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॥ स्नात्र पूजा॥
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नै श्रापो अपकाया एकेंदिया जीवा नि रवदार्हत् पूजायां निय॑था निष्पापाः शुन गतयः संतु नमेस्तु संघहन हिंसा पाप मह दर्चने स्वाहा ॥
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॥चंदन पुष्प धूप फल अदत शुछि मंत्र ॥
बनष्पतयो बनष्पति काया जीवा एकेंदिया निरवदाइहत् पूजायां निर्व्यथा निरपाया शुलगतयः संतु नमेस्तु संघहन हिंसापाप मर्हदर्चने स्वाहा ॥
॥ अग्नि और दीपक शुछि मंत्र ॥
ने अग्नयो अग्निकाया जीवा एकैदिया निरवदार्हत् पूजायां नियंथाः संतु निर पायाःसंतु शुनगतयः संतु नमस्तु संघहन हिं सा पाप मईदर्चने स्वाहा।
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