SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६२ ॥ नं० व० पू० ॥ रण । तरण तरणिगुणधरणे ॥ अनंतरूपधर दुरगतिनय हर । परमज्योति अधिकरणे मे ० ॥ २ ॥ करुणाधार विमलगुण आगर नि रूपमशरण शरण मे० । एजिनचरण दीप पूजनसे || चीजे दुख हरणे मे० ॥ ३ ॥ केवल विमल चिदानंद लहिये दीपपूजके क रणें मे० । रतन दीपसे करै आरती हरिगण जिनगुण चरणे मे० ॥ ४ ॥ एप्रनुचरण सेव नवि जनकुं ॥ मृत पद सुवितरणे मे० । कुमति रजनि अज्ञान तिमिर हर । वर शि वचंद सु किरणे मे० ॥ ५ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only (६) ॥ काव्य ॥ मदन सिंधुर सिंधुर वैरिणं । गुरु कषाय करेणु समीरणं ॥ मद धराधरता वल वैरिणं जिनगणं प्रयजे वरदी पकैः ॥ ६ ॥ की पर मा० प्रणत० कठिन० नंदीश्वरा० श्रीरिषना नन चंद्राननं वारिषेण वर्द्धमान प्र० दीपं य जामहे स्वाहा ॥ इति पंचमी दीपपूजा ॥ ५ ॥ दोहा ॥ बीकृत रचना | करिये धरि शुन भाव ॥ बरिये सिवधू परम | प्रय
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy