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। चौ० जि० पू० ॥
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न सुध थाय ॥ १॥
॥ कुंदकिरणशशिउजलोरे एचाल॥ संवरनंदन जिनबरूरे बाला। शनिनंदन हि त कामीरे ॥ जगदनिनंदन जयकरूरे बा०॥ दुरित निकंदन स्वामीरे ॥ १॥ लोका लोक प्रकासता बा०॥ करता विचल धामीरे य व्याबाध अरूपितारे वा० ॥ विमल चिदानंद रामी रे ॥२॥ वंबित पूरण सुरमणी रे बा० एप्रनु अंतरजामी रे। जैसे प्रनुमहाराजकुं रे बा। सिवचंद नमेंसिरनामी रे॥३॥ नही पर०अनं० अभिनंदनजिनेंदाय जलं० स्वाहा
॥दोहा॥ पंचमजिननायकनमूं । पंचम गतिदातार पंचनाणबरबिमलकज । बनबिकसनदिनकार
॥ कहरवा बंसीतेरी बैरणबाजै एचाल ॥ __ सुधनावचितथिरधरके रे। पूजोसुमतिजि णंद ॥ जिननक्ति करण रसीला । लहें परम शानंद सु० ॥ १ ॥ जिनराज सुमति समंदा करे कुमतिनिकंद ॥ प्रजुनाचरण अरविंदा । बंदै असुर सूरिंद सु० ॥ २॥ कनकान तनु दुतिसोहे। प्रनुसुमंगालानंद ॥ करुणोपशम
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