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॥ चौ० जि० पू० ॥
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. जयजिणंददिणइंदसम । लखिन्नविकजवि कसात ॥ परमानंदसुकंदजल । विजयामातसु जात ॥१॥ ॥रागशासावरी हो दिलबागमें॥
॥ प्यारे जिनजी ॥ एचाल एक शज अवधारिये। शजितजिन एक अजितजिनेसर जगशलवेसर । कुरम निजर निहारिये १० ॥ १ ॥ चरमसिंधु नवनय ज लनिपतित चरणपतित मोहे तारिये अ०॥ २ ॥ परमानंदघन शिव बनितानन । कजम धुपान सुकारिये २० ॥ ३॥चिर संचित घ नदुरित तिमिर हर । तुम जिननये तिमिरा रिये १० ॥ ४ ॥ कहैं शिवचंद अजित प्रन्नु मेरे एह अरज न बिशारिये २०॥५॥ झा परमप०अनं०जन्म० श्रीम० ज० चं०स्वाहा ॥ इति अजितजिन पूजा ॥२॥
॥दोहा॥ जय जितारि संनव सदा । श्रीसंनवजिन राज ॥ सकललोक जिण जीतियो। जीतोमोह समाज ॥१॥जैनाकरगुणपूर । सेवो तेजसनूर नक्तिनवपूरण उरधार। मुक्तिपुरीपथसार ॥
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