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॥ नवपदपूजा ॥
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सहोबासना रूपमिथ्या । टलें जेशनादि थ में जे कुपध्या । जिनोक्तै ऊर्यसहजथी शुरू ध्यानं । कहीयेंदर्शनं तेहपरमंनिधानं ॥५॥ विनाजेहथीज्ञान मज्ञानरूपं चरित्रं विचित्रं न वारण्यकूपं । प्रकृतिसातमें उपशमें कयेंतेहहो वें । तिहांआपरूपें सदाशपजोवें ॥६॥
॥ढाल ॥ सम्मग्दर्शनगुणनमो। तत्वप्रतीत स्वरू पोजी । जसुनिरधार स्वनाव छै। चेतनगुण जेअरूपोजी ॥५॥
॥टक ॥ जे नूप अशा धर्म प्रगटैं। सयलपरईहा टलें । निजशछ श्रमानाव प्रगटै। अनुलवक सणाऊबलें । बजमान परणति वस्तुतत्वै । श हव सुर कारण पणे निज साध्य दृष्टं सरब कर णी । तत्वतासंपतिगिणे ॥ १ ॥
॥ ढाल ॥ शुरुदेव गुरुधर्मपरीक्षा । सद्दहणा परिणा म । जेह पांमी जे तेह नमीजें । सम्म ग्दर्शन नामें रे न० सि० ॥१॥ मलउपशम दयउ पशम यथी। जेहोइ त्रिविधि शनंग। सम्म
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