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॥चौ० जि० पू०॥
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र ॥ मारि विकार मिटायकरि । नामधस्यो शांतिसार ॥१॥ ॥ रागनाव धरिधन्य दिनाजसफलोगिणुं॥ __ शांतिजिनचंद्ध निजचरणकजशरणगत त रणिगुणधारि नववारितारी कुमतिजनबिपि नजनिकुमतघन व्रततितत निशितधारतरबा रबारी शांति०॥ एकनविपदउन्नयचक्रधरती र्थकरधारियावारियाविघनसारा सकलमदमा रियाविमल गुणधारिया सारियानक्तबांबित अपारा शां० हरिणलांछनधराकरणसुवरणक रासुरवराहितधरागतबिकारामोहनटधरणिध रंगणहरणबज्रधरकुमुद शिवचंदपदरजनिका राशां॥३॥ झीपरम० अ० ज० श्रीशांति जिनेंद्राय जलं०० यजामहेस्वाहा १६ ॥
॥दोहा॥ सतरम जिनवर दीवसम । मफिनवसाग रजाण ॥ नक्तियुक्ति नित पूजिये । लहिये शमलविनाण ॥१॥ ॥ राग अरिहंतपद नितध्याइये एचाल ॥
कुंथुजिणंद गुणगाइये । मनबंबितफलपा इये रे ॥ प्रनु समरण लयल्याइये । नविनव
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