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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) । चौ० जि० पू० ॥ १३५ । न सुध थाय ॥ १॥ ॥ कुंदकिरणशशिउजलोरे एचाल॥ संवरनंदन जिनबरूरे बाला। शनिनंदन हि त कामीरे ॥ जगदनिनंदन जयकरूरे बा०॥ दुरित निकंदन स्वामीरे ॥ १॥ लोका लोक प्रकासता बा०॥ करता विचल धामीरे य व्याबाध अरूपितारे वा० ॥ विमल चिदानंद रामी रे ॥२॥ वंबित पूरण सुरमणी रे बा० एप्रनु अंतरजामी रे। जैसे प्रनुमहाराजकुं रे बा। सिवचंद नमेंसिरनामी रे॥३॥ नही पर०अनं० अभिनंदनजिनेंदाय जलं० स्वाहा ॥दोहा॥ पंचमजिननायकनमूं । पंचम गतिदातार पंचनाणबरबिमलकज । बनबिकसनदिनकार ॥ कहरवा बंसीतेरी बैरणबाजै एचाल ॥ __ सुधनावचितथिरधरके रे। पूजोसुमतिजि णंद ॥ जिननक्ति करण रसीला । लहें परम शानंद सु० ॥ १ ॥ जिनराज सुमति समंदा करे कुमतिनिकंद ॥ प्रजुनाचरण अरविंदा । बंदै असुर सूरिंद सु० ॥ २॥ कनकान तनु दुतिसोहे। प्रनुसुमंगालानंद ॥ करुणोपशम - - - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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