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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ नवपदपूजा ॥ -- मुणीण मानंद पयठियाणं ॥ १ ॥ जिके दर्श न ज्ञान चारित्र रत्ने । करी मोद साधै प्र धान प्रयत्ने । सुमन्त्री गुपनी धरे सावधाना शनाचार पाले हरै मोह माना ॥२॥ विवों विकत्या प्रमादादि दोषा। जितेंद्री पणे जे महा ज्ञान कोसा । गुन्न ध्यान ध्यावें गुणौ घे समिछा । नमो ते सदा सर्व साधु प्र सिझा ॥३॥ करें सेवना सूरिवायग गणी नी। कऊं वर्णना तेहनी सी मुणीनी। समेता सदा पंच सुमति त्रिगुप्ता । त्रिगुप्त नही काम नोगेषु लिप्ता ॥१॥ वली बाह्य श भ्यंतरे ग्रंथि टाली। ऊइं मुक्ति में योग चा रित्र पाली। शुनाष्टांग योगें रमें चिन्त वा ली। नमुं साधुने तेह निज पाप टाली ॥ ५ ॥ ढाल ॥ ___ सकल विषय विषवारनें। निक्कामी निस्सं गीजी नवदव ताप समावता । शातम सा धन रंगी जी ॥५॥ ॥ टक ॥ जे रम्या शुछ स्वरूप रमणे देहनिर्मम नि र्मदा ॥ काउसग्ग मुद्धा धीरशासन ध्यान - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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