SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७) ॥ चौ० जि० पू०॥ ११५ तजिशिवजाइये रे कुं० ॥ १ ॥ लवजलगतनि जातमा । बारी करूणाउरधरिताइये रे चर णकरणउपयोगिता । ग्रहणकरणकुंध्याइये रे कुं० ॥२॥ एप्रन्नुदरणजीवनें । अनुन्नवर सनोदाई रे ॥ वरशिवचंद बिमलबधे । दिन दिनसोलसवाई रे कुं० ॥३॥ ही परम०२० श्रीकुंथुजिने जलं० नै० स्वाहा ॥१७॥ इति ॥दोहा॥ जिनअठारमोध्याइये । नवियण चित्तम फार ॥ करण तीनइक करिमुदा । प्रतिदिन जयजयकार ॥१॥ ॥राग संगलागोही यावे० एचाल ॥. निजबिमल नक्तिसें शरजिन सुं नितरमि ये रे ॥ जिनगुण निजगुणतुल्यकरणकुं । चंच लचितहयदमिये रे नि० ॥१॥ जतियुकाले संगतिउरधरिके । कुमतिनारसंगगमिय रे ॥ अनुनब अमृतपान करणसे । विषयविकृति विषयमिये रे नि०॥२॥ जिनवरसंगरमण दव शनिलें। पंकसघनबन धमिये रे ॥ कहें शिवचंद जिनेंदु रमणसे । नवबनमें नहिन मिये रे नि०॥३॥ झी परम० अ० श्रीम For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy