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॥ नवपद पूजा ॥
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॥ लोक ॥
॥ विमलके ० नी० परम० साधु ॥
॥ इति पंचम पद पूजा ॥ ५ ॥
॥ अथ षष्टमदर्शण पूजा ॥
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(६)
॥ दोहा ॥ जिनवर जाषित शुरुनय । तत्वतणी पर तीत ते सम्यग दर्शण सदा । प्रादरिये सुनरीत ॥ बंद ॥ जिणुत्रतत्रे रुइलरकणस्स । नमोनमो नि म्मल दंशणस्स | मिच्छत्त नासाइ समुग्गम स्स मूलस्स सम्ममहा दुमस्स ॥ २ ॥
॥ ढाल ॥
अनंतानुबंधी कृयादिप्रकारें । महामोह मिथ्यात्वने जेहवारे इगध्यादिनेदें करीव वीजे । समसष्ठिदें वली जे धुणीजे ॥ ३ ॥ जिनेंदोक्त तत्वार्थश्रद्धान रूपो । गुणासर्व म ध्ये प्रवच्वनूपो । विनाजेण नाणंचरितं शुद्धं सुहृदंत्राणंतं नमामो विशुद्धं ॥ ४ ॥ विप