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चौ. जि० पू०॥
(२२)
शवर कमल रसलोनी मधुकर ॥ कजगतग लगलजावेरे वा० । परकज निजगुण लच्छि पात्र है ॥ पदकज संपद देवे रे । तातें पद शिवचंद जिणंद के ॥ अहनिशि सुरनर सेवे रे श्री० ॥ ३ ॥ झी परम० अनं० नमिजि में० जलं० नैवे० यजामहे स्वाहा ॥ २१ ॥
॥दोहा॥ घावीसमजिन जगगुरू । व्रम्हचारि बिख्यात इणबंदन चंदन रसैं । पापताप मिटजात १ ॥ राग गाजलूहै जिनमन रंगसुं०एचाल॥
नेमि जिणंद उर धारी रे वाला। विषय कषाय निबारिये रे वाला। बारिये रे हारे याला ॥ ए जिननें न बिसारिये रे ॥१॥ अलधर जिम प्रन्नु गरजता रे बाला। देशना शमृत बरसता रे बाला दे० बरसता हां रे० तविक मोर सुण उलसता रे बाला ॥२॥ समवसरण गिरि पर रह्यारे बाला । नामंझ लचपलावह्यारेवा० ॥ सुरनर चातकऊमद्या रे॥३॥ बोधबीज उपजावियो रे घाला। विउरक्षेत्र बधावियो रे बालाज०बनवि
फलपाबियो रे॥४॥र्नीपरम०
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