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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (५) www.kobatirth.org - ॥ नवपदपूजा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१ अभ्यासी सदा । तप तेज दीपें कर्म जीपें नही बीपें परणी ॥ मुनिराज करुणा सिं धु त्रिभुवन बंधु प्रणमूं हित जणी ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ जिम तरु फूलें नमरो बैसे । पीना तसुन उ पायें । लेई रसातम संतोषें । तिममुनि गो चरि जायें रे न० सि० ॥ १ ॥ पंचेंद्र नें जेनि त जीपें । षटकायक प्रतिपालें । संयम सतरे प्रकार राधे । वंदों तेह दयाल रे ज० ॥ २ ॥ अठार सहस्स शीलांगनाधोरी । श्चल याचा चरित्र | मुनिमहंत जयणा युत बंदी कीजे जन मपवित्र रे न० सि० ॥ ३ ॥ नवविध ब्रम्हगु प्तजेपालें । बारहविहतपसूरा । एहवामुनि नमियें जेप्रगटें । पूरबपुन्य अंकूरा रे न० सि० ४ ॥ सो नांनों परें परिक्षादीसें । दिनदिन चढतेवानें । संयम खपकरतां मुनि नमिये । देश कालानुमानें रे न० सि० ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ ढाल ॥ प्रमत्र जेनित रहे । नविहरषें नविसोचें रे । साधु सुधा ते छातमा । स्यूं मूंगे स्यूं लो रे वी० ॥
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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