________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२०)
॥चौ० जि० पू०॥
१४९
दरसणदीजिये। प्रजुदरसप्रीतनिरूपाधिकता करियेलहिये शिवसाधकता। तबतुरतमिटेंशि वबाधकता सुण० ॥१॥ अमृत मेंसाध्यपणों बिलसें प्रनुदरसणसाधनताउलसें तद मुझने साधकतामिलसें सु०॥२॥निनाधिकरणता यदिबिघटै। एकाधिकरणतायदिसुघटें॥ तद मुफशिवसाधकताप्रगटें सु०॥ ३ ॥ एकाधि करणता मुफकरिये । निन्नाधिकरणतापरिह रिये ॥ शिवचंदबिमलपदतदबरिये । सु० ॥ १ ॥ नझी परम० शनं० मुनिसुव्रत जिने जलं० चंद० यजामहेस्वाहा ॥ २० ॥
॥दोहा॥ अंतरबैरीमारिया। तबलहियोनमिनाम॥ नवियणएप्रनुपूजसें। सरिये बंबितकाम ॥१॥ श्रीनमिजिनवरचरणकमलमें। नयननमरयुग धरिये रे ॥ तिणकियगुण मकरंदपानसे। चे तनमदमत करिये रे श्री० ॥ १ ॥ एहचरण कजशहनिशिविकसै । परकजनिशिकुमलावें रे ॥ ए न बलेबलि तुहिन शनलसै अपरक मल बलजावे रे श्री० ॥२॥ एपदकजगन मधुरस पीवत । जीव शमरता पावें रे वा०
-
-
-
--
-
For Private And Personal Use Only