर गिरि जिनप्रतें ॥ अरचं जगदाधार ॥ ९॥ उत्तर दिशि अंजन गिरी। मंदिर गत जगराय ॥ अष्ठविधार्चन से नविक । शरचो जीउ सुखदाय ॥१०॥ उन्तर अंजनशैलने । चउदिशि दधिमुखनाम चउमंदिर तीर्थेशनें । श्ररचो शुन परिणाम ११॥ उत्तर ईशानादिकें। विदिश रुचिराका र। वसु रतिकरगिरि जगविनू ॥ पूजो अरति विदार ॥ १२ ॥ सकल संघ वलि जेठमल ॥ कोठारी चितचंग ॥ इनके आग्रहसे करी ॥ पूजा अतिहि सुरंग ॥ १३ ॥
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musa
JHANS CS-L
॥ इति श्री नंदीश्वरजीकी पूजासंपूर्णा ॥
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(१)
॥ पां०क०पू० ॥
१६९
.. ॥ अथ पांच कल्याणक पूजा ॥
-
॥दोहा॥ ज्योतिरूप जगदीसनों। शत्रुत रूप अनूं प॥ प्रवचनप्रन्नता प्रगटपण । जय जय ज्योति सरूप ॥ १ ॥ चौवीसे जिनवर नमी। पंच कल्याणक रूप ॥ शासन नायक वर्णवू । दर्शन ज्ञा न सरूप ॥२॥ कल्याणक उच्छवकरै । इंदादिक जे देव तेनावें नविजन करै । श्रीजिनवरनीसेव
॥राग सरपदो॥ जोतिसकल जगदीसनी। हां रेज० हे ॥ च्यारनिक्षेप प्रमाण । नाम जिनादिक जिन कह्या । शागम मांहिप्रधान ॥ १ ॥
॥ गाथा॥ नाम जिणाजिण नामा । ठवण जिणान जिणंद पफ्रिमान ॥ दवजिणा जिण जीवा। नावजिणा समवसरणच्छा ॥ १ ॥
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१७०
प
०क०पू० ॥
(9)
--
॥ ढालतेहीज ॥ विनकारण कारजनही हां रेका०ए। एसब लोकप्रसिछालावनिक्षेप प्रधानता। कारज रूपेंसिह ॥ २ ॥ विनाकार दुव्यनो हां०
० । नऊवें थापन सिछ ॥ नामविना आ कारनो । प्रगट पणे नविबुछ॥३॥ नामा दिक कारणसही हांका० इनविन नावन होय । नावविशु? जिनतणी पूजकरो सऊ कोय ॥ ४ ॥ बिवहारै निश्चय लहै हा०नि० कारण कारज होय ॥ पावक शालाकमकरी। सोधचढे सऊकोय ॥५॥
॥दोहा॥ ज्ञानकला कलितातमा। लोकालोक प्रका श ॥ व्यापक नावें थिर रह्यो । गुछ वि कास विलास ॥१॥
॥राग सारंग ॥ हांहोरेदेवा जोतिसकल जिनराजनी।स ऊलोकालोक प्रकास ए ॥ हांहोरेदेवा राजत श्रीजिनराजजी। वांणी प्रवचन शुलवासए१ हांहोरेदेवा मात नमुं नित सारदा । गुरुपंच कल्याणक सारए ॥ हाहोरेदेवा तीर्थ करना
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(१)
॥ पां०क०पू० ॥
वर्णवं । गुणशास्त्र परंपरधारए ॥ २ ॥ ॥ दोहा ॥
शासन नायक जगधणी । त्रिभुवन पति परमेस || पर उपगारी प्रभुतणा । गुण गावत सवेस ॥ १ ॥
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१७१
|| ढालतेहीज ||
risोरेदेवा | वीसथान करि सेवना वां ध्युंजिननाम प्रधानहे । हांहोरेदेवा दिव्या मरसुखावें ॥ प्रायें प्रनुपुन्य प्रमाणए 9 हांहोरे देवा निरमल तरवरज्ञानना। धारक कारक शुनयोगए ॥ हांहो देवा शब्दचरणरस गंधना । शुनफरस तणा वरोगहे ॥ ४ ॥ हांहोरेदेवा शाश्वत सिद्धायण तणा । नितउ च्छवकरत सुरंगए || हांहोरे वाला बालचंद पाठक कहै । नितमंगल होतसुचंगहे ॥ ५ ॥ ॥ दोहा ॥
पुन्य पूर्वभव प्रतुतणो । प्रगटो प्रगट प्रभाव || सुरकुमरीनित प्रतिकरें नाटक
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नवनवभाव ॥ १ ॥
|| पूर्व मुखसावनं एचाल ॥ शुरु निजदर्शनें करियगुणकर्सना । जिन
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१७२
॥पां०क०पू० ॥
(१)
चरण सेवना ॥विवधकारीहेअइयो विविध कारी आ० । एक जिनधर्ममय परमलीनता दीनतासकलतज रजनिवारीहे थई०॥१॥
आत्मगुणअंतरातमपणैवृत्तितातजिय बहिरा त्मजिन आंणधारी हेश आ ॥२॥ सुझसम्य क्तगुण संपदा निज लही। सहीय शुध धर्मस चिनाससारी हे०अ०।विविधमणिरत्ननीजो तिझगमगजगें । चंद्रिका नासनासितकरारी हे १० सित०॥३॥ प्रवर कुलशुशाजन्य प्रमुखेमुदा । आयुकर बंध नर नव सुधारीहे १० न० ॥ गर्भ अवतार निजमात उदरेल है । बालशुजलग्न शुनयोग चारीहे अ० । योगचारी ॥४॥
॥दोहा॥ शुनदिन शुन्न मजरत घझी। शुन उच्चग्र हचार ॥ देवलोक चवि प्रनुलहै । मातुउ दर अवतार ॥१॥ संदरवरप्रासाद महि। मध्यनिशा जिनमा त॥ स्वप्नदेख सुखसेजमें। जाग्रत शति हरषात ॥२॥
॥ राग घाटाचैती॥
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(१)
पां०क०पू० ॥
१७३
जिनजी नजो नवि प्यारा । याते आ नंद शधिक अपारा जि०॥ १ ॥ सुख सेफ सूती जिन माता । देखें सुपना मननाता ॥ चित हरखित ऊय तिणवारा जि० ॥ २॥ शुचि गज वृष सिंह मनुहार । लक्ष्मी दाम शशी दिनकार। धजकुंन पदमसर सारा जि० वर क्षीर समुश विमान । रयणोच्चय मेस समान निर्धूम पावक सुखकारा जि० ॥३॥ शिवधान्य मंगल श्रियकारी । जाणी शर्थ ह दय कमधारी॥शुनसूचक पुन्य संनारा जि. सुंदर वर सखियन संगें । करिधर्म जागरि कारंगे । निशिशेषगई तिण वारा जि०॥ ४ ॥ एकही पुष्पमाला चढाइये ॥
॥दोहा॥ परम पुरुष परमातमा । जावी नगवन नास ॥ प्रवचन प्रगटकरण प्रन्नु । पुन्य
तणे सुप्रकाश ॥ १ ॥ ॥ पूजा सतर प्रकारी एचाल ॥ शाज शानंद वधाई नई त्रिभुवनमें। चवद सुपन सूचित गुण जेहनां ॥ अवतरे माता उदर नेमैं । आ०॥ १॥ नृपति सद
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१७४
॥पां०क०पू० ॥
(१)
न वऊ सुपन शास्त्र विध । अर्थ विचारक रि निज गनमैं ॥ पुत्र रतन फल वचत नृप ति कुल परम कल्याण होत जननमैं ॥ श्रा० २॥ प्रफुलित हरख नरत हिय अलसत । जिन जननी तात सुनि तनमैं ॥ दिन दिन बढत पूवर धन जन मन । शधिक उबाह घर घरनमैं आ० ॥३॥ रूप्य रजत मणि माणक मोतियें । संख प्रवाल शिल वरसन मैं ॥ धनद धनद सुरइंद्र ऊकमतें । जरत नंकार नृपसदन मैं आ०॥ १॥ ताल कंसाल मधु वीण बजावत । गीत गाततननमैं ॥ दु न्दुनि मुरज मृदंग घन गरजत । गरज २ मानं जैसे घनमैं शा० ॥५॥सुर नर लोक मांक अधिकउबाहवाह। निशदिन होत जन जनपदमैं । इंद इंद्राणी नृप दोहद पूरत । म नोरथ होत जोजो मातु मनमैं श्रा० ॥ ६ ॥ परम कल्याण शुलयोग संयोग नयो । शु नघरि गुनग्रह शुनदिन मैं ॥ बरण सकै न ताहि कवि श्वसर कों। आनंद नयो तीन नुवन मैं शा०॥७॥ इति च्यवन पूजा ॥ नझी परम० ए० ज० श्रीच्य० स्वाहा॥
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(२)
पां०क०पू० ॥
१७५
-
॥दोहा॥ प्रगटे पावन पतित पुनु । अधम उधार न काज ॥ नृपकुल मांहें अवतरें त्रिनुवन
के शिर ताज ॥१॥
॥राग सोरठी॥ आजअधिक शानंद नयोरेवाला । याज सुरंग वधाई रे ॥ जगपति जिनवर जनमि यारे वाला । सुरवधु वन मिलथाई रे १ ॥ शाबोशाज शनंदघन उलटो रेदेवा। दिश कुमरी हरषाई रे॥ शबोदशदिश निर्मलता थई रेदेवा । फूलरही वन राई रे ॥ २॥ फू लै फूली वन लतारे वाला । मधु मालती म हकाई रे ॥शालिप्रमुष सऊधाननीरे वाला। निपजी रास सवाई रे ॥३॥ नारकी जीवें नरकमारे वाला। दणइक साता पाई रे ॥ सबजन मन हरषित नयोरे वाला। नूमंझल बविबाई रे॥४॥शुजदिन शुनमजरतघकी रेवाला । शुनग्रह शुनपल आई रे ॥ जन्मथ यो जिनराजनोरे वाला। प्रगटीपूर्व पुन्याई रे ५॥ पुष्पवर्षागुलाबजलबर्षाकरें।
॥ दोहा सोरठो॥
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॥ पां०क०पू० ॥
(२)
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त्रिलवन माहिसुरूप । जन्मसमय जिनरा जनें ॥ वाजिन वजत अनूप । सुरनरकृत उबव जवें ॥१॥ ॥ रावणनीरत वणावेंहोनला एचालमें ॥
शाजशानंद बधाई रे ॥ देखोशा० ॥ ज यजय कारनयो जिनशासन ॥ सुरकुमरी ह रषाई रे दे० ॥ १ ॥ घरगौरी मंगलगावत मोतियन चोक पुराई रे ॥ ईत उपद्धव जय सब नागे । खार समुई जाई रे दे० ॥२॥ आज सनाथ नयोहै त्रिनुवन । जिनवर ज नम्या नाई रे ॥ शज अधिक जग हर्ष न यो है। धन धन मात कहाई रे दे० ॥३॥ जन्म महोच्छव करननकुं सब । दिशिकुमरी मिल आईरे॥ कर कदली गृह सुंदर रचना पावन कर कर लाई रे दे० ॥१॥ जिनज ननी जिनवर पय प्रणमी ॥ मस्तक आण चढाईरे । स्नान करावत उन्नय शरीरें ॥ तै लान्यंग कराई रे दे० ॥ ५॥ नूषण नूषित अंग विलेपन । देव दूष्य पहराई रे ॥ दर्प ण ले मंगल घट थापी । चामर जुगल डु लाई रे दे०॥६॥ पंचवरन के फूल सुगंधित
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१२)
पां०क०पू०॥
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सुर कुमरी वरषाई रे ॥ होमकरी रदापोटरि या। जिनवरकरै बंधाई रे दे०॥ ७ ॥ मंगल गावत जिनजग जननी । निजगृह माहेंठाई रे सफलनयो निजातम जाणी। दिशकुमरी घर शाई रे दे० ॥८॥
॥दोहा॥ अतिहि शधिक नच्छवकरी । गइकुमरी निजथान ॥ इंदहिवें उच्छव करै । जन्म समय जिन जांण ॥ १ ॥ ॥ रागगौकी सांऊसमें जिनवंदो एचाल ॥
आजउबव मन नायो रे। देखोमाई॥ ज गजननी जिनजायो रे देखो शा०॥ त्रिनुवन मांहि प्रकास नयो है। इंदासन थररायो रे । दे० शा० ॥१॥ भवधि ज्ञान धर जिनजी कुं निरखत । हदय कमल जलसायो रे॥ह रिणेगमेषी इंद ऊकमत। घंटसुघोष घुरायो रे दे० ॥ २॥ वनठुन नवररूप मनोहर। सु र समुदय मननायो रे॥ सुरकुमरी वरनूषण नूषित। अदनुत रूप वनायो रे दे० ॥३॥ नवनव यानवाहनरच सुरवर । सुरगिरिशिख रेंआयो रे॥ चौसठ इंद करत अति उच्छव।
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१७८
पां०क०पू० ॥
AAR
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मेघ घटा घररायो रे दे० ॥ १॥ कालीघटा वरदामनि चमकत। दादुर मोर सुहायो॥ तिहि सुगंध पुष्प व्रज वरसत । मोतियन की फरलायोरे दे०॥५॥ प्रजुप्रतिमापंचतीर्थी नीतरसेंल्यावें। सिं हासणपरस्थापनकरैस्नात्रपूजाकरावें ॥
॥दोहा॥ शकजाय जिनवर गृहे। जिनजननी जिन राज ॥ प्रणमी श्री महाराजनी। नक्ति करै सुरराज ॥१॥ ॥ सुंदरनेम पियारो माई एचालमें ॥
तुमसुत प्रानपियारो माई तु०॥०॥ जग वत्सल जगनायक निरख्यो धन २ नाग हमारो माई तु०॥ १॥ धन जगजननी तु मसुतजायो । अधम उधारण हारो माई ॥ धन२ प्रगटलयो जगदिनकर। त्रिनुवन तारन हारो माई तु० ॥ २ ॥ सबसुर चाहत स्ना त्र करनकुं। सुरगिरि प्रनुजी पधारो माई॥ करजोमी प्रनु रजकरतऊं। सब जनकाज सुधारो माई तु० ॥३॥ मैंसेवक तुमसुत च रननको । शायोक्तं अधिकारो माइ ॥ इंड
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(२)
॥ पां००पू० ॥
७९
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कहें पदपंकज प्रणमुं। जयसब दूरनिवारो तु० ४॥ पांचरूपकरि प्रनुजीकुं लावें। पांफुगव न सिणगारो माई ॥ चोसठ इंद्र महोत्सव करिहैं। पूजन अष्टप्रकारो माई ॥५॥
॥दोहा॥ पंचरूप कर इंद्ध जिन । पंगवन लेजा य ॥ सिंहासन उबरंग गहि । स्नात्र करें सुरराय ॥१॥ ॥ इतनोंगुमाननकरियेबबीलीराधाहए०॥
जिनजीको पूजन करिये। हारे होरंगीले श्रावकहो जि० ॥ व्यन्नाव बऊनेदेकरतां। नवसागर निसतरिये जि० ॥ १ ॥ गंगाजल चंदन पुष्यादिक। शमविध मंगल धरिये ॥ जावविशुझे जिनगुणगावो। नाटक नवनव क रियें जि० ॥ २ ॥ बऊबिध प्रजुकी नक्ति र चावत । वर्ननकरन नतरिये ॥ वोशानंद दे खें सोइजाने । दुखसब दूरेहरियें जि० ॥३॥ पूजनकर प्रनकं घरल्यावे। आतम पन्यैनरिये करअठाही महोत्सव शावत । सबसुर मिल निजघरिये जि० ॥४॥ इतिश्री जन्मकल्या णके ज० श्री शष्ठ व्यं स्वाहा ॥
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१८०
पांक०पू० ॥
॥दोहा॥ सुरकृतउच्छव अति अधिक। नये अनंतर प्रात ॥ मातपिता उच्छवकरें। निज कल कमविष्यात ॥१॥ पारनहीधनकेजहां। शगणित नरेनंकार॥ दानमनो वंछित दिये । दयावंत दातार
॥ गात्रलूहें एचाल ॥ जिनजन्म महोच्छव रंगसुंरे । नयेप्रातक रतउछ रंगसुंरे ॥ हां रेदेवा रंगसुं॥ नपउच्छ व करै अतिघणुं ॥ १ ॥ पुत्रजनम कुलकमक रै रेदेवा । जगजस कीरतविस्तरें वि० । घ रघरउच्छव रंगमें ॥ २॥ सुरवधुमिल सुरसं गसुंरे ॥ करेंनाटक नवनव रंग सुं रे रं ॥ हां रे बाललीला जिनसंगमें ॥ ३ ॥ रूपाति शये शोलतारे देवा । इंदादिक मन मोहता रेवा०मो हां० । विमाप्रनु विस्मयवती ४ परमप्रमोद प्रवीणतारे देवा । सुरकीफा १ तिशयवता रे देवा शु०॥ वैकिय शक्तिसमे लसुं रे देवा ॥ ५ ॥गावतगीत उमंगसुं रे देवा वाजिन नवनव रंगसु रे देवा अ०॥ वजित अहोनिशिसंगसुंरे ॥६॥
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॥ पां०क०पू०॥
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॥दोहा॥ तीनज्ञान अतिशय धरैं। शतिशय कला सुधाम ॥ सुर सुसंग कीझातिशय । अति शयगुण शनिराम ॥ १ ॥ ॥ पंचवरणी अंगीरचीकु० एचाल ॥ वरणीन जातीरे व०। जिनजीकी सोनाव० न जाती ॥ चित्रजात नर सुरासुर निरषत। शोर न असोजगन्नाती जि०॥१॥ अनंत ग णेंकरि सोनित प्रनुजी । सुछ संवेग सोवन जाती ॥ शिव मारग शुध सेवत निसदिन । पुन्यपुरुष पायाराती जि० ॥२॥ परउपगारी परम पुरुषोत्तम । शदनुत अनुनव रस पा ती ॥ कामलोग वरविबुध प्रकारें। प्रातनये सुखसंघाती जि० ॥३॥ जसु जसख्यात प्र गट त्रिनुवनमें । कुल राजन्योत्रम जाती॥ध नरतीन नुवनके साहिब । श्यामहमारो वर गाती जि०॥४॥ इंद अहो नि नावन नावत । देख दरस शति हरषाती॥ दुन्दुनि प्रमुख वाजिन वजतनित । सुरवधु वनमंग लगाती जि० ॥ ५॥ ही प० पुष्प वासः प चढावें॥
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१८२
॥पां०क०पू० ॥
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॥ दोहा ॥ प्रवरनोग प्रनुपुन्यतें । प्रगट प्रगट प्रधा न ॥ गुणग्राहक गृहवासमें । दर्शन ज्ञान निधान ॥ १॥
पनुविन दीनानाथ दया । विन कोंन क हावत कोई रे पु०॥ गहवासै सुधसंयम धा री। शुहसुनावै होइ रे पु०॥ १ ॥ सम्यग दर्शननव निर्वैर्दै स्वतन की जरषोइरे । पुनु ता पुजुकी कोकहि वरनें ॥ सुरनर नारीमो हीरे पू० ॥२॥ शुनलेश्या गुनध्यानरमें नि त । शतम निरमलधोइरे ॥ शात्मरूप नि हारत निजघर । संगसुमति जह जोइरे प्र० ३॥ प्रगट प्रकास आत्मउजियारे । सामक हावत सोइरे । गृहवासै सुधसंयम रागी। लागी लगनसवाइरे पृ०॥४॥ निजप्रभुता प्रनुजीनो लीनो। अंतरशत्रु विगोइरे ॥ वि षयवासना बीणनइलख आतम शक्तिसुंठोइ रे पु० ॥५॥ इमकही फूलचढावें॥
॥दोहा॥ दाता दीन दयाल प्रनु । देतसंवत्सरीदा न॥दूरकरै दालिद्धजग । त्रिनुवन मांहि
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॥ पां०क०पू० ॥
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१८३
प्रधान ॥ १ ॥
॥ मरुदेवानंदनकी क्या बिलागतप्यारी ॥ जगपति जिनवरकी । क्याबि मोहनगा री ज० ॥ मोहत प्रनुकेमोहनरूपें । निरषनि रनरनारी क्या० ॥ १ ॥ जोगकर्म अंतरायक मक । क्षीणनए निरधारी ॥ दानसंवत्सरघ नजिम वरसत । पृथ्वी प्रमुदित कारी क्या० २ ॥ नवलोकांतिक देवसबेमिल । हाजरहोय सुचारी ॥ जयजय मंगल शब्द उचारत । ध र्म होसुखकारी क्या० ॥ ३ ॥ दानधर्म शिव मारगप्रभुजी । प्रगटकियो हितकारी ॥ दाता दीन दयाल जगत में | जिनसम कोसुविचा री क्या० ॥ ४ ॥ इंद्रादिक सुरसुरी नरनारी । दोत्सव अतिनारी ॥ गानदान सनमानता नकरि प्रगति सकलसुप्यारी क्या० ॥ ५ ॥ तजि संसार लियो शुभयोगें । शंयम सतरपू कारी ॥ मनपर्यव वरज्ञान जयोतब । विहरत पर उपगारी क्या० ॥ ६ ॥ तुझी प० ० ज०श्री० दीक्षा० अष्टद्रव्यं ० स्वाहा ॥ ३ ॥ ॥ दोहा ॥ गजवर व समूह रथ । पायक कोफा
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१८४
॥ पां०क०पू०॥
(४
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कोम ॥ जिनदीदा महोच्छवसमें । हाज रहोय तिणठोर ॥ १ ॥ इंदादिक सुरम सुरनर । पनुकुं करेंप्रणाम नरनारी शसी सदे । जयजय त्रिनुवन साम ॥ २ ॥ त जशानव संबरगहै । संयमन्नाव निधा न ॥ सबसंसार तजीकरी । नएशणगार प्रधान ॥३॥ * ॥ तेरीपूजावणी तेरसमें एचाल ॥
धारी धारी धारी जिननए संयमपदधा री। चरनकमल बलिहारी जि०॥ पंचसुमति धरतीन गुपतिकर। सबजीवां सुखकारी जि० १ ॥ जीतलिये उपसर्गपरी सह ॥ सत्रुसेना गणनारी । जयनैरव तेनिपकंपनए । निर्म मनिर हंकारी जि०॥२॥ कोधमान माया लोन किंचन। शाकिंचन व्रम्हचारी ॥ पुष्क रसम निरलेप जगत गुरू । निरंजन शवि कारी जि० ॥३॥ चेतन परप्रनु अप्रतिघा ती। खेसम निराश्रयारी ॥ खड्गीशंग परें एकाकी । प्रतिबंध विहारी जि० ॥ १ ॥
॥दोहा॥ रत्नत्रय परिग्रहकरी । मुक्तिमार्ग निराम
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॥ पां०क०पू० ॥
१८५७
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निशदिन करत बिहारकम । मासु कामनिज ॥ धाम ॥१॥ ॥ सदगुरुजी सुनो मेरी अरजी ॥ एचाल ॥॥
जिनवरजी जगहिसकारी जि० ॥ जग व त्सल जगबंध जगत गुरू । जग नायक जय । कारी ॥१॥ कूर्मतणीपर गुप्तइंदी । अप्र' माद नारंसुचारी ॥ अतिशय धाम धामनि न जवीरज । वृषनपरै सुबिहारी जि० ॥ २॥। सूरवीर प्रजु सिंहतणीपर । कुंजर करम बि दारी ॥ अतिगंजीर सायरसम शोनित । सौ म्यलेश्या सुख कारी जि० ॥३॥ तेज दिनकर सम दीपत । हेम वरण मनुह सर्वसहन कारक धरणी पर। स्वच्छ हदयक। जधारी जि०॥४॥
॥दोहा॥ शनतरधरसंयमकिया। करुवातीताजगंद ॥ वीतरागविचरैप्रवर । रत्नत्रयजगचंद ॥१॥
॥ कुमरीने जादूशारा एचाल ॥ जाके रागद्वेष नया न्यारा रे। सोई क्या म सकल सुखकारा जा० ॥ बासीचंदन सम भन्नु जगमें । अपका रे उपकारारे जा०
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८६
॥ पां०क०पू० ॥
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|१ ॥ कंचन काष्ठ समानहै जाके । सुख दुख सम उपचारा ॥ कोऊ निंदत कोऊ पूजत । जिनजीहै अधिकारा रे सो० ॥ २ ॥ शिव सुख अरु नवसुख जनबांछे। वीतराग प्रन् प्यारा ॥ सूरबीर प्रनु दपकरणि चढ । मो हन मल्लपिडारा रे सो०॥ ३ ॥दायक संय मने शुनयोगें। अनुत्तर गुणगण धारा॥ पा ठकबिजय विमलकहै प्रनुके ॥ चरणकमलब लिहारारे सो० ॥ ४ ॥
॥दोहा॥ घनघातीकरकर्मको। दयकरदायकज्ञान ॥ दर्शनलोकालोकको। प्रगटप्रकासीनान १॥ ॥ ठुमरी वसमन खितरोकुंक केतीर ॥
नजले श्रीमहावीर एचाल ॥ पायोप्रजुनवजलनिधि कोतीर पा०॥ अ तुलीवल वळवीर पा०॥ अनुत्तरजाकैसुमति गुपतिहै। अनुत्तरक्षमाधीर पा० ॥ १ ॥ मा देवार्यव अनुत्तरजाके । रोक्योआश्रव नी र ॥ संबरजोग कियानवि विणठी। रही ई
सुखसीर पा०॥२॥ घनघातीसब सत्रुवि नासी । केवलज्ञान सुधीर ॥ पूरनदर्शन प्रग
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॥ पां०कपू० ॥
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टनयो है । निजातम गुणदीर पा० ३॥ प्रातिहार्य शतिशय जिनसंपद। नयोशनकूल समीर । देउपदेश नविकप्रतिबोधत । वचना तिशयगंजीर पा०॥ ४ ॥ लोका लोक प्रकास परमगुस । कहिनसकै मतिसीर ॥ पाठकवि जयविमल परमातम । प्रनुतापरमसुधीर पा० ॥५॥र्नशीपरम०ए०ज० श्रीम०केवलज्ञान कल्याणके अष्टदव्यं यजाम० स्वाहा ॥४॥
॥दोहा ॥ इंदादिकसुरसबमिली। तीननुबनसिरदार॥ सबदरसीसर्वज्ञनी । महिमाकरेंशपार १ ॥ ॥ शुतुलबिमलमिलो अखंगुणेनिलो॥ शतुलविमलप्रनुताप्रनुकीलखचोसठइंदउछ वधरेए॥ च्यारप्रकारकसुरसबमिलकरसमवसर णरचनाकरैए आ० ॥१॥ रजतकनकरत्नप्राकारें कनकरत्नमणिकंगुराए॥ वृक्षासोक सिंहासन सोनित । तीनकत्र चामरटुरैए शु० ॥२॥ दुन्दुनिप्रमुख श्रवण सुखदायक । गहिरसुरेवा जित्रघुरेए ॥ जानुप्रमाण पुष्पधन वरसत । जलजथलज विकसितसुरेए १० ॥३॥ सा धुसाधवी श्रावकश्श्राविका । इंदादिकसुरीसुर
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॥ पां००पू०॥
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वरेंए ॥ नरनारीतिर्यग विद्याधर। द्वादशवि धपरिषदलरें ए २० ॥ ४ ॥ नविजनधर्मतण उपदेसें । जोजनगांमिमधुर गिरेए॥ प्रतिबो धितचोमुख श्रीजिनवर ॥ निजश्नाषाशनु सरैए अ० ॥५॥ वासोपकीजै ॥
॥दोहा॥ प्रगटपणेनुकीपना। प्रगटप्रकासकरूप॥ प्रगटीपनुतापरमसम । परमातमपदनूप॥ ॥बिगीकौनसुधारैनाथबिनवि० एचाल में।
मंझलनविकमल विबोधन । दिनकरस मजिनरायारे नू० । अणजतें इकफोक शमर पद। पंकजनमर लुनायारे नू० ॥ १ ॥ ग्रा मनगरपुरपण बिचरत । त्रिभुवन नाथकहा यारे ॥ चौसठइंदकरै जाकीसेवा । तनमनसे लयलायारे नू० ॥ २॥ इंशणीमिल मंगल गावत । मोतियनचौक पुरायारे ॥ सर्वजीव हितकारकपनुजी निश्रेयससुखदायारे नू० । ३ ॥ नवजलनिधि निर्यामकजगगुरु । तारक सकलकहायारे । शासनमायक संघसकलकुं॥ प्रवचनतत्वसुनायारे नू०॥ ४ ॥ अनंतगुणा करपूनुजीकी महिमा। वरनेकोकबिरायारे ।
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॥ प्रां०क०पू० ॥
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१८९
परउपकारकप्रनुके पाठक | विजय विमलगुण गावारे तू ॥ ५ ॥ वासक्षेप करें ॥ ॥ दोहा ॥
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निजनिज भाषा नविकजन । तृपतन सुन तहि श्रोत || मीठी मृत समगिरा । सम ऊतश्रम नहि होत ॥ १ ॥ ॥ राग कहरवो ॥
जिनंदवामिलगयो रे | दोयचरणं परध्या न शुकल मनगह गह्यो रे जि० । ज्ञायकज्ञेय नंतनारे ॥ सबदरसी जिनचंद । सुरतरुसम जग वालहो रे ॥ सेवत सुरनरइंद । धर्ममैं लह्यो रे दो० ॥ १ ॥ चवदम गुण थानक क रैरे रे । छातम वीर्य अनंत ॥ योग निरोधन की क्रिया रे | सूखम बादरकंत ॥ बंधसबटर गयो रे | सरब संवर जयो रे दो० ॥ २ ॥ धनकरात्मप्रदेशनों रे । करौलेशी कर्ण कर्म सकल दूर किया रे | जीर्णवत्र जिमपर्ण मुक्ति पद जिम लह्यो रे द्रो० ॥ ३ ॥ ज्ञान किया कर कर्मको । क्षय कर पर अनुबंध निजातम रूपें लह्योए ॥ शाश्वत सुख सं ध | सिद्ध सुध बुध धमारे दो० ॥ ४ ॥ इति
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। पा००पू० ॥
am
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॥दोहा॥ शकल अगोचर शगमगम । सिझनएसु वि शुछ॥ परमातम प्रनु परम पद चिदा
नंद शविर ॥१॥ ॥ रागधनासरी तेजतरणिमुखराजें एचाल ॥
तेजतरणि समराजै। प्रनुजीकोते० ॥ ए कसमयप्रनु अरधगतिकर । मुक्तिमहल सुवि राजै प्र० ते० ॥ १ सादिशनंत सदासाश्वत वरअनंत महासुखबाजै। अचलअगोचर पनु शविनाशी सिझ सरूप विराजै प्र० ॥२॥ निरुपाधिकनिरुपम सुखपूनुके । कहिनसकै कविराजै ॥ शजर अमर अक्षय विकारी सकलानंद सहाजै प्र० ॥ ३ ॥ संवत उगणी सेंतेरोत्तर । श्रावण सुदिपखराजै ॥श्रीजिन राज तणा गुणगाया। पंचमि दिवस समा जै॥ ४ ॥ श्रीविकम पुरनगर मनोहर । श्री संघ सकल समाजै ॥ पंच कल्याणक पूजापू जुकी। कीनीहित सुखकाजै पु० ॥५॥श्री खरतरगछ नायक लायक । युगप्रधान पद बाजै ॥ जंगमगुरु नहारकवरश्री । जिनसौ जाग्य सुराजै पु० ॥६॥ श्रीषीत विलास ध
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॥ पां०क०प्र० ॥
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१९१
सुंदरगणि । अमृत समुद्र सुन्नाजै ॥ पाठ कविजय विमल प्रभुकेगुण | गावत घनजि मगाजें पू० ॥ ७ ॥ हंसविलास प्रवरगणिव रकी । प्रेरणिया सुसमाजें । श्रीजिन वरकी स्तवनाकीधी । धर्मपूजावन काजें प्र० ८ ॥ की प० नं० जन्मजरामृत्यु मिवारकेच्यः श्री मज्जिनेंप्रेच्यो निर्वाणकल्याणके जलंचंद० यजामहे स्वाहा ॥ ५ ॥
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॥ कलशपूजा राग मालवी गौळी ॥ सुनध्यारती प्रभुकी उदारचित्तें । करोजवि करसालरे ॥ प्रथमधूप सुगंधजिनकुं । उखेवो जिननालरे सु० ॥ १ ॥ जाल निजकर तिलक सुंदर । पहरपुष्प सुमाल रे । दक्षिणकर जि न राज जूके । करावर्त्त सुधाल रे सु० २ ॥ यथासगतें सुनतें । करोदिल पुसियालरे दुव्यावें विविधपूजा ॥ नविकनाव विला सरे सु० ॥ ३ ॥ गुणानंत महंतगावो । प्रनू परम दयालरे || जन्मसफली करो नविजन कहैपाठक बाल रे सु० ॥ ४ ॥ ॥ इति श्रारती ॥ ॥ इति कल्याणक पूजा ॥
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॥ पा०क०पू० ॥
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॥ श्थ पंच ज्ञान पूजा ॥
(१)
॥ दोहा ॥ स्वस्तिश्री केलीसदम । नतसुर लिऊंकार ॥ नाजिनंदपदपनयुग । सुरुचिरमानसधार१ ॥ निखिलजंतु सुखकारिणी। जिनवाणीतुरधार ॥ पंचज्ञानपूजनतणो । कहस्युंविधि विस्तार २ ॥
॥ ढाल ॥
सकल क्रियानो मूलजे राजे । श्रद्वैतिक जसुमहिमा बाजै ॥ जेसऊ दुरित तिमिर हारे । लजित कोटि दिनंद अवतार ॥ १ ॥ ॥ उल्लालो ॥
श्वतार जसुमतिनाण । श्रुत पुनरवधि नाण बखानियें || मनज्ञाव परिणति विशद वेदन मनः पर्यय जानियें । वर अनंतानंत केवल पहिय गइ जाणए ॥ प्रतिपत्ति ने दै ज्ञान नाख्युं जिनपती जगनाणए ॥ १ ॥
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॥ ढाल ॥
विंशति पदमा अष्टम पद ए । जावें बंदन
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(१)
पां०ज्ञा०पू० ॥
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करिलव तरिय ॥ नवपद सप्तमपद मननायो श्रीतीरथ पति श्रीमुखगायो ॥१॥
॥दोहा॥ योग्यदेशथित वस्तु जे । विषय प्रगट प्र तिनास ॥ इंद्रिय मन कारणकरी । नेद वतीस प्रकाश ॥ १ ॥ उपयोग क्रमतेक ह्यो । मति पूर्वक सुयनाण ॥ प्रथम पीठ जवि शरचिये । नमोनमो मइ नाण २॥
॥ढाल ॥ समकित उतपति कालै मतिश्रुत । लबधे होय समकाले । सुयनिस्सिय पुन रस्सुय नि स्सिय । नेदेसुय अजुवाले रे । नविका श्रीम इनाण तेवंदो वंदीने चिरनंदोरे न० समकित रसनो कंदोरेन० शिवतरु बीजनोवृंदोरे न. श्रीमइ० एशंकझी ॥१॥ अष्टा विंशतिधा सुयनिस्सिय । अत्युग्गहाईहारवाय३॥धारण ४ एचउपणइंद्रियमण। करि चउविंशतिथायें रेन त्री० ॥२॥ नयनमनोविन इंदियसा रू। वंजणुगह चउनेय ॥ उप्यइया १ वेणइयार कम्मिय ३ । पारिणामिय१ अवसेयरेन०मी० ३॥ उग्गह इक्कासमयईहावाय । शव मुऊसम
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॥ पां०ज्ञा०पू० ॥
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(9)
संख ॥ संखकाल धारण उक्तिष्ठ अचोए हनिक
खरे न० श्री० ॥ ४॥
॥ इलोक युग्मम् ॥ लोकेवग्रहईहनंपुनरपायोधारणेत्यंचतु । दैः क्लृप्तमवग्रहोप्युनयथाथो व्यंजनातोर्धतः॥त्व ङासारसनाश्रवोजिरथसा वेदोन्मिताव्यं जना षोढार्थोपिमनोक्तियुक्तरसनात्वग्घ्राणकर्णैः स्फु टम् ॥ १ ॥ षोढेहापितथेन्द्रियैश्वमनसापायो पिषधातथा । षधैखलुधारणा पिचमति ज्ञानंकिलेत्यंचयत् ॥ अष्टाविंशतिधामतं नव पढ़ेगंधादिभिः पूजन | द्रव्यैरष्टजिरर्चयाम तदहंजक्त्याशिवायामलम् ॥ २ ॥
1
श्रीमति ज्ञानाय जलं १ चंदने २ पुष्पं ३ धूपं ४ दीपं ५ प्रकृतं ६ नैवेदनं ७ फलं ८ यजामहेस्वाहा ॥ इतिमतिज्ञानपूजा १ ॥ ॥ दोहा ॥ सर्वद्रव्यगुणपर्यय । प्रकट करणदिनकार अगम अपार अनंतश्रुत । गुणगणरयणा धार ॥ १ ॥ अभिलापेंप्लावित अथ । ग्र हण हेतु चिदनूप ॥ समकित मिथ्यातकरी वोधावोधसरूप ॥ २ ॥
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(२)
॥पां०ज्ञा०पू०॥
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___रागसामेरी॥ पूजोरेलवि श्रीश्रुतज्ञान उदार पू० तीरथ पतिपद लहि नविजनके यातेकरत उधार पू० अस्करासन्नीरसम्मंइसाई सपर्यवसित५ शुलनावें ॥ गमियं ६ अंगपविष्ठ ७ एचउदह । नेदविपर्ययत्नावें पू० ॥२॥ पर्यायादिकसमा ससहितयह। विंशतिधापुनहोवें सर्वचरणकर ण क्रियाधार। पातिक कलिमलखोवें पू० ३ इकइकथुत अकरनां करतां । स्वपरविनाग विचार ॥ होवेंपर्ययराशिशनंती । सामेरीम तिधार पू० ॥१॥
॥ लोक ॥ यदक्षरमथोनिधावतमादियुक्तंततः । सप यवसितंचवैगमिकमंगविष्टतथा ॥ नासहस मासतःपुनरिमानिचेत्यंश्रुतं । चतुर्दशविधंय जेनवपदेशुनरष्ठनिः ॥१॥ नाश्रीश्रुत ज्ञानाय जलं० यजामहेस्वाहा॥ इतिश्री श्रुतज्ञान पूजा ॥२॥
॥ दोहा॥ द्रव्यक्षेत्र पुनकाल शुरु नावें विषयप्रमाण बेदैरूपीद्रव्यकों नमोनमोऽ वधिनाण ॥
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ACI
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पांज्ञा०पू०॥
(३)
॥ कुणखेले तोसु होरीरे एचाल ॥ . अवधिज्ञान नित नजियैरे निज विमल न क्तिसें अनुगामी ते देशांतरगत ज्ञानीने अनु गमियरे नि० ॥१॥ जिमबऊ बजतर दारु प्रपें कालाजलन वधैये रे नि सुविमलविम लतराध्यवसायें वर्षमान जग जयियें रेनि० प्रतिपातीते एककालमें दीपइवास्तं गमियें रे नि० सेतरनेदें गुणकारण यह बछा नहीकहि मेरे नि०॥३॥ नव प्रत्ययिते घऊतर नेर्दै सुरनिरि नवमां गहियेरे नि० परमावधि अ निरामचंद्रोदयेंनिहचें केवल लहिये रे नि०४
. ॥श्लोक ॥ यच्चैकं ह्यनुगामिचान्य दुदितं संवर्धमान त था तातीयं प्रतिपात्य मूनिहि पुनर्न[यूर्वका णीहशं । षोढारूपि पदार्थ मात्र विषयं त्री सिझ चक्रेनघे द्रव्य रष्ठनिरादरात्तदवधि ज्ञा नं शनैरर्चये ॥१॥ नहोत्रीश्वधिज्ञानायजलंचं यजामहेस्वाहा इति अवधि ज्ञानम् ॥ जेसप्तम गुणठाण थित ऋछिमंत मुनिराय
॥दोहा॥
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-(१)
पांज्ञा०पू०॥
१९७
उपजें तसऋविपुलमतिनेदेंमनपर्याय १ मूर्तवस्तु अवलंघियह द्रव्यक्षेत्र शुरुकाल जावेंचउहाजाणियें शरचिलहोसुखमाल २
॥जिनराज नामतेरा एचाल ॥ मनपर्यवानिधानं गुणरत्नके निधानं पूजोरे नविक शुनलावें ॥ १ ॥ घटमात्र योधकर्ता सामान्य लावधर्मा संसार नीतिहर्ता पू० २ साक्ष्य दीवसागर सन्नीपंचेंदि शागर मन सावके दिवाकर पू० ॥३॥ मनद्रव्यके अशेष गुणपर्ययादिशेष स्फुटनासितेविशेष ॥ १॥
॥ इलोक ॥ मनःपर्याख्यं विपुल मतिचान्य हजुमति विधेयं यदज्ञानं उदय गतनाव प्रकटनं ॥ सुसंज्ञा वरपंचेन्द्रिय विषयि रम्यैर्नवपदे यजे पूजाद्रव्ये स्तदहमधुना मंगल करम् ॥ नहीश्री मनःपर्यवज्ञानाय जलंचं यजामहे स्वाहा ॥ इतिमनःपर्यय ज्ञान पूजा ॥ ४ ॥
॥दोहा॥ शुरु साधारण सकल निर्व्याघातानंत एकसकल साकारफुनि केवल नंतानंत १ पंचमगति दातार यह पंचमज्ञान उदार
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॥ भारती॥
नविनावेंशचनकरी लहोपरमसुखसार २ केवल नाणउदार यातें आनंद शधिक श पार शं० नवसिछस्थ दुनेद तसअंतर बज तरनेद तेतोवरणे किमु कविवार के० ॥१॥ रविजिम श्रमल प्रकाम द्रव्यसकल परिणाम तससला विनतिकार के० ॥२॥ काल त्रय अनुसारें निज निज वेदा शाकारें प्रतिबिंबि त होय तिणवार के० ॥३॥ क्षेत्रथी लोकालो क। शनिरामचंद्रोदया लोक यातें परमानंद अपार के० ॥ ४ ॥
॥श्लोक ॥ सम्यक्तं समुपैति शुझमखिलं यस्माजगन्ना सते साक्षाहस्तगतं त्रिकाल जनितं वतस्फुर त्यंजसा ॥ जायंते तुलसिझयो नवपदे द्रव्यः शुनैः केवलज्ञानं तत्परिपूजयामि सतनं ना वैरनंतं महत् ॥ ५॥ नहीश्री समस्त लोकालोक प्रकाशकाय के वलज्ञानाय जलं चंदनं पु० यजामहे स्वाहा॥ ॥ इति पंचज्ञान पूजा समाप्ता ॥
॥शारती ॥ जै जगसुखकारीवारी। जैसमपद चितधारी
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॥शारती।
१९९
शारति करूंसारी जै० । अष्टाविंशति नेदकरी ने। मतिज्ञान राजै ॥ ध्यावतपूजत नविजन केरा। नवसंकट नाजै जे० ॥ १ ॥ नेद चतु ईशशथवा विंशति । प्रवचन पतिदाषे ॥ श्री श्रुतज्ञानकी महिमा जिनवर स्वमुखी नायें जे०॥२॥रूपीद्रव्य विषयि मर्यादा। करिश वधीसोहै। नेद षटक संख्यातीतीवा । नविज न मनमोहै जै० ॥३॥ तूर्यज्ञान मनपर्यवक हिये। नेदयुगम लहिये जै० ॥ ऋजुमति विषु लमति सरदहिये । न्यूनाधिक गहिये जै० ॥ लोकालोकांतर्गत वस्तुगुण पर्यवनासी । केव ल एक सहायअनंते नए निर्वृतिवासी जे०॥ ५॥ पंचज्ञानकी श्रारति करतां नवभारती बीजे जिमवरदत्त कुमर गुणमंजरी । तिम लक्तिकीजै ॥ वृहत् नहारक खरतर पति ॥ जिनहंस सूरीराया ॥ तत्पद कजमधुकरकंच ननिधि । शानंद वरताया ॥
॥शारती॥ जय शरति ज्ञानदिनंदा शुनुनव पद पा वन सुखकंदा तीन जगतके नाव प्रकाशक पूरणप्रनुता परम शानंदा जय२० ॥१॥ म
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२००
॥छारती।
तिश्रुति शवधि शमनपर्यव। केवल काठेस ब दुखदंदा जय० ॥२॥ नवजल पार उता रण कारण ॥ सेवोध्यावो लविजनवंदा जय० ३॥ शिवपुरपंथ प्रगटएसीधा। चौमुखलार्ष श्री जिनचंदा जय० ॥ १ ॥ शविचल राज हीयासैपावें। चिदानंद निजतेजश्मंदा जय० भारति ज्ञानदि० अनुभव ॥ इति आरती ॥
॥ अथ नाषा अष्टप्रकारी पूजा ॥ गंगामागध कीरनिधि अपधि मिश्रितसार कसुवासित शुचिजलें । करोजिन सात्र उ दार ॥ मणि कनकादिक शुविधकरी नरी कलस सफार । शुनरुचि जेजिनवरन्हवें तसु नहि दुरित प्रचार ॥ २ ॥ मेरुसिखर जिमसु
वर न्हवण शमान । करता बरता निजगुण समकित वृद्धि निधान ॥ ३ ॥ हर्ष जरि अप्सरावंद शावें । स्नानकर एमशासी सनावें । जिहांलगे सुरगिरी जंबुदीवो ॥ श म्हतणा साध्यजीवा तुजीवो ॥१॥
लोक विमल । नही परमपरमात्मने थ नंतानंत ज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्यु निवारणा य श्रीमजिनेंद्राय जलं यजामहे स्वाहा ॥
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॥ ष्ट प्रकारी ॥
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॥ दोहा ॥ वावना चंदन कुमकुमा । मृगमदनें घन सार ॥ जिनतन लेपेतसुटले । मोहसंता पविकार ॥ १ ॥
सकलसंताप निवारण तारण ऊनवि चित्र परमानी हा रिहा तनुचरचो जविनित्त १ निजरूपै उपयोगी धारी जिनगुणगेह । जा वचंदन सऊनावधी टाले दुरितछेह ॥ २ ॥ जिनतनुचरचतां सकलनांकी | कहै कुग्रहाउ तात्राजाकी || सकल निमेषता ज म्हांकी जव्यता श्रमती जपाकी ॥ ३ ॥ सकलमोह०
चं० यजामहे स्वाहा २ ॥ ॥ दोहा ॥
शतपत्रीवर मोगरा | चंपक जायगुलाब ॥ कदमणोबलसरि पूजो जिनजरबाब अमलच्खं द्वितमंनितविकसित शुनकुसुमनी घनजात लाखीणोटोहरठवोप्रंगी रचोबऊनां त १ गुणकुसुमैनिजातम मंठितकरवानव्य गुणरागीजप्रत्यागी पुष्प चढावो नव्य ॥ २ ॥ जगधणी पूजतां विविधफलै सुरवरातेगिणैखि णश्यमूलै खांतधरिमानवाजिनपपूजै तसुतणा
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२०२
॥ शष्ट प्रकारी ॥
पापसंतापधूजै ॥३॥ विकचनिर्मल० नॅझोपरम० पुष्पं यजा० ॥
॥दोहा॥ कृघ्नागर मृगमदतगर । अंबरतुरकलोबा न ॥ मेलि सुगंध घनसारघन करोजिनने धूपदान ॥ १॥ धूपघटीजिममहमहै तिमदहैपातिकवृंद शर तिअनादिनीजावै पावैमनआणंद ॥ १ ॥ जे जिनपूजेधूपैनवकूपें फिरतेह नावेंपावें ध्रुवघ रशावेंसुखअबेह ॥ २ ॥ जिनघरेवासांधूप पूरे मिच्छतदुर्ग धताजायटूरै धूपजिमसहजऊ ईगसुनावें कारकाउच्चगतिनावपावें॥३॥ सकलकर्म नहीपरम० धूपंयजामहेस्वाहा
॥ दोहा॥ मणिमयरजततांमना। पात्रकरीघृतपूर ॥ वत्तीसूत्रकुसुंजनी । करोप्रदीपसुनूर १॥ मंगलदीपवधावोगावो जिनगुणगीत दीपत णीजिमआलिकामालिकामंगलनीत १ दीपत णीशुनज्योती मोतीजिनमुखचंद निरखीहर षोनविजनजिमलहोपूर्णानंद २ जिनगृहँदीप मालाप्रकाशै तेहथीतिमिरज्ञाननाशै निज
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॥ अष्ट प्रकारी॥
२०३
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घटज्ञानज्योती प्रकाशै तेहथी जगतणानाव नाशै ॥३॥ नविकनिर्मल० जीपर०दीपयजा०स्वाहा ॥
॥दोहा॥ अक्षत शक्तपूरसुं जेजिन आगैसार स्त्र स्तिकरचतां विस्तरै निज गुणनरविस्तार उज्जल अमल शखंमित मंमितशतचंग पुं जत्रयकरो स्वस्तिक अस्तिकलावेरंग ॥ १ ॥ निजसताने सन्मुखउन्मुख नावेंजेह ज्ञानादि क गुणगावें नावें स्वस्तिकजेह ॥ २॥ स्वस्ति क पूरतां जिनपआगे स्वस्तिश्री जनकल्याण जागें जन्मजरा मरणादि श्शुलनागें नियत शिवशर्मरहै तासुआगे ॥३॥ सकल मंगल झा परम० अदतं यजामहे०
॥ दोहा ॥ सरस शुचीपकवानबऊ शालिदालिघृतपू र करोनैवेदाजिनशगलै क्षुधादोषतसुदूर लपन श्रीवरघेवर मधुतर मोतीचूर सिंहके सरिया सेविया दालिया मोदकपूर ॥ १ ॥ साकर दाखसिंघोझा नक्त व्यंजन घृतसदा । करोनैवेदा जिनशागलै जिममिलै सुखशनव
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२०४
॥ अष्ट प्रकारी॥
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स ॥२॥ ठोकतांनोज्य परनावत्यागे नवि जना निजगुणैनोज्य मांगें अमनणी अमतj सरूपन्नोज्य शपज्योतातजीजगतपूज्य ३ ॥ सकल पुल नझीपरम० नैवेदा० यजामहे.
॥दोहा॥ पक्षविजोरुं जिनकरे ठवतां शिवपद देह सरसमधुररस फलगिणै येहजिन नेटकरेह श्रीफल कदली सुरंगी नारंगी शंबासार अं जीर बंजीर दाफिम करणा षटबीज सफार मधुरसुस्वादक उत्तमलोक शनंदित जेह व रणगंधादिक रमणिक यऊफल ढोकै तेह २ फलनरै पूजतां जगतस्वामी मनुजसुरनवेलहै सफलपांमी सकलमुनि ध्येयगत नेदरंगे ध्या वतां फलसमाप्ति प्रसंगे ॥ ३ ॥ कटुककर्म झीपरम० फलं यजामहेस्वाहा ॥
॥दोहा॥ इम थाविध जिन पूजतां विरचैजेथिर चित मानव नव सफलोकरै बाधैसमकि तबिन ॥१॥ अगणित गुणगण शागर नागर बंदितपाय श्रुतधारी उपकारी श्रीज्ञानसागर उवकाय
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॥ दादाजीकी अष्टप्रकारी ॥ २०५
तासचरण कजसेवकमधुकर परल्स्थलीन श्री जिनपूजा गाइये जिनवाणी रसपीन ॥ २ ॥ संवतगुण युगअचल इंदु हर्षनरि गाइयो श्रीजिनेंदु तासफल सुकृतथी सकलप्राणी ल ह्योज्ञान उदोत धनशिव निसाणी ॥ ३ ॥ इतिजिनवर नहीपरमप० अर्घयजास्वाहा शक्रोयथा० झोपरम० वायजामहेस्वाहा
इति श्री अष्ट प्रकारी पूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ दादाजीकी अष्ट प्रकारी पूजा ॥ सुरनदी जलनिर्मल धारया। प्रबल दुष्कृत दाघनिवारया । सकलमंगल बांबित दायकं कुशल सूरिगुरोश्चरणंयजे ॥ १ ॥ जी श्री जिन कुशाल सूरिचरण कमलेन्यो जलं निर्व पामिते स्वाहा ॥ इति जल पूजा ॥ मलयचंदनकेसरवारिणानिखिलजान्य रुजा तपहारिणा सकलमं० ॥३॥ नझी श्रीजिन कुशल सूरि गुरु चरण कमलेन्यः चंदनं नि ईयामिते स्वाहा ॥ २ ॥ चंदन पूजा ॥ कमल केतकि चंपक पुष्पकैः परिमला इत षट्पद बंदकैः सकल० ॥३॥र्ना श्री जिन कुशल सूरि गुरुचरण कमलेच्यः पुष्पं निई
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२०६ ॥ दादाजीकी अष्टप्रकारी ॥
! यानित स्वाहा ॥ ३ ॥ पुष्प पूजा ॥ सरल तंदुलकै रति निर्मलैःप्रवर मौक्तिक पुंज बक्तज्वलैः सकलमं० ॥ ४॥ नही जिनकुशल सूरि चरण कम० अदतं निर्वपा० स्वाहा ॥ इति शक्त पूजा ॥
बजविधैश्चरुनिर्बटकादिक । प्रचुर मोदक पुंज सुखजकैः सकलमं० ॥ ५॥ नझी श्री जिन कुशल० नैवेदांनि०॥
शतिसुदीप्तिमयैः खलुदोपकै विमलकांचन नाजन संस्थितैः सकलमं० ॥ ६ ॥ हाश्री जिनकुशाल० दीपंनि०॥
शगरुरचंदन धूपदशांगजैः प्रसरिताखिल दिक्ष सुधमकैः सकलमं० ॥७॥ जाश्रीजिन कुशल० धूपंनि० ॥
पनसमोचसदाफल क टैः सुसुखदैःकिलश्री फलचिर्नटैः सकलमं०८ जात्री जिनकुशल फलानि०॥
जलसुगंधप्रसूनसुतंदुलै श्रुप्रदीपकधूपफला दिनिः सकलमं०॥९॥जी श्रीजिनकुशल० सुर्घ नि० ॥ ९॥ इतिजिनकुशलसूरिपूजाष्टकं
॥ इति श्रीजिनपूजा संग्रह है।
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॥ पूजानाम॥
१ स्नात्र २ शष्ट प्रकारी ३ सतरहनदी ४ बीनवपदजीकी ५ बोटीनवपदजीकी ६ बीसस्थानकजीकी ७ ऋषिमंगलजीकी ८ नंदीश्वरजीकी ९ पंचकल्याणककी १० पंचज्ञानकी ११ भाषाअष्टप्रकारी १२ दादाजीकीशष्टप्रकारी
मुद्रासहस्रकिरण। ग्रंन्धानुपलब्धितिमिरसंहारी ॥ पुस्तककमलविकासी। निशंजैनप्रनाकरोजयतु ॥ १ ॥
फी पुस्तक निबरावल । । दोरुपैये २ ॥
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