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॥ स्नात्रपूजा॥
रण जलधर समान । मिथ्या विष चरण गरुडवान । तेदेव सकल तारण समत्य । प्रगटो तसु प्रणमी हुवो सनत्य । इम जंपी सकस्तव करेवि । तब देव देवी हरखें सुणे वि । गावें तब रंना गीत ज्ञान । सुर लोक ऊवो मंगल निधान । नर खेत्रे आरज बंश ठाम । जिन राज वधैं सुर हर्ष धाम । पि ता मात घरे उच्छव अलेख । जिन शासन मंगल अति विशेख । सुर पति देवा दिक हर्षसंग । संयम अरथी जननें उमंग । शुन बेला लगनें तीर्थ नाथ । जनम्यां इंदादिक हर्ष साथ । सुख पाम्यां त्रिनुवन सर्वजीव । बधाई बधाई थई अतीव ॥ ॥ इहां चैत्य बंदन करणां धूप खेवणां ।
॥ढाल ॥ ॥शांति जिननों कलश कहस्यों । एदेशी॥
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श्रीतीर्थ पतिनों कलस महान गाइये सुखकार। नरखित्त मंडन दुह विहंडन भवि क मन शाधार । तिहां राव राणां हर्ष उ च्छव थयो जग जय कार । दिसि कुमरि
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