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॥ स्नात्र पूजा ॥
॥श्री जिनायनमः ॥
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॥ अथ स्नात्र पूजा प्रारनः ॥
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॥ पांखडी गाथा ॥ ॥र्दा चोतीसैं अतिशय जुन । यचनाति शय संजुत्त ॥ सो परमेसर देखि नवि सिंहा सण संपत्त ॥१॥
॥ढाल ॥ सिंहासण बैठा जगनाण। देखी नविजन गुणमणि खाण ॥ जे दीठे तुझ निम्मल काण लहिये परम महोदय ठाण॥ १ ॥ कुसुमांजलि मेलो श्रादि जिणंदा ॥ तोरा चरण कमल चो वीस पूजो रे चोवीस सोनागी चोवीस बैरागी चोबीस जिणंदा ॥ कुसुमांजलि मेलो आदि जिणंदा ॥ (ए पढ चरने टीकी दीजे ॥१॥)
॥ गाथा ॥
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