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॥चौ० जि० पू० ॥
(१९)
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त्यरजिने जलं० यजामहेस्वाहा ॥ १८॥
॥दोहा॥ उगणीसमजिन चरणकज । जमरहोयलय लाय ॥ सेवे तसुनवनमरता। अगणिततुरत बिलाय ॥ १॥ __ मल्लिजिणंदउपगारी रे वाला हांहोरेवाला बारीजाउं वारहजारी रे वाला म० ॥ कुंलन रेसर गगनांगण में। सहसकिरण शवतारी रेवा०॥म०॥१॥ पूरबनव खटमित्र नरिंद पति । बोधसिंधुनवतारी ॥ वेदत्रई विरही तनुधास्यो । सकलसंघसुखकारी रेबा० म०॥ २॥ सकलकुशलहरिचंदनतसवर। नंदनबन अनुकारी ॥ संघचतुर्बिधनूरिखचरगण प्रण तचंदमनुहारी रे वा०म० ॥३॥ नूझा पर म० शनं० श्रीमल्लिजिनेंदाय जलं० यजाम हेस्वाहा ॥ इति मल्लिजिनपूजा ॥ १९॥
॥दोहा॥ पदनोदरवरपननंद गतपरपन्न समान॥ विज्ञातितमप्रनुपूजिये । केवललच्छिनिधान ॥
॥ नविनक्तिधरीनवपदनव० एचाल ॥ सुणसुव्रतजिनेऽ सुनिजरधर मुझपर वर
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