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(२)
नवपदपूजा ॥
४॥ सि० बावना चंदनरस समवयणे । श हित ताप सविटालें । तेउवफाय नमीजें जे वलि । जिनशासन अजुवाले रे न० ॥५॥
॥ढाल ॥ तप सिज्जाये रत सदा । छादश अंगनो ध्यातारे । उपाध्याय ते आतमा। जगबंधव जग नाता रे वी०॥
॥श्लोक ॥ ॥ विमल केवल० ॥ हा परम० उपा० ॥
॥ इति श्री उपाध्याय
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॥ अथ पंचम साधु पद पूजा ॥
॥दोहा॥ मोक्ष मारग साधन जणी । सावधान थ या जेह । ते मुनिवर पद वंदतां । निरमल थायें देह ॥१॥
॥बंद ॥ सारण संसाहिय संयमाणं नमो नमो गु छ दयादमाणं । तिगुत्ति गुत्ताण समाहियाणं
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